टीबी के गंभीर मरीजों की संख्या बढ़ी
बढ़ते प्रदूषण औद्योगिक विकास के साथ बदलती जीवन शैली ने क्षय रोग (टीबी) पर पूर्ण रूप से काबू पाना मुश्किल होता जा रहा है। साल दर साल टीबी के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। पिछले तीन माह के दौरान ही जिला में 342 टीबी के मरीज सामने आए हैं। इनमें उन मरीजों की संख्या अधिक है जो या तो इलाज बीच में छोड़ देते हैं या फिर इस बीमारी को गंभीरता से नहीं लेते। सरकार द्वारा नागरिक अस्पताल में निश्शुल्क उपचार की सुविधा मिलने के साथ मरीजों को पोषाहार के रूप में पांच सौ रुपये प्रतिमाह भी दिए जा रहे हैं। इतना ही नहीं स्वास्थ्य विभाग को मरीजों की सूचना देने और इलाज के लिए प्रेरित करने वाले निजी चिकित्सक आंगनबाड़ी और आशा वर्कर सरपचं या नंबरदारों को भी 500 रुपये मिलते हैं। इसके बावजूद क्षय रोग के मरीजों की संख्या बढ़ रही है।
ज्ञान प्रसाद, रेवाड़ी : जिले में बढ़ते प्रदूषण, औद्योगिक विकास व बदलती जीवन शैली ने क्षय रोग (टीबी) पर पूर्ण रूप से काबू पाना मुश्किल होता जा रहा है। साल दर साल टीबी के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। पिछले तीन माह के दौरान ही जिला में 342 टीबी के मरीज सामने आए हैं। इनमें उन मरीजों की संख्या अधिक है जो या तो इलाज बीच में छोड़ देते हैं या फिर बीमारी को गंभीरता से नहीं लेते। सरकार द्वारा नागरिक अस्पताल में निश्शुल्क उपचार की सुविधा के साथ मरीजों को पोषाहार के रूप में पांच सौ रुपये प्रतिमाह भी दिए जा रहे हैं। इतना ही नहीं स्वास्थ्य विभाग को मरीजों की सूचना देने और इलाज के लिए प्रेरित करने वाले निजी चिकित्सक, आंगनबाड़ी और आशावर्कर, सरपंच या नंबरदारों को भी 500 रुपये मिलते हैं। इसके बावजूद क्षय रोग के मरीजों का बढ़ता आंकड़ा चितनीय है।
अधूरे इलाज से बढ़ रहे ज्यादा मरीज:
जिला में टीबी के गंभीर मरीजों की संख्या अधिक है। चिकित्सकों के अनुसार इनमें प्रतिरोधी मरीजों की संख्या बढ़ना चिताजनक है। हालांकि चिकित्सक इसे चिकित्सा तकनीक में हुए विकास से मरीजों की पहचान आसानी से होने के कारण समय पर इलाज मिलना बता रहे हैं।
वर्ष सामान्य टीबी के मरीज जटिल टीबी के मरीज
2017 1456 34
2018 2098 70
2019 342 22 (जनवरी से 20 मार्च तक) सीबीनेट से मरीज की पहचान करना आसान:
टीबी की पहचान के लिए सीबीनाट (कार्टिज बेस्ड न्यूक्लिक एसिड एंम्पलीफिकेशन टेस्ट) प्रणाली से जांच आसान हो गई है। इस पद्धति में टीबी के किटाणु की पहचान आसानी से होने के साथ तुरंत इलाज आरंभ हो जाता है। सामान्य टीबी हो तो नियमित रूप से दवा का सेवन करने और परहेज करने पर छह माह इलाज हो जाता है। 1882 से मना रहे टीबी दिवस:
कभी लाइलाज रही टीबी का आज कामयाब इलाज संभव है। 24 मार्च 1882 को सर रॉबर्ट काक ने सबसे पहले टीबी के बैक्टीरिया के बारे में बताया था। इसलिए इस दिन को टीबी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस रोग से छुटकारा पाने का तरीका पूरा इलाज है। टीबी के लक्षण:
तीन सप्ताह से अधिक खांसी, शाम के समय बुखार आना, भूख व वजन कम होना, रात को पसीना आना, गर्दन या इसके आसपास गांठ बनना, फेफड़े या पेट में पानी भरने से दर्द रहना आदि टीबी के लक्षण हैं।
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जिला भर में टीबी के प्रति जागरुकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसी संदर्भ में रविवार को उपायुक्त अशोक कुमार शर्मा और सिविल सर्जन डॉ. कृष्ण कुमार टीबी के प्रति जागरूक करने के लिए वाहन को रवाना करेंगे। लोगों को सावधानी बरतने की जरूरत है।
- डॉ. टीसी तंवर, उपसिविल सर्जन एवं क्षयरोग नोडल अधिकारी, रेवाड़ी।