शहरनामा: अमित सैनी
कोरोना फैल रहा मलेरिया-डेंगू हम फैलाएंगे जनस्वास्थ्य विभाग आजकल एक ही नारे को लेकर
कोरोना फैल रहा, मलेरिया-डेंगू हम फैलाएंगे जनस्वास्थ्य विभाग आजकल एक ही नारे को लेकर चल रहा है। कोरोना फैल रहा है, मलेरिया और डेंगू हम फैलाएंगे। अधिकारी अपने इस नारे को सार्थक करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। एक बार कहीं सीवर ओवरफ्लो हो गया तो शिकायतें करते रहो कई-कई दिनों तक ठीक करने के लिए कोई नहीं पहुंचेगा। अगर तुरंत ठीक करने के लिए पहुंच गए तो विभाग ने जो संकल्प लिया है, वह पूरा कैसे हो पाएगा। शहर के मोहल्ला कंपनी बाग को ही ले लिजिए। यहां 15 दिनों तक गलियों में गंदा पानी भरा रहा, विधायक तक उठकर गली में पहुंच गए, लेकिन मजाल क्या विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों ने जल्दी से सुनवाई की हो। ठीक ऐसा ही हाल नई आबादी में भी रहा। गंदा पानी भरेगा, उसमें मच्छर पनपेंगे तभी तो मलेरिया और डेंगू फैलेगा। इतनी छोटी सी बात लोगों को समझ नहीं आती और लग जाते हैं शोर मचाने।
---- हमारी भागदौड़ में कमी हो तो बताओ जंगल का राजा बने बंदर की कहानी तो आपने सुनी ही होगी। जब आफत आई तो बंदर ने एक डाल से दूसरी डाल पर छलांग लगाकर खूब पसीना बहाया। भागदौड़ में कोई कमी नहीं छोड़ी फिर चाहे समस्या का समाधान हुआ या नहीं। कुछ ऐसा ही हाल शहर के ऐतिहासिक बड़ा तालाब व सोलहराही तालाब की दशा सुधारने के लिए बनाई जा रही योजनाओं का भी है। अधिकारियों व सरकार के नुमाइंदों ने पिछले दस सालों के दौरान भागदौड़ में कोई कमी नहीं छोड़ी है। बजट की घोषणा करनी हो या फिर लंबे चौड़े प्रोजेक्ट बनाना। पूरी जिम्मेदारी निभाई है। इन तालाबों में नौकाएं चलेंगी, यहां पिकनिक स्पॉट विकसित होंगे, रंग बिरंगे फव्वारे चलेंगे। सुंदर सपने दिखाने में भी कोई कमी न रह जाए इसका पूरा ध्यान रखा है। इतने सालों में भी अगर तालाबों की तस्वीर नहीं बदली है तो इसमें भला अधिकारियों और सरकार का क्या कसूर है।
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सब ठीक रहेगा तो हमें कौन पूछेगा बात तो सही है, अगर सब कुछ ठीक ठाक रहेगा तो अधिकारियों व कर्मचारियों को कौन पूछेगा, इसलिए जनता का परेशान रहना जरूरी है। माथे से जब पसीना बहेगा और लंबी-लंबी लाइनों में घंटो खड़े रहना पड़ेगा तभी तो मालुम चलेगा कि कुर्सी पर बैठे बाबू और दफ्तर में बैठे अधिकारी की कितनी हैसियत है। अब प्रॉपर्टी टैक्स का मामला ही देख लीजिए। जनता पिछले साल भी अधिकारियों के चक्कर लगा रही थी और इस बार भी हालात ऐसे ही हैं। भरने के बावजूद भी कई-कई सालों का बकाया प्रॉपर्टी टैक्स जोड़कर नोटिस भेज दिए गए हैं। टैक्स कम कराना है तो बाबू और अधिकारी की दो बातें सुननी ही पड़ेगी। सवाल उठ रहा है कि जनता को परेशान करने की बजाय नगर परिषद अपना रिकार्ड दुरुस्त क्यों नहीं करती? अगर ऐसा हो जाता तो अधिकारियों को लाचार जनता का परेशान चेहरा देखने का सुख थोड़े ही न मिल पाता।
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कृपा दृष्टि बड़ी काम की अधिकारियों की कृपा ²ष्टि भी बड़ी काम की होती है। जिन पर इनकी कृपा बरस जाए, उनको बिना काम के भी दाम मिलते रहते हैं। अब उन ठेकेदारों को ही देख लीजिए, जो काम करे या न करें उनकी भुगतान कोई नहीं रोक सकता। लाखों अगर बैठे-बैठे ही मिल जाए तो भला काम करने की जरूरत भी क्या है। शहर के सेक्टरों में पार्कों की देखरेख के लिए छोड़े गए ठेके को ही ले लिजिए। नप द्वारा जिस ठेकेदार को ठेका दिया गया है उसने कभी पार्कों की तरफ झांककर तक नहीं देखा। जब कभी सेक्टरवासियों द्वारा शोर मचाया जाता है तो कृपा ²ष्टि रखने वाले अधिकारी इशारा कर देते हैं और एक-दो श्रमिक भेजकर घास कटवा दी जाती है। ऐसे नकारा ठेकेदारों पर कृपा ²ष्टि रखने वाले अधिकारियों को जरा समझ लेना चाहिए कि कहीं इनको बचाते-बचाते खुद किसी दिन जनता के कोप का भाजन न बन जाए।