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कोरोना ने जोड़ दिए दिल के तार

वास्तव में सच्चा मित्र वही है जो मुसीबत के समय काम आए। मुसीबत भी ऐसी की जान के लाले पड़ जाए ऐसे में ही दोस्ती की सच्ची पहचान होती है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 01 Aug 2020 06:06 PM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2020 06:06 PM (IST)
कोरोना ने जोड़ दिए दिल के तार
कोरोना ने जोड़ दिए दिल के तार

अमित सैनी, रेवाड़ी

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वास्तव में सच्चा मित्र वही है, जो मुसीबत के समय काम आए। मुसीबत भी ऐसी की जीवन-मरण का प्रश्न हो और एक मित्र संजीवनी बूटी लाकर आपकी जान बचा दे। कोरोना संक्रमण के इस दौर में शहर के सेक्टर तीन निवासी योगेश जैन के लिए उनके मित्र प्रेम प्रकाश अग्रवाल व अकाउंटेंट विनोद किसी हनुमान से कम नहीं रहे, जिन्होंने कोरोना संक्रमित पाए जाने पर उनके लिए प्लाज्मा दिया और आज वह सही सलामत अपने परिवार के बीच हैं। भुला नहीं पाउंगा यह प्रेम शहर के सेक्टर तीन निवासी योगेश जैन स्वर्णकार है। उन्हें तबीयत कुछ ठीक नहीं लगी तो 4 जुलाई को उन्होंने कोविड के लिए अपना सैंपल दिया। 6 जुलाई को रिपोर्ट आई तो योगेश कोरोना पॉजिटिव पाए गए। चूंकि काफी समय से योगेश को मधुमेह भी है इसलिए कोरोना होने के बाद सांस में भी दिक्कत होने लगी। धीरे-धीरे कोरोना का असर फेफड़ों तक पहुंच गया। चिकित्सक राजीव जैन ने उन्हें गुरुग्राम के निजी अस्पताल में जाकर उपचार कराने की सलाह दी। वहां जांच कराने पर निर्णय लिया गया कि इस स्थिति में योगेश के जीवन को बचाना है तो प्लाज्मा थेरेपी करनी आवश्यक है। प्रश्न जीवन मरण का था, इसलिए जैन समाज के बहुत से लोग प्लाज्मा डोनर को ढूंढने में जुट चुके थे। योगेश जैन के मित्र नई अनाजमंडी निवासी प्रेम प्रकाश अग्रवाल को जब इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने भी अपने प्रयास शुरू कर दिए। प्रेम के यहां काम करने वाले अकाउंटेंट विनोद कुमार को कुछ दिनों पूर्व कोरोना हुआ था तथा ठीक होने के बाद वे काम पर आने लगे थे। जब यह जानकारी मिली कि कोरोना से ठीक हुए व्यक्ति की प्लाज्मा ही इसका बेहतर उपचार है तो प्रेम प्रकाश अग्रवाल अपने अकाउंटेंट विनोद कुमार के साथ गुरुग्राम के निजी अस्पताल में पहुंचे। वहां तमाम जांच कराने के बाद विनोद का प्लाज्मा मैच कर गया और उन्होंने अपना प्लाज्मा देकर योगेश के जीवन की रक्षा की। योगेश अब पूरी तरह से स्वस्थ होकर अपने घर लौट चुके हैं। योगेश का कहना है कि मित्र प्रेम प्रकाश के प्रेम और विनोद की निस्वार्थ सहायता को वह कभी भुला नहीं पाएंगे। वहीं प्रेम प्रकाश का कहना है कि मित्र होने का अर्थ यही है कि अपने मित्र की मुसीबत में हर संभव सहायता की जाए। मैंने और विनोद ने अपने इसी धर्म को निभाया है।


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