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तीन घंटे सम्‍मान के इंतजार में रखा रहा स्वतंत्रता सेनानी का पार्थिव शरीर

आजाद हिंद फौज के सिपाही बुधराम यादव का निधन हो गया, लेकिन प्रशासन को इसका पता ही नहीं चला। लोगों ने प्रशासन को जगाया तब जाकर अधिकारी पहुंचे।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 01 Dec 2017 03:23 PM (IST)Updated: Fri, 01 Dec 2017 03:47 PM (IST)
तीन घंटे सम्‍मान के इंतजार में रखा रहा स्वतंत्रता सेनानी का पार्थिव शरीर
तीन घंटे सम्‍मान के इंतजार में रखा रहा स्वतंत्रता सेनानी का पार्थिव शरीर

डबवाली [डीडी गोयल]। जिस प्रदेश की माटी में जन्म लेकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी वहां का प्रशासन मुंह मोड़ गया तो परायों से सम्मान कैसे मिलता। आजाद हिंद फौज के सिपाही बुधराम यादव की अंत्येष्टि पर यही हुआ। हरियाणा के बाद राजस्थान प्रशासन संवेदनहीन दिखा। लोग स्वतंत्रता सेनानी को सम्मान दिलाने के लिए हनुमानगढ़ जंक्शन में बने कलेक्टर ऑफिस पहुंच गए।

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प्रशासन की आंख खुली तो नेताजी जी सुभाष चंद्र बोस के निजी अंगरक्षक का अंतिम संस्कार करवाने तहसीलदार सुभाष कड़वासरा मौका पर पहुंचे। इस बीच, सलामी देते समय एक गार्ड का असला नहीं चला। अव्यवस्थाओं के बीच करीब तीन घंटे देरी से अंत्योष्टि हो सकी। इस दौरान लोगों ने सुभाष चंद्र बोस अमर रहे, बुधराम यादव अमर रहे के साथ-साथ देशभक्ति के नारे लगाए।

स्वतंत्रता सेनानी बुधराम यादव की अंत्येष्टि वीरवार सुबह 10 बजे राजस्थान के हनुमानगढ़ टाऊन के रामबाग में रखी गई थी। निर्धारित समय तक कोई भी प्रशासनिक अधिकारी नहीं आया तो लोगों का एक शिष्टमंडल एसडीएम सुरेंद्र पुरोहित के पास पहुंचा। एसडीएम तथा उनके पास बैठे तहसीलदार सुभाष कड़वासरा ने किसी तरह की जानकारी होने से साफ इन्कार कर दिया।

असला न चलने पर कंधे पर बंदूक रखे हुए गार्ड (दाएं से दूसरा)।

प्रशासनिक अधिकारियों ने यहां तक कह दिया कि उन्होंने अखबार नहीं पढ़े हैं, इसलिए उन्हें पता नहीं। करीब डेढ़ घंटा बहस के बाद एसडीएम ने तहसीलदार को मौके पर भेजा। राजकीय सम्मान के साथ यादव के पार्थिव को रामबाग में ले जाया गया। रामबाग में पुन: कुछ समय के लिए अंत्येष्टि रोक दी गई। चूंकि जिला परिषद हनुमानगढ़ के सीइओ नहीं आए थे। जब गार्ड ऑफ ऑनर देने की बारी आई तो एक गार्ड का असला जवाब दे गया। नागरिक सुरक्षा मंच हनुमानगढ़ के संस्थापक एडवोकेट शंकर सोनी ने प्रशासनिक असंवेदनहीनता को स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान बताया। लोगों ने लापरवाही बरतने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की।

हरियाणा ने पहले ही सम्मान देने से मना कर दिया था

गौरतलब है कि बुधराम यादव का जन्म हरियाणा के जिला महेंद्रगढ़ में हुआ था। द्वितीय विश्व युद्ध लड़ते समय उन्होंने सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित होकर आजाद हिंद फौज ज्वाइन कर ली थी। 1945 में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन दबने के कारण वे जापान में बंदी बना लिए गए थे। पांच साल तक बंदी रहे। 1950 में भारतीय सरकार के प्रयासों से वापस घर लौटे।

संयुक्त पंजाब की पुलिस में भर्ती हुए तो 1966 में हरियाणा अलग हुआ तो हरियाणा पुलिस में सेवाएं दी। 1972 में केंद्र सरकार ने ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया था। वर्ष 1980 में डबवाली से ही रिटायर हुए थे। उन्होंने अपनी जिंदगी के करीब 50 साल डबवाली में बिताए थे। बुधवार सायं हनुमानगढ़ में अपने बेटे मक्खन लाल के घर अंतिम सांस ली। खबर मिलने के बाद हरियाणा के प्रशासनिक अधिकारियों ने दूसरी स्टेट का मामला होने का बहाना करके हाथ खड़े कर दिए थे।

असला न चलने पर चैक करते हुए गार्ड।

डीपीआरओ को दी थी जानकारी

मक्खन लाल यादव के नजदीकी हनुमानगढ़ निवासी विजय कौशिक ने बताया कि स्वतंत्रता सेनानी के निधन की सूचना हनुमानगढ़ के डीपीआरओ को दी थी। कई टीवी चैनलों तथा समाचार पत्रों में खबर प्रकाशित हुई थी। हरियाणा की तरह राजस्थान के प्रशासन ने मुंह मोड़ लिया। यादव देश की स्वतंत्रता के लिए लड़े थे, लेकिन सम्मान देने के नाम पर अधिकारियों ने दो राज्यों का मुद्दा बना दिया। बुधराम यादव मूलत: डबवाली (सिरसा) के निवासी थे।

किसी को मालूम नहीं था कि इतना बड़ा स्वतंत्रता सेनानी हनुमानगढ़ में रह रहा है। एसडीएम सुरेंद्र पुरोहित का कहना है कि अगर पता होता तो हम हर साल स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें सम्मानित करते। डीपीआरओ ने मुझे उनके निधन के बारे में नहीं बताया था। मैंने स्वयं आज 10 बजे तक अखबार नहीं देखे थे। कुछ लोग मेरे पास आए तो पता चला। मैंने फौरन तहसीलदार को मौके पर भेजा था। राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि करवाई गई। गार्ड ऑफ ऑनर के समय असला चलना चाहिए। यह गंभीर मामला है। मामले की जांच करवाई जाएगी।

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