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मनोहर लाल के लिए कोरोना संकट से निपटना उनके दूसरे कार्यकाल की पहली चुनौती

मनोहर लाल खट्टर ने अब तक जिनती जंग जीती है उनमें कोरोना से लड़कर जीतना काफी मुश्किल है। उनके दूसरे कार्यकाल की ये सबसे बड़ी चुनौती भी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 31 Mar 2020 03:14 PM (IST)Updated: Tue, 31 Mar 2020 03:14 PM (IST)
मनोहर लाल के लिए कोरोना संकट से निपटना उनके दूसरे कार्यकाल की पहली चुनौती
मनोहर लाल के लिए कोरोना संकट से निपटना उनके दूसरे कार्यकाल की पहली चुनौती

जगदीश त्रिपाठी। मुख्यमंत्री मनोहर लाल का भाग्य प्रबल है। लेकिन ऐसा योग उनकी कुंडली में अवश्य है, जो उनका टेस्ट लेता रहता है। वैसे तो अभी तक वह हर टेस्ट में पास होते रहे हैं, भले ही कुछ में फेल होते-होते बचे। कोरोना संकट से निपटना उनके दूसरे कार्यकाल की पहली चुनौती है। अभी तक तो उनका और उनकी सरकार का प्रदर्शन ठीक ही है। लेकिन कोरोना से जंग लंबी चलने वाली है। ईश्वर करें कि यह जंग वह जीत जाएं।

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वैसे इस जंग में विपक्ष भी उनके सिपहसालार के रूप में साथ खड़ा है। लड़ रहा है। मनोहर और उनके दो प्रमुख कमांडर उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला व स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज पूरी ताकत से कोरोना से जंग में अग्रिम मोर्चे पर हैं। विपक्षी विधायक व नेता भी जूझ रहे हैं। इस जंग को जीतने के लिए प्रदेश खाप पंचायत सहित सभी सामाजिक संगठन जुटे हैं। हरियाणा यह जंग जीतेगा। वैसे इसका श्रेय जाएगा प्रदेश सरकार को ही, लेकिन इसका वास्तविक श्रेय विपक्ष को और हरियाणा की जनता को भी है।

इस सबसे कठिन टेस्ट में मनोहर लाल पूरे के पूरे नंबरों के साथ पास होकर निकलें, सबकी दुआ है। अभी तक वे सभी टेस्ट में पास हुए हैं। भले ही किसी में कम नंबर से, किसी में अधिक नंबर से। पिछले कार्यकाल में सत्ता संभालते ही उन्हें रामपाल समर्थकों से जूझना पड़ा। पास हो गए। उसके बाद जाट आरक्षण आंदोलन की चुनौती झेली। इसमें तो वे फेल ही घोषित हो गए थे, यह बात अलग रही कि केंद्र ने ग्रेस माक्र्स देकर पास कर दिया। फिर डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को सजा होने के बाद हुर्ई ंहसा को रोकने के टेस्ट में जैसे-तैसे पास हो गए। लेकिन इसके बाद जो टेस्ट हुए उसमें भारी नंबर लेकर आए। चाहे वह नगर निगम के मेयर के चुनाव रहे हों या जींद उपचुनाव सभी जीते। लोकसभा चुनाव में सभी दस सीटें अपनी पार्टी को जिता दीं। लेकिन जब विधानसभा चुनाव जैसा बड़ा टेस्ट हुआ जो सीधे उनकी परफार्मेंस से जुड़ा था तो फेल हो गए। यह बात अलग है कि फिर मुख्यमंत्री बन गए।

नेताओं में पनप गई अध्ययन की रुचि : 

कोरोना से जंग में एकांतवास की भूमिका महत्वपूर्ण है। सभी एकांतवास में रहने का प्रयास कर रहे हैं। वर्क फ्रॉम होम के फार्मूले के तहत मंत्री हों या विधायक सभी अधिकतम समय घरों में बिता रहे हैं। आवश्यकता पर वीडियो कांफ्रेंस कर लेते हैं। लेकिन चौबीस घंटे का समय है कि बीतता नहीं। अब समय बिताने का सबसे अच्छा साधन है अध्ययन। इसलिए हर नेता खाली समय में कुछ न कुछ पढ़ने में लगा है। नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहराव की पुस्तक- द इनसाइडर पढ़ रहे हैं। उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला- द टिपिंग प्वाइंट का अध्ययन कर रहे हैं। इस किताब के लेखक मैल्कम टिमोथी ग्लेडवेल कनाडाई पत्रकार रहे हैं। उधर पूर्व नेता प्रतिपक्ष किरण चौधरी अपने दिल्ली स्थित आवास में रह रही हैं। अमूमन रात को 12 बजे सो जाने वालीं किरण चौधरी अब रात को तीन बजे सो रही हैं और सुबह साढ़े सात बजे उठ जाती हैं। वह आजकल सूफी साहित्य और काव्य पढ़ रही हैं। सूफी संतों की किताबों का उनकी लाइब्रेरी में बड़ा खजाना है। सो एक तरह से वे घरों से न निकलकर लॉकडाउन के दौरान लोगों को घरों में ही रहने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं। 

अपने देश में भी है रोटी : कोरोना से जंग में हरियाणा के लिए अच्छी बात यह है कि यहां का माइग्रेशन रेट देश में सबसे कम तीन फीसद ही है। वे अन्य प्रदेशों में कम ही जाते हैं। सरकारी नौकरी में हों तो मजबूरी है। हां, फिल्म जगत की बात दूसरी है। विदेश में भी घूमने भले चले जाएं या व्यावसायिक कारणों से जाएं, लेकिन कमाने बहुत कम जाते हैं। जो जाते भी हैं, उनमें भी पंजाब से सटे क्षेत्रों के लोग अधिक हैं। कारण पंजाब का प्रभाव है। इसलिए स्थिति नियंत्रण में है। एक बात और हरियाणा के लगभग सभी जिलों के शहरों में उद्योग हैं। इनमें बाहर से आए लोग काम करते हैं। कोरोना संकट के दौरान यहां से भी कुछ लोग अपने गांव लौट रहे हैं।

हालांकि उनकी संख्या उतनी नहीं है, जितनी दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से गांव लौटने वालों की है। इसकी  बड़ी वजह हरियाणा में उन्हें मिलने वाला अपनापन है। वे भी आम हरियाणवी की तरह मानते हैं कि यहीं अपना गांव है और  अपने यहां भी रोटी है। वे गांव जाने से परहेज कर रहे हैं। जो लौट रहे हैं, वे ऐसे लोग हैं जो खुद ही हरियाणा को अपना नहीं मान सके। यदि सारे लोग लौटने की चाहत रखते तो यह संख्या एक लाख से ऊपर पहुंच जाती।

(लेखक हरियाणा राज्य डेस्क के प्रभारी हैं)


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