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Ground Report of Baroda Byelection 2020: बरोदा के अखाड़े में राजनीति के बड़े पहलवानों का जबरदस्त दंगल

Haryana Baroda Byelection 2020 बरोदा के अखाड़े में बड़े सियासी पहलवानों के बीच जबरदस्‍त दंगल हो रहा है। ये सियासी पहलवान उपचुनाव में सारे दांव- पेंच आजमा रहे हैं और मतदाताओं को साधने की काेशिशों में जुटे हुए हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sat, 31 Oct 2020 08:46 AM (IST)Updated: Sat, 31 Oct 2020 09:40 AM (IST)
Ground Report of Baroda Byelection 2020: बरोदा के अखाड़े में राजनीति के बड़े पहलवानों का जबरदस्त दंगल
सीएम मनोहरलाल, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, अभय सिंह चौटाला और उपमुख्‍यमंत्री दुष्‍यंत चाैटाला। (फाइल फोटो)

अनुराग अग्रवाल, बरोदा (सोनीपत)।  पानीपत से रोहतक की तरफ जब चलते हैं तो पहले इसराना आता है और फिर गोहाना पड़ता है...यहां की जलेबियां पूरे हरियाणा में मशहूर हैं...गोहाना पूरी तरह से शहरी इलाका है...इसी से सटा ठेठ ग्रामीण इलाका बरोदा का है, जहां बिहार के साथ तीन नवंबर को विधानसभा उपचुनाव होने जा रहा है। पानीपत से रोहतक के बीच नेशनल हाइवे पर गाडिय़ां दौड़ रही हैं। हाईवे के दोनों तरफ खेत खाली हो चुके हैं। अच्छी बात यह है कि किसी खेत में पराली के अवशेष जलते दिखाई नहीं दिए। सभी राजनीतिक पाॢटयों ने गोहाना में ही अपने दफ्तर बना रखे हैं। गोहाना की चील-पौं और ट्रैफिक जाम के बीच जब बरोदा पहुंचते हैं तो वहां जाकर लगता है कि यहां चुनाव हो रहा है।  

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उम्मीदवार तो सिर्फ नाम के लड़ रहे चुनाव, असली चुनाव दिग्गजों के बीच ही

बरोदा की पहचान यहां के पहलवान हैं। इस हलके ने देश को बड़े-बड़े पहलवान दिए हैं। ढाई सौ किलो का पहलवान रामकुमार मोटा बरोदा के ही रहने वाले थे। राजेंद्र सिंह मोर, पंडित शीशराम, जगत सिंह और सरिता मोर भी बरोदा विधानसभा क्षेत्र की देन हैं। योगेश्वर दत्त को कौन नहीं जानता। उनका गांव भैंसवाल है। बाबा ढाब वाले का मंदिर बरोदा हलके की खास पहचान है। कैथल जिले के नीमवाला गांव से कुछ लोग बरसों पहले बरोदा में आकर बसे थे। उन्हेंं खासा कहा जाता है। उस समय बरोदा में जाट समुदाय के मोर गोत्र के लोग ज्यादा थे। तब मोरों ने खासों को यहां बसाया था। तब से मोरों और खासों के बीच खास तरह की दोस्ती है।

विकास के मुद्दे पर लड़ा जा रहा चुनाव मगर जनता में विकास कोई मुद्दा नहीं

बरोदा के लोग अपनी जरूरत की वस्तुएं खरीदने के लिए गोहाना ही आते हैं। कुछ ज्यादा और बड़ी खरीदारी करनी हो तो सोनीपत और रोहतक की ओर कूच करते हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा जब सूबे के सीएम बने थे, तब श्रीकृष्ण हुड्डा ने उनके लिए किलोई में अपनी सीट खाली कर दी थी। इसके बाद श्रीकृष्ण हुड्डा बरोदा से चुनाव लड़ते और जीतते आ रहे हैं। उनके देहावसान की वजह से बरोदा में उपचुनाव हो रहा है।

कांग्रेस ने यहां राजनीति के नए खिलाड़ी इंदु नरवाल को चुनाव मैदान में उतारा है तो भाजपा ने अपने पहलवान योगेश्वर दत्त पर दूसरी बार भरोसा जताया है। पिछले चुनाव में अकेले चुुनाव लड़ी जजपा इस बार भाजपा के साथ गठबंधन में है। इनेलो ने पिछली बार के ही अपने उम्मीदवार जोगिंदर मलिक पर फिर दांव खेला है।

वैसे तो भाजपा छोड़कर अपनी पार्टी बनाने वाले पूर्व सांसद राजकुमार सैनी भी यहां ताल ठोंक रहे हैं, लेकिन उनके चुनाव लडऩे का मकसद दूध से भरे गिलास को पांव मारने से ज्यादा कुछ नहीं है। गोहाना और बरोदा में घुसते ही आपको लगेगा कि यहां कोरोना नाम के किसी वायरस का खौफ किसी व्यक्ति को नहीं है। सब अपने में मस्त हैं। अधिकतर लोग बिना मास्क के नजर जाएंगे।

करीब पौने दो लाख मतदाताओं वाले बरोदा हलके में 54 गांव आते हैं। यहां छह बार कांग्रेस और छह बार ताऊ देवीलाल व ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली पार्टी इनेलो ने चुनाव जीते हैं। भाजपा जहां जींद की तरह बरोदा की बंजर राजनीतिक जमीन पर फूल खिलने की आस में चुनाव लड़ रही है, वहीं उसकी सहयोगी पार्टी जजपा पर इनेलो कैडर का वोट भाजपा को दिलाने का भारी दबाव है।

बरोदा के लोग बोलते हैं, पिछले और अब के चुनाव में भारी फर्क है । इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अभय चौटाला पूरी मुस्तैदी के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। उनका टारगेट कहने के लिए भले ही अपनी पार्टी के उम्मीदवार की जीत हो, लेकिन वह बरोदा के रण से इनेलो के कैडर वोटबैंक को वापस अपने साथ जुड़ा होने का संदेश देने की ज्यादा कोशिश में हैं।

कांग्रेस आपस की फूट का शिकार है। यह चुनाव पूरी तरह से पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके राज्यसभा सदस्य बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा लड़ रहे हैं। यूं कहिये कि बरोदा के रण में पाॢटयों के उम्मीदवार तो नाम के हैं, लेकिन असली चुनाव मुख्यमंत्री मनोहर लाल, डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला, पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र सिंह हुड्डा, इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला और इनेलो महासचिव अभय सिंह चौटाला के बीच हो रहा है।

बरोदा के भगत सिंह मोर, नरेश कुमार, अमरजीत सिंह, विजय कुमार और कुलदीप ठोलेदार के शब्दों में....यहां उम्मीदवार नहीं, नेताओं की हार जीत होगी। चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जा रहा, इस सवाल का जवाब देते-देते हर उम्र के लोगों की यह टोली अचानक चुप हो जाती है। फिर बोलती है, बरोदा में कोई मुद्दा नहीं है, हम सिर्फ यही कह सकते हैं कि यहां के नतीजे बहुत ही चौंकाने वाले होंगे। किसान किसी भी पार्टी की हार-जीत में निर्णायक भूमिका में होगा।

दबी सी आवाज यह भी निकल रही कि भाजपा का साथ दे रही जजपा को अपने वजूद के लिए कुछ खास मेहनत करनी पड़ सकती है, क्योंकि पहले उसे भाजपा के विरुद्ध वोट मिले थे और आज वह भाजपा के लिए वोट मांग रही है। इसके बावजूद भाजपा के पास खोने को कुछ नहीं है। उसे अपने विकास के मुद्दे और कांग्रेस को अब तक के विकास के आधार पर जीत का भरोसा है।  

आज एक दूसरे के खिलाफ गरजेंगे तमाम दिग्गज

 बरोदा का रण पूरे प्रदेश में सियासी गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है। यहां हर राजनीतिक दल के नेता आ-जा  रहे हैं। भाजपा व जजपा के बड़े नेताओं की सेवा के चक्कर में कई नए टिकटार्थी भी बरोदा में दिखाई दे रहे हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल, ओमप्रकाश धनखड़ और दुष्यंत चौटाला दौरा कर चुके हैं तो साथ ही हुड्डा और दीपेंद्र के अलावा बाकी कांग्रेस नेता प्रचार की रस्म अदायगी में लगे हैं।

भाजपा के अधिकतर मंत्री बरोदा में फेरा डाल चुके हैं। इनेलो के ओमप्रकाश चौटाला, भाजपा से चौटाला के साथ आए पूर्व सीपीएस श्याम सिंह राणा, राजकुमार वाल्मीकि और स्वयं अभय चौटाला भी मेहनत करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। शनिवार को बरोदा में मनोहर लाल, दुष्यंत चौटाला, हुड्डा और ओमप्रकाश चौटाला एक साथ अलग-अलग प्लेटफार्म पर दिखाई देंगे।

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