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पराली के नीचे पैदा हुआ बैक्टीरिया बढ़ाता फसल की पैदावार, सिरसा का किसान इसी तकनीक से कर रहा खेती

पराली नहीं जलाएंगे पर्यावरण बचाएंगे इसी नारे के साथ सिरसा के रामपुर थेहड़ी के प्रगतिशील किसान छिंद्रपाल आठ वर्षों से पराली नहींं जला रहे। वह पराली को मिट्टी में दबा देते हैं जिससे मिट्टी की ऊर्वरा शक्ति बढ़ रही है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 06 Oct 2020 04:10 PM (IST)Updated: Tue, 06 Oct 2020 04:10 PM (IST)
पराली के नीचे पैदा हुआ बैक्टीरिया बढ़ाता फसल की पैदावार, सिरसा का किसान इसी तकनीक से कर रहा खेती
जलाने के बजाय पराली प्रबंधन को मिट्टी में बिछाया गया है। (फाइल फोटो)

जेएनएन, सिरसा। अगली फसल की बुआई के लिए किसान पराली को आग लगा देते हैं, लेकिन यह मिट्टी की ऊर्वरा शक्ति को कमजोर करता है। इसके उलट रामपुर थेहड़ी के किसान छिंद्रपाल पराली को खेत में ही पड़ा रहने देते हैं। पराली के नीचे बैक्टीरिया पैदा होता है जो पराली को कंपोस्ट में बदलता है और जमीन को भी नरम बनाता है। छिंद्रपाल का दावा है कि पराली खेत में रहने से सभी आवश्यक तत्व मिट्टी को मिलते हैं और इससे उसकी पैदावार दो से चार क्विंटल प्रति एकड़ बढ़ती है। 

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53 वर्षीय प्रगतिशील किसान छिंद्रपाल बताते हैं कि आठ साल पहले तक वे भी खेत में पराली को आग लगाते थे। धीरे-धीरे उर्वरा शक्ति खत्म हो गई। बायो कार्बन की मात्रा घट गई। तब समझ में आया कि लाभ नहीं नुकसान उठा रहे हैं। फिर पराली को छोटे टुकड़ों में खेत में ही पड़ा रहने देते हैं और हैप्पी सीडर से गेहूं की बिजाई करते हैं। पहले साल भी अच्छा रिजल्ट आया। 25 फीसद खाद की मात्रा कम डालनी पड़ी। यह भी देखा कि बैक्टीरिया पैदा हो रहे हैं जो पराली को कंपोस्ट में बदल रहे हैं और दूसरे लाभ भी दे रहे हैं।

डेढ़ क्विंटल की जगह 30 किलो यूरिया से चलता है काम

छिंद्रपाल ने बताया कि सामान्यत: पराली जलाने वाले खेत में डेढ़ क्विंटल यूरिया डालना पड़ता है। दूसरे खाद भी डालते हैं, जबकि उसके खेत में 30 किलो प्रति एकड़ यूरिया लगता है। जिंक, फासफोरस, सल्फर कुछ भी नहीं डालना पड़ता। सब पूर्ति पराली से ही हो रही है। उनका यह भी दावा है कि पेस्टीसाइड भी अन्य किसानों की अपेक्षा उसे आधे से कम डालना पड़ता है।

दो पानी से पकती है गेहूं

उन्होंने बताया कि धान के बाद वे गेहूं की पैदावार लेते हैं। अन्य खेतों में चार बार पानी देना पड़ता है, जबकि वह दो बार पानी से ही गेहूं पकाते हैं। क्योंकि जमीन में पराली रहती है जो जमीन की नमी बरकरार रखती है और पराली धीरे-धीरे कंपोस्ट में बदलती है। उन्होंने कहा कि गेहूं में भी खाद कम देना पड़ता है, यह भी बचत है। उन्होंने कहा कि उसके पास 30 एकड़ जमीन है और किसी भी खेत में फसली अवशेष नहीं जलाते।


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