सैकड़ों के जीवन में 'होप' बनकर आया होप क्लब
जिस तरह जीवन के लिए सांस लेना आवश्यक है वैसे ही रक्त की एक-एक बूंद जरूरी है। इसे जरूरत पड़ने पर पूरा करने के लिए हॉप जैसी संस्था कार्य कर रही है।
अमित सैनी, रेवाड़ी
जिस तरह जीवन के लिए सांस लेना आवश्यक है, वैसे ही रक्त की एक-एक बूंद भी जीवनदायिनी ही होती है। रक्त की कमी को रक्त ही पूरा कर सकता है कोई अन्य चीज व कोई उपचार नहीं इस बात को सभी भली भांति जानते हैं। रक्त के अभाव में कोई दम न तोड़े, इसी मुहिम में जुटी है शहर की एक संस्था। होप क्लब नाम की यह संस्था न जाने कितने ही लोगों के जीवन में उम्मीद के रंग भर चुकी है। वहीं, शहर के मॉडल टाउन निवासी दीपा भारद्धाज खुद एक चलता फिरता ब्लड बैंक हैं, जो बीते 18 सालों में 48 बार रक्तदान कर चुकी हैं। हर वक्त तैयार रहते हैं रक्तदाता शहर के मोहल्ला चौधरीवाड़ा निवासी राजेश कुमार अग्रवाल होप क्लब के प्रधान है। राजेश बताते हैं कि मोहल्ले के ही चार-पांच युवकों के साथ मिलकर होप क्लब का गठन किया गया था। वर्तमान में अब क्लब के 38 स्थायी सदस्य हैं। क्लब के सदस्यों ने मिलकर सबसे पहले वर्ष 2015 में रक्तदान शिविर का आयोजन किया। तब से लेकर आजतक साल में दो से तीन बार रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाता है। अभी तक 12 शिविर लगाए जा चुके हैं तथा सैकड़ों यूनिट रक्त की एकत्रित करके नागरिक अस्पताल के ब्लड बैंक में दी जा चुकी है। इतना ही नहीं क्लब के पास 400 रक्तदाताओं की एक पूरी टीम है। इस टीम का काम इतना है कि जिस किसी को भी इमरजेंसी में रक्त की आवश्यकता हो तुरंत संबंधित ब्लड ग्रुप वाले सदस्य अस्पताल पहुंच जाते हैं और जरूरतमंद को रक्त देते हैं। इन डोनर का पूरा रिकार्ड क्लब के पास है। सैकड़ों लोगों को क्लब के सदस्य आपात स्थिति में रक्त दे चुके हैं। राजेश कुमार का कहना है कि रक्त का कोई अन्य विकल्प नहीं यही मानते हुए हम अपने पथ पर आगे बढ़ रहे हैं।
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रक्तदान के साथ ही नेत्रदान व देहदान भी शहर के मॉडल टाउन निवासी दीपा भारद्वाज चलता फिरता ब्लड बैंक हैं। वे अभी तक 48 बार रक्तदान कर चुकी हैं। उन्होंने 2002 में पहली बार रक्तदान किया था। उस समय वह लायनेस क्लब की प्रधान थी। तब से लेकर आजतक उनकी यह तपस्या जारी है। जिस भी रक्तदान शिविर के बारे में उनको जानकारी मिलती है, वे रक्तदान करने में अपनी भागीदारी जरूर निभाती है। 49 वर्ष की आयु में भी उनका जज्बा बरकरार है। उनका जज्बा यहीं तक सीमित नहीं है। वर्ष 2006 में ही उन्होंने पीजीआइएमएस रोहतक में नेत्रदान का फार्म भरकर जमा करा दिया था। वहीं संपूर्ण देहदान का फार्म भरकर भी वे जमा करा चुकी हैं तथा कई अन्य लोगों को भी रक्तदान, नेत्रदान व देहदान के लिए प्रेरित कर चुकी हैं। दीपा अपने पति को भी किडनी देना चाहती थी लेकिन ट्रांसप्लांट होने से पूर्व ही गत वर्ष उनका निधन हो गया था। दीपा का कहना है कि मेरे जीवन का बस यही ध्येय है, जीते जी रक्तदान व मरने के बाद देहदान।