वैदिक संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीनतम संस्कृति : डा. सुकामा
जागरण संवाददाता रोहतक वैदिक संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। इसका चितन सर्वाधिक व
जागरण संवाददाता, रोहतक :
वैदिक संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। इसका चितन सर्वाधिक वैज्ञानिक है। हवन यज्ञ से संपूर्ण सृष्टि का उन्नयन होता है। इसलिए ऋषियों ने यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म कहा है। यह विचार डा. सुकामा आचार्या ने व्यक्त किए। शनिवार को जाट कालेज के खेल मैदान में वैदिक ज्ञान प्रसार न्यास की ओर से नव संवत्सर के अवसर पर 11 कुंडीय हवन यज्ञ का आयोजन किया गया। जिसमें महिला, पुरूष और बच्चों ने भारी संख्या में भाग लिया। सभी ने 11 हवन कुंडों में हवन कर एक-दूसरे को बधाई दी। मुख्य वक्ता डा. राजेंद्र ने संस्कृत और संस्कृति के महत्व को बताया। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों और मठाधीशों ने संस्कृत के नाम पर, धर्म के नाम पर, ईश्वर के नाम पर आमजन को गुमराह कर रहे हैं। एमडीयू के संस्कृत विभाग के प्रोफेसर डा. सुरेंद्र कुमार ने वैदिक नव वर्ष की परिकल्पना को सरल व सुगम शब्दों में श्रोताओं के सामने रखा। इसके साथ ही जाट कालेज के पूर्व प्राचार्य डा. सुरेंद्र मलिक ने बताया कि पंचांगीय गणना के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिदू नव वर्ष का प्रारंभ होता है। इस बार 6 अप्रैल से विक्रम संवत् 2076 की शुरुआत हुई है। विक्रम संवत में प्रकृति की खूबसूरती दिखती है। प्रकृति कई तरह का सृजन करती है। पतझड़ में मुरझाए पौधों में नई जान आ जाती है। हर तरफ हरियाली नजर आने लगती है। इस दौरान डा. सुरेखा खोखर, डा. वेदप्रकाश श्योराण, डा. जसमेर हुड्डा, बलजीत हुड्डा, दयानंद लाल, देशराज कंवर सिंह गुलिया, आचार्या हरिदत्त, सतबीर छिकारा, सत्यवीर शास्त्री, सुखदा शास्त्री, सुगमा मुनि, पुष्पा आर्य, सुमन आर्य, महिपाल आर्य, राजकुमार यादव, धर्मदेव आर्य, सतपाल आर्य, गुरुकुल दर्शन योग सुंदरपुर के सभी ब्रह्मचारीगण मौजूद रहे।