नाबालिग बेटी से दुष्कर्म के दोषी पिता को अदालत ने सुनाई फांसी की सजा, जज ने कहा- ऐसा व्यक्ति समाज के लिए खतरा
सिरसा में नाबालिग बेटी से दुष्कर्म करने के मामले में जिला न्यायधीश ने फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ने पिता को फांसी सुनाई है। जज ने इस मामले को रेयरेस्ट मानते हुए कहा कि ऐसे व्यक्ति समाज के लिए खतरा हैं जो अपनी बच्चियों को भी नहीं छोड़ते।
सिरसा, जागरण संवाददाता। सिरसा के गांव में नाबालिग बेटी से दुष्कर्म करने के मामले में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायधीश प्रवीण कुमार की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ने पिता को दोषी करार देते हुए मृत्युदंड की सजा सुनाते हुए फांसी की सजा सुनाई है। जज ने इस मामले को रेयरेस्ट मानते हुए कहा कि ऐसे व्यक्ति समाज के लिए खतरा हैं जो अपनी बच्चियों को भी नहीं छोड़ते। एक बेटी अपने पिता के पास ही सुरक्षित नहीं रह सकती तो कहां सुरक्षित रहेगी।
अदालत के फैसले के अनुसार
अदालत द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद दोषी फफक-फफक कर रोने लगा और रहम की गुहार लगाने लगा। जिसे अदालत ने खारिज कर दिया। अदालत में चले अभियोग के मुताबिक बीती 26-27 सितंबर 2020 की रात को दोषी ने शराब पीकर अपनी पत्नी से झगड़ा किया। जिसके बाद उसकी पत्नी पड़ोस के घर में जाकर सो गई। रात को उसके पास उसका छोटा बेटा व बेटी सोए हुए थे। रात के समय में अपनी 11 वर्षीय बेटी से दो बार दुष्कर्म किया। पहले दिन तो बेटी ने डर के मारे किसी को घटना के बारे में नहीं बताया। बाद में पीड़िता के बयान पर महिला थाना सिरसा पुलिस ने 28 सितंबर 2020 को मामला दर्ज किया। अदालत में करीब दो साल तक चले अभियोग के बाद वीरवार को अदालत ने आरोपित को दोषी करार दे दिया।
पोक्सो एक्ट के तहत मृत्युदंड की सजा सुनाने का सिरसा जिले का यह पहला मामला है। इस मामले में उप जिला न्यायवादी राजीव सरदाना ने बताया कि दोषी ने अपना बड़ा बेटा अपने भाई को गोद दिया हुआ है जबकि एक बेटा-बेटी उसके साथ रहते थे। अदालत ने इसे रेयरेस्ट केस माना है। पीड़ित बच्ची को घटना के बाद चाइल्ड केयर सेंटर बहादुरगढ़ में छोड़ा हुआ है। इस मामले में जिला लीगल सर्विस अर्थारिटी द्वारा पीड़िता को पांच लाख का मुआवजा दिया जाएगा, उसे जल्द ही मुआवजा दिलवाने का प्रयास करेंगे। इसके साथ ही दोषी पर अदालत ने 50 हजार जुर्माना लगाया है। वहीं इस मामले में अधिवक्ता चंद्रलेखा ने कहा कि एक अधिवक्ता के तौर पर उन्होंने दोषी का बचाव किया पंरतु एक औरत और मानव होने के नाते वे अदालत के इस फैसले की सराहना करती है।