तर्पण: पिताजी के संस्कार कराते हैं मार्गदर्शन
मेरे पिता जी स्व. ओमदत्त शर्मा सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। वे सदा सदा हर किसी की भलाई के कार्य के लिए तत्पर रहते थे। उन्हें दिखावा करना पसंद नहीं था। सादा जीवन उच्च विचार की सीख को आदर्श मानकर मैं भी जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा हूं। आज भी मैं अपने जीवन की बहुत सी गुत्थियां उनके द्वारा दी गई सीख के अनुरूप ही सुलझा पाता हूं। वर्ष 2000 में रेल डाक सेवा से सेवानिवृत होकर प्रत्येक दिन सुबह व शाम राव तुलाराम पार्क में जाकर घास व पेड़ पौधों की सेवा करना व शहद व गुलाब जल से बनी देशी नुस्खों के बारे में जागरूक करना उनकी दिनचर्या में शामिल था। 23 जून 2011 को उनके निधन के बाद भी हम उनके द्वारा बताए हुए सच्चाई ईमानदारी व समाजसेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा लिए हम आज भी उन्हें नहीं भूलते। प्रत्येक दिन हमारा परिवार उनके दिए संस्कारों व उनकी बातों को याद कर उन्हें आज भी अपने पास होने का अहसास करते हैं।
मेरे पिता जी स्व. ओमदत्त शर्मा सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। वे सदा सदा हर किसी की भलाई के कार्य के लिए तत्पर रहते थे। उन्हें दिखावा करना पसंद नहीं था। सादा जीवन उच्च विचार की सीख को आदर्श मानकर मैं भी जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा हूं। आज भी मैं अपने जीवन की बहुत सी गुत्थियां उनके द्वारा दी गई सीख के अनुरूप ही सुलझा पाता हूं। वर्ष 2000 में रेल डाक सेवा से सेवानिवृत होकर प्रत्येक दिन सुबह व शाम राव तुलाराम पार्क में जाकर पेड़ पौधों की सेवा करना व शहद तथा गुलाब जल से बनी देशी नुस्खों के बारे में जागरूक करना उनकी दिनचर्या में शामिल था। 23 जून 2011 को उनके निधन के बाद भी हम उनके द्वारा बताए हुए सच्चाई ईमानदारी व समाजसेवा के मार्ग पर चल रहे हैं। प्रत्येक दिन हमारा परिवार उनके दिए संस्कारों व उनकी बातों को याद कर उन्हें आज भी अपने पास होने का अहसास करते हैं। उनकी कमी कभी पूरी नहीं की जा सकती। हमारा परिवार आज जहां है पिताजी के संस्कारों से है। आज भी उन्हें याद कर हमारी आंखें नम हो जाती हैं।
- हेमंत भारद्वाज, कुतुबपुर।
---
फोटो संख्या 33, 34 पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम पैदा किया मेरे पिताजी स्व. गो¨वदराम अग्रवाल को आज भी उनके नेक कार्यों, धार्मिक आस्था को बढ़ावा देने के लिए याद किया जाता है। उनमें जीवों के प्रति प्रेम भाव की परंपरा को मैं निभाने का प्रयास कर रहा हूं। 75 वर्ष की उम्र में उनका 25 नवंबर 2016 को निधन हो गया था। पिताजी ने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए व्यक्तिगत स्वार्थ को हावी नहीं होने देने की सीख देते थे। उन्होंने जीवनपर्यंत पशुओं के प्रति प्रेम भाव बनाए रखा। पक्षियों के लिए सुबह उठकर जगह जगह दाना देना उनकी दैनिक दिनचर्या में शामिल था। धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेना, जरूरमंदों की मदद करना, दान दक्षिणा देने के लिए वे सदैव तत्पर रहते थे। उनके द्वारा दिए संस्कार ही मुझे भी वक्त मिलने पर इसी परंपरा को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहा हूं।
- मुकेश अग्रवाल, बास सिताबराय।