कोरोना का कठिन काल है संयम काल
आज देश और दुनिया कोरोना के कठिन काल से गुजर रहे हैं। संपूर्ण मानव जाति को इस काल में संयम बररतने की आवश्यकता है।
आज देश और दुनिया कोरोना के कठिन काल से गुजर रहे हैं। संपूर्ण मानव जाति को इस काल में अतिरिक्त संयम बरतने की अनिवार्यता है, इसलिए इसको संयम काल भी कहा जा सकता है।
भारतीय प्राचीन संस्कृति प्रकृति में रची बसी थी, कितु मानवीय मूल्यों में आई निरंतर गिरावट के चलते हम प्रकृति से दूर होते चले गए। विकास के नाम पर हमने प्रकृति का न केवल निर्दयी दोहन किया, अपितु अपने नैतिक दायित्व का निर्वाह भी भूल गए। कोरोना काल प्रकृति से की गई खिलवाड़ का ही परिणाम है। इस वैश्विक महामारी ने हम सभी को चितन एवं मंथन के लिए बाध्य किया है कि हम पंचतत्व की रक्षा के लिए नए सिरे से संकल्पित हों। हमारे पूर्वज इन पंच तत्वों को ही भगवान मानते हुए इनको पूजते आए हैं। धरती, आकाश, आग, हवा और पानी के पांच महाभूतों से ही शरीर बना है। कोरोना के इस कठिन काल में हम एक बार नए सिरे से प्रकृति के सहचर बनें, इसके सजग प्रहरी बनें। जब हम सब नए सिरे से प्रकृति की तरफ लौटेंगे तो अधिकांश पर्यावरण की समस्याओं का समाधान होता चला जाएगा। पिछले दिनों लॉकडाउन के बाद प्रकृति का एक नया रूप सामने आया, जिसमें नदियों का अपने साफ होना, वायुमंडल का प्रदूषण रहित होना, आसमान का धूलरहित होना आदि से मानवीय गतिविधियों को समझा जा सकता है।
- महंत मुनीश्वर दास, संचालक बाबा पुरुषोत्तम दास सीताराम मंदिर बलवाड़ी