स्वार्थ की दुनिया से दूर रहें विद्यार्थी
बच्चे समाज की अमूल्य धरोहर हैं। वो निस्वार्थ भावना से ओत-प्रोत होकर मित्रता करें। सभी को निस्वार्थ भाव से कार्य करना चाहिए।
बच्चे समाज की अमूल्य धरोहर हैं। वो निस्वार्थ भावना से ओत-प्रोत होकर मित्रता करें। एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना रखें। स्वार्थ की दुनिया से दूर रहकर अपने विद्यार्थी साथियों की मदद करें। स्वार्थ से दूर रहकर सेवा करने का अपना अलग आनंद होता है। जब एक बार निस्वार्थ कार्य करने की आदत पड़ जाती है तो फिर छूटती ही नहीं। अगर हम सेवा नहीं कर सकते तो हमारा यह मानव जीवन निरर्थक है। निस्वार्थ कार्य कर हम समाज को नई दिशा दे सकते हैं। असल में हमारा निस्वार्थ कार्य ही हमारे जीवन में कामयाबी की असल नींव रखता है। इसके लिए सेवा भाव को अपने हृदय के भीतर विकसित करना हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है। सामाजिक स्तर पर भी सभी को इस ओर लगातार प्रयास करने चाहिए, जिससे देश व समाज का भला हो सके। परोपकार करने से खुद को भी संतुष्टि मिलती है। प्रकृति भी निस्वार्थ भाव से हमें सब कुछ देती है। सूर्य हमें रोशनी देता है, चंद्रमा शीतलता देता है। बादल सभी के लिए वर्षा करते हैं और वायु सभी के लिए जीवन दायिनी है। सभी विद्यार्थी आने वाले सभी त्योहार बिना किसी भेदभाव के निस्वार्थ भाव से मनाएं। शिष्टता, सहजता, सरलता व सफलता को जीवन का ध्येय बनाएं। जो गरीब बच्चे शिक्षा संबंधी सामग्री से वंचित हैं उनकी सहायता करें। स्वार्थ से दूर रहते हुए अपने दोस्तों की तन-मन-धन से सहायता करें। जीवन के पथ पर चलते चलते अगर कोई साथ गलत राह पकड़ ले तो दोस्तों का कर्तव्य है कि उसे निस्वार्थ भावना से हाथ पकड़कर सही राह पर लाने को प्रयास करें।
- भद्रेश जैन, प्रधानाचार्या, वैश्य कन्या सीनियर सेकेंडरी स्कूल