सुरक्षित और लाभकारी है जीरो बजट प्राकृतिक खेती : आचार्य देवव्रत
जागरण संवाददाता, रोहतक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने शून्य लागत प्राकृतिक कृषि
जागरण संवाददाता, रोहतक
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने शून्य लागत प्राकृतिक कृषि प्रणाली को मानव, जमीन, स्वास्थ्य, पानी व किसान के लिए सुरक्षित लाभकारी बताया है। आचार्य देवव्रत का कहना है कि यही कृषि प्रणाली रासायकि व जैविक खेती का एकमात्र विकल्प है। बुधवार को हिमाचल के राज्यपाल देवव्रत सर्किट हाउस में पत्रकारों से वार्ता करते हुए यह बातें कहीं।
हिमाचल के राज्यपाल ने कहा कि हरियाणा सरकार के सहयोग से कुरूक्षेत्र में एक स्थाई प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया जाएगा, जिसमें रोजाना किसानों को शून्य लागत प्राकृतिक कृषि प्रणाली की ट्रे¨नग दी जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वर्ष 2022 तक हिमाचल प्रदेश को जहरीली रासायनिक खेती से मुक्त कर दिया जाएगा। राज्यपाल ने कहा कि हिमाचल सरकार ने 25 करोड़ रुपए की लागत से प्राकृतिक खेती को खुशहाल किसान नामक योजना लागू की है। इस योजना के तहत प्रदेश के किसानों को प्रशिक्षण तथा आवश्यक उपकरण प्रदान किए जाएंगे। प्राकृतिक खेती को पूर्ण रूप से सुरक्षित बताते हुए उन्होंने कहा कि यह खेती किसानों की आय को दोगुणी करने की क्षमता रखती है। राज्यपाल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को लेकर काम कर रहे हैं और प्राकृतिक खेती इस लक्ष्य की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उन्होंने कहा कि सूखे को मात देने में शून्य लागत प्राकृतिक खेती कारगर है। दरअसल इस विधि में अपेक्षाकृत मात्र दस फीसद पानी की जरूरत पड़ती है। कीट रोगों का भय एकदम समाप्त हो जाता है। पत्रकार वार्ता में हरियाणा शांति सेना के अध्यक्ष संपूर्ण ¨सह, उद्योगपति राजेश जैन व विजय बाबा भी उपस्थित रहे। योग गुरु बाबा रामदेव की ली जाएगी सहायता
आचार्य देवव्रत ने कहा कि इस प्रणाली के अंतर्गत उत्पादन लागत शून्य रहती है और कृषि उत्पाद भी विशुद्घ होते हैं। इससे भूमि की उत्पादन शक्ति बढ़ने के साथ ही ¨सचाई के लिए कम पानी की जरूरत होती है। इनका यह भी कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई तो उन्होंने योगगुरु रामदेव की मदद लेने की बात कही।
उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक में होगी शुरूआत
आंधप्रदेश, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उन्हें प्राकृतिक खेती के संबंध में विचार-विमर्श करने के लिए पुन: आमंत्रित किया है। छत्तीसगढ़ व कर्नाटक से भी प्राकृतिक खेती के समर्थन में उन्हें दोनों राज्यों से निमंत्रण मिला है। एक देशी गाय से 30 एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती की जा सकती है, जबकि जैविक खेती में 30 गाय के गोबर से एक एकड़ जमीन में खेती हो पाती है। उन्होंने कहा कि अधिक गोबर भी ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है। देशी गाय के गोबर के यह भी बताए लाभ
आचार्य देवव्रत ने कहा कि रासायनिक खेती से प्रदूषण बढ़ रहा है। जमीन की उर्वरा शक्ति घट रही है, लागत बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि हरियाणा और हिमाचल प्रदेश ने भू-जलस्तर तीन से चार फुट नीचे तक चला गया है। रासायनिक खेती को बीमारियों की जड़ बताया। रासायनिक खेती के लिए सरकार को हर वर्ष यूरिया पर 70 हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी देनी पड़ रही है। राज्यपाल ने कहा कि एक ग्राम देशी गाय के गोबर में 300 करोड़ जीवाणु होते हैं। शून्य लागत खेती पर एक नजर
-मुख्य फसल का लागत मूल्य, साथ में उत्पादित सह फसलों को विक्रय मूल्य से निकाल कर लागत को शून्य करना तथा मुख्य फसल को बोनस के रूप में लेना।
- खेती के लिए कोई भी संसाधन (खाद, बीज, कीटनाशक आदि) बाजार से न लाकर इसका निर्माण घर पर ही करने से लागत शून्य हो जाती और गांव का पैसा गांव में रहता है।
यह बताई खूबियां :: शून्य लागत खेती के चरण ::
1. बीजामृत (बीजशोधन) : 5 किलो देशी गाय का गोबर, 5 लीटर गोमूत्र, 50 ग्राम चूना, एक मुट्ठी पीपल के नीचे अथवा मेड़ की मिट्टी, 20 लीटर पानी में मिलाकर चौबीस घंटे रखें। दिन में दो बार लकड़ी से हिलाकर बीजामृत तैयार किया जाता। 100 किलो बीज का उपचार करके बुवाई की जाती है। इससे डीएपी, एनपीके समेत सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति होती है और कीटरोग की संभावना नगण्य हो जाती है।
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2. जीवामृत : इसे सूक्ष्म जीवाणुओं का महासागर कहा गया है। 5 से 10 लीटर गोमूत्र, 10 किलो देशी गाय का गोबर, 1 से दो किलो गुड़, 1 से दो किलो दलहन आटा, एक मुट्ठी जीवाणुयुक्त मिट्टी, 200 लीटर पानी। सभी को एक में मिलाकर ड्रम में जूट की बोरी से ढंके। दो दिन बाद जीवामृत को टपक ¨सचाई के साथ प्रयोग करें। जीवामृत का स्प्रे भी किया जा सकता है।
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3. घन जीवनामृत : 100 किलो गोबर, एक किलो गुड़, एक किलो दलहन आटा, 100 ग्राम जीवाणुयुक्त मिट्टी को पांच लीटर गोमूत्र में मिलाकर पेस्ट बनाएं। दो दिन छाया में सुखाकर बारीक करके बोरी में भर लें। एक एकड़ में एक कुंतल की दर से बुवाई करें। इससे पैदावार दो गुनी तक बढ़ सकती है।