तार बांधकर ट्रेन की छत से लोगों को नीचे गिराकर मारा गया
अमित सैनी रेवाड़ी बेशक यह घटना मेरे जन्म से पहले की है लेकिन बावजी के मुंह से जब विभाजन के दर्द की कहानी सुनता था तो खुद को रोने से रोक नहीं पाता था। बावजी भी अकसर अपने गांव और घर को याद करके आंसूओं को रोक नहीं पाते थे तब मां और परिवार के अन्य लोग उनके आंसू पोंछते थे।
अमित सैनी, रेवाड़ी
बेशक यह घटना मेरे जन्म से पहले की है लेकिन बावजी के मुंह से जब विभाजन के दर्द की कहानी सुनता था तो खुद को रोने से रोक नहीं पाता था। बावजी भी अकसर अपने गांव और घर को याद करके आंसूओं को रोक नहीं पाते थे, तब मां और परिवार के अन्य लोग उनके आंसू पोंछते थे। शहर के माडल टाउन निवासी व भाजपा के जिला उपाध्यक्ष सुनील ग्रोवर पिता के मुंह से सुने हुए विभाजन के दर्द को याद करके आज भी सहम जाते हैं। सुनील ग्रोवर बताते हैं कि बुजुर्गों के साथ बैठने का मुझे काफी समय मिला। मेरे पिता स्वर्गीय ओम प्रकाश ग्रोवर ने मुझे पाकिस्तान के सियालकोट से हिदुस्तान आने के बारे में बहुत कुछ बताया। दादा लाला मंगल सेन और हमारे एक बुजुर्ग लाला बनारसी दास अकसर कहते थे कि हमने कभी सोचा भी नही था कि अपना घर, दुकान, सारा सामान, जायदाद और अपने लोगों को छोड़ कर जाना पड़ेगा। विभाजन की प्रक्रिया शुरू होते ही बदल गए थे लोग पाकिस्तान में पहले हिदू और मुसलमान प्यार से ही रहते थे, लेकिन जैसे ही विभाजन की प्रक्रिया शुरू हुई सियालकोट में रह रहे हमारे पड़ोसी मुसलमान भी बदल गए। उनकी नियत बदलने लगी तो दादा मंगलसेन परिवार के लोगों को लेकर कैंप में चले गए। कई दिन कैंप में बीते। हमारा परिवार काफी समृद्ध था। कैंप में राशन खत्म होने लगा तो हमारे दादा सेना के कुछ जवानों को साथ लेकर ट्रक में गए और सियालकोट के डस्का स्थिति अपने गोदाम से राशन लेकर आए। कुछ दिन कैंप में रहने के बाद परिवार ट्रेन से अमृतसर के लिए रवाना हुआ। बावजी बताते थे कि भीड़ अधिक होने के कारण रात के समय कुछ नौजवान रेल की छत पर सफर कर रहे थे। अचानक से तेज आवाज आने लगी और छत पर बैठे नौजवान ट्रेन की छत से नीचे गिरकर मरने लगे। ट्रेन रुकी तो देखा कि रेलगाड़ी की छत से कुछ ऊंचाई पर मुसलमानों ने पटरियों के साथ-साथ खड़े पेड़ों पर दोनों तरफ तारें बांध रखा था। यह देखना दर्दनाक था। रावी नदी के पार हिदुस्तान था लेकिन मुस्लिम लोको पायलट ने ट्रेन को बीच में ही रोक दिया। ट्रेन में बैठी सवारियों ने आपस में पैसे इकट्ठे करके लोको पायलट को दिए, तब जाकर उसने ट्रेन को आगे बढ़ाया और लोग अमृतसर तक पहुंचे। अमृतसर स्टेशन पर जब लोग सामान उतार रहे थे तो लोको पायलट ने ट्रेन को झटके से दौड़ा दिया। ज्यादातर लोगों का सामान ट्रेन में ही रह गया। लोग कूदकर नीचे आए और गंभीर रूप से घायल हो गए। इस मंजर को सुनकर रौंगटे खड़े हो जाते थे और हमारे बुजुर्गों ने तो इसे झेला था। रिश्तेदार लेकर आए रेवाड़ी अमृतसर में दादा मंगलसेन ने कपड़ों का कारोबार शुरू किया। हमारे एक रिश्तेदार हेडमास्टर पिशोरी लाल रेवाड़ी में रहते थे। वही हमारे परिवार के लोगों को रेवाड़ी लेकर आए। यहां आकर मोती चौक पर कपड़े की दुकान खोली। पिता ओमप्रकाश ग्रोवर शुरू से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े हुए थे। आपातकाल के दौरान बावजी ओमप्रकाश ग्रोवर और मुझे कई दिनों तक जेल में रखा गया और प्रताड़ित किया गया। बावजी ओमप्रकाश ग्रोवर कश्मीर आंदोलन, हिदी आंदोलन, गो रक्षा आंदोलन सहित अन्य आंदोलनों में 17 बार जेल गए। वर्ष 1997 से लेकर 2000 तक वह भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे थे। विभाजन की विभीषिका की यादें आज भी जख्मों को हरा कर देती है।