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हम दानवीर हैं साहब, एक के साथ मुफ्त देते हैं दो दुकान

रेवत नगरी में पहले वाले बड़े साहब की जगह दूसरे बड़े साहब आ गए हैं लेकिन हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के अधिकारियों की दानवीरता न पहले कम हुई थी न अब। इस विभाग का नाम हुडा से बदलकर अब एचएसवीपी हो गया है लेकिन इनकी कार्यप्रणाली नहीं बदली है। यहां के अफसर इतने दयालु और दानवीर हैं कि दस फुट चौड़ी दुकान के साथ बीस फुट चौड़ी ग्रीन बेल्ट या फुटपाथ मुफ्त ही दे देते हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Jun 2019 03:22 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jun 2019 03:22 PM (IST)
हम दानवीर हैं साहब, एक के साथ मुफ्त देते हैं दो दुकान
हम दानवीर हैं साहब, एक के साथ मुफ्त देते हैं दो दुकान

रेवत नगरी में पहले वाले बड़े साहब की जगह दूसरे बड़े साहब आ गए हैं, लेकिन हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के अधिकारियों की दानवीरता न पहले कम हुई थी न अब। इस विभाग का नाम हुडा से बदलकर अब एचएसवीपी हो गया है, लेकिन इनकी कार्यप्रणाली नहीं बदली है। यहां के अफसर इतने दयालु और दानवीर हैं कि दस फुट चौड़ी दुकान के साथ बीस फुट चौड़ी ग्रीन बेल्ट या फुटपाथ मुफ्त ही दे देते हैं। सेक्टर तीन जैसी पॉश कॉलोनियों में तो शाम के समय पूरी मेन सड़क ही दुकानदारों को सौंप दी जाती है। जाम लगता है तो लगता रहे बेशक इनकी बला से..यहां से गुजरते समय लोग गुस्से में भले ही प्रतिदिन इन्हें कोसते रहें, लेकिन इनकी दया कम नहीं होती। आखिर किसी की रोजी-रोटी पर ठोकर क्यों मारी जाए। अरे दस फुट चौड़ी दुकान के साथ अगर बीस फुट का फुटपाथ दुकानदार काम में ले रहे हैं तो किसी को क्यों तकलीफ हो रही है। अरे सरकारी खजाने में राजस्व ही तो बढ़ रहा है। किसी की कचौड़ी बिक रही है, किसी के दही भल्ले बिक रहे हैं, किसी के गोल गप्पे बिक रहे हैं, बाजार की रौनक बढ़ रही है तो तकलीफ क्यों। अरे भाई चटकारेदार लजीत व्यंजन खाने आएंगे तो कार सड़क पर ही खड़ी होगी न। नगर परिषद वाले भाई इसलिए तकलीफ नहीं करते क्योंकि अभी अतिक्रमण का मामला एचएसवीपी का है और एचएसवीपी वाले इसलिए अतिक्रमण नहीं हटाते क्योंकि उनकी भीतर दया, करुणा व दानदाता के गुण मौजूद हैं। सुना है दुकानदार बदले में अगर दक्षिणा देते हैं तो कुछ लोग विनम्रतापूर्वक इसे स्वीकार भी कर लेते हैं।

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बड़े साहब की अनुभवी आंखों से जरा बचकर

रेवत नगरी के बड़े साहब बड़ी कुर्सी पर बेशक पहली बार आए हैं, लेकिन रेवत नगरी की नस-नस से वाकिफ हैं। सुना है आइएएस बनने से पहले बड़े साहब जिले में कई ओहदे संभाल चुके हैं। उनसे कहां क्या हो रहा है यह छुपा हुआ नहीं है। ऐसे में जोगिया की नेक सलाह यही है कि बड़े साहब की अनुभवी आंखों से जरा बचकर रहना। तजुर्बेकार हैं। क्या कहते हैं खेली पायक। गलत करोगे तो कारनामा छुप नहीं पाएगा।

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स्कूल संचालकों को पसंद आने लगी राजनीति

स्कूल संचालकों का राजनीति में पदार्पण नया नहीं है, लेकिन महेंद्रगढ जिले के स्कूल संचालकों को राजनीति कुछ ज्यादा ही रास आ रही है। यदुवंशी शिक्षा निकेतन के संस्थापक राव बहादुर सिंह राजनीति में अपनी बहादुरी दिखाकर एक बार चंडीगढ़ पहुंच ही चुके हैं, वहीं अब आरपीएस के मालिक मनीष राव भी चंडीगढ़ पहुंचने के लिए भाजपा के द्वार पर दस्तक देने लग गए हैं। सुना है राजनीति में ऊंची पहुंच रखने वाले एक बिजनेसमैन बड़े बाबा का आशीर्वाद उन पर बना हुआ है। मनीष न केवल दादा को साध रहे हैं बल्कि राव को साधने में भी लगे हैं। उन्हें लगता है कि उपाध्यक्ष जी नारनौल जाएंगी तो अटेली का मैदान खाली हो जाएगा। एक अन्य स्कूल संचालक यूरो इंटरनेशन के सत्यवीर यादव खुद तो राजनीति में हैं ही अब बेटी स्वाती यादव भी राजनीति में पदार्पण कर चुकी है। जजपा की टिकट पर स्वाती ने भिवानी-महेंद्रगढ़ से चुनाव लड़ा था, लेकिन सफलता नहीं मिली। सुना है आजकल सत्यवीर यादव को भी भाजपा में देश का भविष्य दिख रहा है।

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चर्चा में रहता है बड़े साहब का यूं जाना

रेवत नगरी में इन दिनों एक बड़ी चर्चा बड़े साहब के तबादले की रहती है। तबादला अचानक क्यों हुआ? यह सवाल हर चौपाल-रेस्तरां में दिनभर पूछा जाता है। किसी के पास कुछ जवाब होता है तो किसी के पास कुछ। बादशाहपुर निवासी नरश्रेष्ठ के चहेते मान रहे हैं कि इससे उनके नेता की ताकत का अहसास हुआ है, जबकि किसी अन्य का यह कहना है कि शिक्षा विभाग में बड़े साहब को विशेष रूप से बिठाया गया है। वैसे असलियत यह बताई जा रही है कि बड़े साहब की बड़े राव कुछ ज्यादा ही तारीफ करने लग गए थे। बड़े साहब का एक गैर सरकारी संस्था बनाकर कैंसर कैंप लगवाना, कोचिग संस्थान शुरू करवाना व गरीबों की अन्य तरीकों से सेवा करना भी कुछ लोगों को रास नहीं आया। कहते हैं बड़े साहब नेता बनते जा रहे थे। उनके नए प्रयोग कुछ लोगों को रास नहीं आ रहे थे।

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