हरियाणा में शिक्षकों को ट्रांसफर पॉलिसी की सुषमा ने दी थी सौगात
रोहतक पूर्व केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का रोहतक से गहरा नाता रहा है
अरुण शर्मा, रोहतक
पूर्व केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का रोहतक से गहरा नाता रहा है। सुषमा के निधन से हर कोई आहत दिखा। भाजपा प्रदेश कार्यालय के प्रभारी गुलशन भाटिया सुषमा स्वराज से वर्ष 1977 से जुड़े हैं। इनका कहना है कि बेहद मजबूत और लोकप्रिय राजनेता को आज हमने खो दिया है। उन्हें आज भी तमाम किस्से याद हैं।
गुलशन कहते हैं कि शिक्षा मंत्री रहते हुए पहली बार शिक्षकों के लिए सबसे बेहतर ट्रांसफर पॉलिसी की शुरुआत सुषमा स्वराज ने ही की थी। उन्होंने बताया कि ट्रांसफर पॉलिसी को लेकर विपक्ष ने खूब मुद्दा उठाया, लेकिन जब योजना को लागू किया तो विपक्षी नेताओं ने भी तारीफ की। प्रदेश में ट्रांसफर पॉलिसी लागू करने के बाद शिक्षकों से आवेदन मांगे गए। आवेदन में मनचाहे स्टेशनों यानी स्कूलों के नाम मांग लिए। प्रदेशभर के आवेदन का कार्य पूरा होते ही तीन में से एक-एक स्कूल में शिक्षकों को बिना परेशानी के तैनाती मिल गई थी। हरियाणा की यही पॉलिसी बाद में नजीर बनी थी। लोकप्रियता : किडनी फेल होने पर रोहतक के दो युवाओं ने की थी पहल
विदेश मंत्री रहते हुए जब सुषमा स्वराज की किडनी फेल होने की सूचना रोहतक तक पहुंची तो दो व्यक्ति आगे आए थे। नवंबर 2016 में शपथ-पत्र के साथ रिटौली निवासी सुनील कुमार व प्रमोद कुमार ने बिना शर्त सुषमा स्वराज को किडनी दान करने की पहल की थी। प्रशासन को भी पत्र लिखते हुए कहा था कि एम्स में जब भी बुलाया जाएगा, वह तुरंत चले जाएंगे। मजबूत इरादे : नारनौल में हुआ हमला, घबराईं नहीं
गुलशन भाटिया ने बताया कि वर्ष 1977 में पहली बार करनाल के लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान मुलाकात हुई। तब प्रदेश कार्यालय चंडीगढ़ में था। तब लंबे अर्से तक साथ काम किया। एक किस्सा सुनाते हुए गुलशन कहते हैं कि नारनौल में उप चुनाव थे। उस समय सुषमा स्वराज जनता पार्टी में थीं। उप चुनाव में प्रचार के दौरान सुषमा पर हमला हुआ, मैं उन्हें बचाकर लाया था। लेकिन सुषमा स्वराज हमले न डरीं और न घबराई। अगले दिन से फिर चुनाव प्रचार में जुट गईं। कार्यकर्ताओं के घर पर ही भोजन करती थीं। संस्कार : बेजोड़ थी याददाश्त, वक्त की थीं पाबंद
गुलशन एक और किस्सा सुनाते हैं। इनका कहना है कि गुरुग्राम में आयोजित कवि सम्मेलन में सुषमा स्वराज बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करने पहुंची थीं। सबसे अंत में जब संबोधन शुरू किया तो एक-एक कवि की प्रस्तुति का जवाब दिया। वहीं, समय की इतनी पाबंद थीं कि लोग उनकी आज तक तारीफ करते हैं।
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