भारतीय गुरुकुल संस्कृति के साथ बच्चों के संस्कारों पर भी दें जोर : कुलपति डा. रूपकिशोर
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के कुलपति डा. रूपकिशोर शास्त्री ने कहा कि वर्तमान में भारतीय गुरुकुल संस्कृति के साथ ही बचों के संस्कारों पर भी जोर देने की जरूरत है।
जागरण संवाददाता, रोहतक :
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के कुलपति डा. रूपकिशोर शास्त्री ने कहा कि वर्तमान में भारतीय गुरुकुल संस्कृति के साथ ही बच्चों के संस्कारों पर भी जोर देने की जरूरत है। शुरू से बच्चे यदि गुरुकुल में आते हैं तो संस्कार कुछ और होता है जबकि दसवीं करने के बाद गुरुकुल आने वाले बच्चों का संस्कार अलग होता है। वे रविवार को दयानंद मठ में आर्य प्रतिनिधि सभा हरयाणा की ओर से आयोजित दो दिवसीय विद्वान गोष्ठी में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चे संस्कृत भाषा के अलावा अन्य भाषाओं में भी पारंगत हों। उन्होंने गुरुकुलों में आई कठिनाइयों के साथ ही समाधान संबंधित विचार भी व्यक्त किए। आचार्य प्रमोद ने गुरुकुलों की अनेक समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त किए। स्वामी मुक्तानन्द ने कहा कि आर्ष पाठविधि के लिए केवल आचार्य बलदेव जैसा समर्पित व्यक्ति चाहिए। महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डा. सुरेंद्र कुमार ने कहा कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि पढ़ाया किसे जाए अनेक व्यक्ति अपने बच्चों को गुरुकुल में भेजने को तैयार नहीं हो रहे हैं। कुरुक्षेत्र से आए डा. राजेन्द्र विद्यालंकार ने बताया कि आज आर्षपाठविधि के विषय में अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं जिनका समाधान करना अति आवश्यक है। डा. सुरेंद्र कुमार गुरुग्राम ने सत्यार्थप्रकाश का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए बताया कि महर्षि ने आर्षपाठविधि के साथ-साथ अन्य भाषाओं को पढ़ने का सुझाव दिया है, जो सर्वमान्य है। इसके बाद सभा के उपप्रधान कन्हैयालाल की पुस्तक ईश्वर पर अविश्वास क्यों? का विमोचन किया गया। इस पुस्तक को सभी विद्वानों को वितरित भी किया गया। गोष्ठी में सार्वदेशिक आर्य वीर दल के संचालक स्वामी देवव्रत ने भी विचार रखे। स्वामी प्रणवानंद गुरुकुल गौतम नगर ने कहा कि अनेक समस्याओं के आने पर भी हमें विचलित नहीं होना चाहिए बल्कि तत्परता से कार्य करते रहना चाहिए। उन्होंने कहा सभी के सुझाव को नोट कर लिया जाए व इसकी एक कमेटी बनाई जाए जिसकी जिम्मेदारी आर्य प्रतिनिधि सभा हरयाणा के प्रधान मा. रामपाल आर्य को दी जाए। सभा ने विद्वानों को किया सम्मानित : सभा प्रधान मा. रामपाल आर्य ने दूरदराज से आए हुए विद्वानों को सम्मानित किया। अपने लक्ष्य व सभा की ओर से किए जा रहे सुधारों संबंधित विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने सभा के प्रमुख पांच उद्देश्य बताए जिनमें वैदिक विद्वान तैयार करना, आर्य वीर दल के आचार्य तैयार करना, सभा की जमीन को वापस करवाना, आर्यसमाज के संगठन को मजबूत करना व सभा की आर्थिक स्थिति को मजबूत करना आदि शामिल हैं। अन्त में शान्तिपाठ के साथ सभा का समापन किया गया। इस अवसर पर सभा के तमाम पदाधिकारी भी मौजूद रहे।