टूटा संकोच तो सैकड़ों चेहरों पर खिली मुस्कान, इन महिलाओं का संदेश- कोई काम छोटा नहीं
शांति ने खुद के साथ-साथ अन्य महिलाअों के संकाेच की दीवार तोड़कर जूते-चप्पल बनाने की काम शुरु किया। आज इस काम में सैकड़ों महिलाएं जुड़ी हैं। उनका संदेश है कोई काम छोटा नहीं होता।
रोहतक, [अरुण शर्मा]। इन महिलाओं ने संकोच की दीवार तोड़ी तो सैकड़ों चेहरों पर मुस्कान खिल आई और खुशहाली का नया सवेरा निकला। इन महिलाओं का संदेश है कर्म ही पूजा। रोहतक की शांति ने हिचक छोड़ जूते-जूतियां बनानी शुरू कीं और अन्य महिलाएं भी एक के बाद एक उनसे जुड़ती गईं। 14 साल पहले शुरू हुआ यह सिलसिला आज उद्योग जैसा स्वरूप ले चुका है।
14 साल पहले शांति ने की थी शुरुआत, 500 महिलाओं ने सीखा काम, 130 परिवारों को मिला रोजगार
शांति ने 14 साल पहले संकोच को पीछे छोड़ जूते-जूतियां बनाने की शुरुआत की थी तो उसे भरोसा था कि उनकी जैसी अन्य महिलाओं की शर्म और हिचक टूटेगी। इससे वे आत्मनिर्भर बन अपने परिवार के लोगों के चेहरों पर मुस्कान बिखेर सकेंगी। आज 130 परिवारों की 500 महिलाएं यह काम कर रही हैं और पूरे गर्व से इस कार्य में जुटी हुई हैं। इनके हाथों बने जूते-जूतियों की मांग सात राज्यों में है।
वास्तव में 14 साल पहले सैनीपुरा कॉलोनी निवासी शांति की जिंदगी में आर्थिक तंगी, कलह और रोटी की चिंता ही थी। शांति के पति दुर्गाराम दिहाड़ी मजदूर थे। जिस दिन काम नहीं मिलता, रोटी की चिंता सताने लगती। आर्थिक तंगी के कारण परिवार में कलह होती। लेकिन, शांति अब गरीब महिलाओं के लिए रोल मॉडल बन गई हैं।
शांति ने सामाजिक रूढिय़ों और संकोच को तोड़ पांच महिलाओं को साथ लेकर जूते-चप्पल और जूतियां बनाने का काम शुरू किया। उनके साथ आज महिलाओं का कारवां बन चुका है। 130 घरों की 500 से अधिक महिलाएं इस काम में लगी हुई हैं और सम्मानपूर्वक कमाई कर रही हैं। रोहतक की इन महिलाओं का दायरा हरियाणा सहित गुजरात, जम्मू-कश्मीर समेत सात राज्यों तक फैल गया है। इनके बनाए उत्पादों की बाजार में काफी डिमांड है। शादियों में तो इनकी बनाई जूतियां युवतियों की पहली पसंद बन गई हैं।
शांति कहती हैं कि करीब 14 साल पहले परिवार तंगहाली में गुजर रहा था। सरकारी मदद से इस काम को शुरू करने की ठानी। पहले थोड़ी झिझक थी, लेकिन जब झिझक छोड़ी तो तकदीर ही बदल गई। कुछ दिनों पूर्व हरियाणा के मुख्यमंत्री ने भी इन महिलाओं के काम की तारीफ की थी।
40 से 100 रुपये रेट
शांति ने बताया कि उनके द्वारा बनाए गए जूते, जूतियां और चप्पल बेहद सस्ते होते हैं। इनकी कीमत 40 से 100 रुपये तक होती है। आकर्षक, हलके व मजबूत उत्पादों की खरीदी के लिए अनेक कारोबारी खुद खींचे चले आ रहे हैं। जम्मू व गुजरात में ज्यादा डिमांड है। हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र में भी माल जाता है। दिल्ली से कच्चा माल मंगाती हैं। घर-घर में महिलाएं सिलाई, डिजाइन आदि के हिसाब से माल तैयार करती हैं। ऑर्डर के दौरान ही डिजाइन व रेट तय होते हैं। एक घर में दो दिन के अंदर करीब सौ जोड़ी माल तैयार होता है। दो-तीन दिन में ही कारोबारी माल ले जाते हैं।
समूह से जुड़ी तारा कहती हैं, सरकार हमें बेहतर बाजार मुहैया कराए तो हमें ज्यादा फायदा होगा। हमने कुछ साल पहले काम शुरू किया तो लोग ताने मारते थे। आज घरों के हालात सुधरे हैं। आर्थिक हालात बेहतर होने से नशे की लत भी कई पुरुष छोड़ चुके हैं। बड़े मेले, सम्मेलनों आदि के दौरान स्टाल लगाने के लिए माल पहुंचाने में भी मदद करते हैं।