दिव्यांगता को पीछे छोड़ बनाई पहचान, बड़े-बड़े भी इनके हुनर के कायल
रतन चंदेल, रोहतक : इन्हें दिव्यांग न मानें जनाब, ये किसी भी फील्ड में कम नहीं हैं। रोहतक
रतन चंदेल, रोहतक :
इन्हें दिव्यांग न मानें जनाब, ये किसी भी फील्ड में कम नहीं हैं। रोहतक के अर्पण मानसिक दिव्यांग बाल संस्था के बच्चों के हुनर का तो कहना ही क्या। आम से लेकर खास लोग भी इनके हुनर के कायल हैं। संस्थान में इनकी कला के कई रंग निखर रहे हैं। आकर्षक डिजाइन की मोमबत्ती से लेकर डोने और फाइल बनाने तक में ये पारंगत हो रहे हैं। पिछले साल अगस्त में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की पत्नी सोनल शाह जब संस्थान में आई और इनकी प्रतिभा देखी तो वे भी इन बच्चों के हुनर की मुरीद हो गई थी और इनकी बनाई खास डिजाइन की मोमबत्ती व राखी लेकर गई। वहीं, सिरसा में रेडक्रॉस की ओर से कराए गए एक कार्यक्रम में तत्कालीन राज्यपाल कप्तान ¨सह सोलंकी भी उनकी कला के कायल हो गए और उनकी बनाई कैंडल लेकर गए। इतना ही नहीं, इनके कौशल विकास के चलते ही इनकी बनाई हुई इन वस्तुओं की प्रदर्शनी भी लगाई जाती है। इनकी बनाई फाइल व डोने आदि विश्वविद्यालयों व अन्य संस्थानों में भी पसंद किए जा रहे हैं। इनके प्रशिक्षकों का कहना है कि विशेष बच्चों में भी प्रतिभा कूट कूट कर भरी हुई है। बस इनकी प्रतिभा को पहचानकर उसे तराशने की जरूरत होती है। कुछ विशेष बच्चे तो यहां से पास आउट होने के बाद परिवार का हाथ भी बेहतर तरीके से बटा रहे हैं।
विश्वविद्यालयों से आ रहे ऑर्डर इनके हुनर के सब मुरीद हो रहे है। इनका किया काम एक बार कोई देख लेता है तो इनके काम को पसंद करने लगता है। यही कारण है कि महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, पंडित भगवत दयाल शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ प्रफोर्मिंग एंड विजुअल आर्ट्स रोहतक व भिवानी स्थित चौधरी बंसी लाल विश्वविद्यालय आदि से फाइल बनाने के आर्डर तक भी मिल रहे हैं। इनके अलावा डोने, लिफाफे व राखी आदि बनाने के भी आर्डर मिलते रहते हैं। - अर्पण मानसिक दिव्यांग बाल संस्था में वोकेशनल की ट्रे¨नग मेरे बेटे केशव ने ली है। जिसके बाद वह घर के सामान्य कार्याें में मेरे दूसरे बेटे की तरह ही हाथ बटाता है। दूसरे बेटे की तरह की वह भी जिम्मेदारी बखूबी निभा लेता है।
- कुलतार ¨सह, अभिभावक, सुभाष नगर । - मेरे बेटे कार्तिक ने अर्पण संस्थान में ट्रे¨नग ली। जिसके बाद उन्होंने कपड़े की दुकान पर भी बखूबी काम किया। हालांकि फिलहाल वह दुकान पर काम नहीं करता है। लेकिन अब हम उसे फिर से काम सौंपे जाने की तैयारी में हैं।
- ऊषा, अभिभावक, हाउ¨सग बोर्ड। रेडक्रॉस की ओर से संचालिक इस संस्थान में विशेष बच्चों को वोकेशनल ट्रे¨नग दी जाती है। यहां पर इन विशेष बच्चों को मोमबत्ती, लिफाफे, डोने व फाइल बनाना सिखाया जाता है। इनमें गजब की प्रतिभा है। विशेष बच्चों को कम न आका जाए, मौका मिलने पर यह बहुत बेहतरीन कार्य करने का माद्दा रखते हैं। विशेष बच्चों को दया की नहीं, बल्कि सहयोग और ट्रे¨नग की जरूरत होती है।
- नीलम, प्रोजेक्ट इंचार्ज, अर्पण मानसिक दिव्यांग संस्थान, रोहतक।