भारत-पाक की दूरियां मिटा सकती है कबीर की शिक्षा
सुप्रसिद्ध लोक गायक पदमश्री प्रह्लाद ¨सह टिपानिया का मानना है कि संत कबीर ने 620 वर्ष पूर्व उस दौर में भी निडरता के साथ सभी पंथों को आइना दिखाया था जिस दौर में अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा था। इसी निडरता के साथ आज पाखंड छोड़कर संत-समाज को राजनीति से ऊपर उठकर अपनी बात कहनी होगी।
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी: सुप्रसिद्ध लोक गायक पदमश्री प्रह्लाद ¨सह टिपानिया का मानना है कि संत कबीर ने 620 वर्ष पूर्व उस दौर में भी निडरता के साथ सभी पंथों को आइना दिखाया था जिस दौर में अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा था। इसी निडरता के साथ आज पाखंड छोड़कर संत-समाज को राजनीति से ऊपर उठकर अपनी बात कहनी होगी। अगर
हम कबीर के आदर्शों की बात करेंगे तो ¨हदू-मुस्लिम की नहीं बल्कि इंसानियत की बात करनी होगी। कबीर की शिक्षाओं से हम न केवल देश के अंदर प्रेम-भाव पैदा कर सकते हैं, बल्कि पड़ोसी देशों से भी रिश्ते सुधार सकते हैं। भारत-पाक के बीच की दूरी भी मिटा सकते हैं।
संत कबीर उत्सव में भागीदारी करने रेवाड़ी आए टिपानियां मंगलवार को यहां के वृंदा होटल में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। देश में बढ़ते वैमनस्य की बात पर उनका दर्द लबों पर आ गया। उन्होंने कहा कि यह सच है कि आज देश में हजारों साधु-संत सत्संग सुना रहे हैं, लेकिन असलियत में ऐसे बाबाओं की संख्या अधिक है जो प्रकाश की ओर ले जाने की बजाय अंधेरे की ओर ले जा रहे हैं। ज्ञान के नाम पर परोसे जा रहे पाखंड आधारित अज्ञान ने समाज को अंधेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। कबीर इससे बचा सकते हैं। उनको समझना होगा। जानना होगा। अपनी पाकिस्तान यात्रा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सियासत दूरियां पैदा कर रही है। वहां के आम लोगों की रूहानियत में बड़ी रुचि है। वहां के आम लोग भारत से प्यार करते हैं। उनकी आस्था में सवाल नहीं है, लेकिन अमेरिका
में इससे उलट है। वहां के लोग जिज्ञासु हैं, लेकिन उनके पास सवालों की सूची है। वह आध्यात्म की गहराई को समझने के लिए सवाल पर सवाल करते हैं। कबीर को समझ लिया जाएगा तो सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे।
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टिपानिया का परिचय:
प्रह्लाद ¨सह टिपानिया कबीर भजन गायन की अपनी विशेष शैली के कारण आध्यात्म जगत के चर्चित चेहरे हैं। लोक गायक टिपानिया अमेरिका व पाकिस्तान में भी अपनी विधा का जलवा दिखा चुके हैं। मध्यप्रदेश के निवासी टिपानिया वर्ष 2011
में पदमश्री पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं। तंबूला उनका सबसे प्रिय वाद्य है। इसके अलावा खड़ताल, मंजीरा, ढोलक, हारमोनियम, टिमकी व वायलीन की टीम के साथ वह अपनी भजनों की प्रस्तुति देते हैं।