अब न मिलेगी पिता की गोद, न भरेगा मांग में ¨सदूर
-बेटे के सहारे जी रही मां के सूख नहीं रहे आंसू, कभी बेसुध हुई तो कभी तलाशती रही तस्वीरों को अमित सैनी, रेवाड़ी: दस महीने का लक्ष, अभी पापा बोलना ही सीखा था कि पिता का साया सिर से उठ गया। दो महीने पहले पापा जब छुट्टी आए थे तो खूब लाड़ चाव किया था। जितने दिन घर पर रहे बेटे को कलेजे से लगाकर रखा। कभी कंधे पर बैठाया तो कभी गोद में खिलाया। 2
अमित सैनी, रेवाड़ी : दस महीने का लक्ष, अभी पापा बोलना ही सीखा था कि पिता का साया सिर से उठ गया। दो महीने पहले पापा जब छुट्टी आए थे तो खूब लाड़ चाव किया था। जितने दिन घर पर रहे बेटे को कलेजे से लगाकर रखा। कभी कंधे पर बैठाया तो कभी गोद में खिलाया। 28 दिसंबर को ड्यूटी पर वापस जाते समय पत्नी को कहा था कि बेटे के जन्मदिन पर छुट्टी लेकर आउंगा और धूमधाम से कार्यक्रम करेंगे। लक्ष की मासूम नजरों को यह अहसास तक नहीं था कि अब चेहरे पर मुस्कान लिए पापा नहीं लौटेंगे, बल्कि अर्थी पर लेटे हुए उनका पार्थिव शरीर ही वापस आएगा। लक्ष को अब न पिता की गोद मिलेगी और न ही पत्नी राधा की मांग में कभी ¨सदूर भरेगा। उस मां की तो दुनिया ही उजड़ गई, जिसके लिए इकलौता बेटा ही सबकुछ था। संभाला था परिवार, अब खुद ही छोड़ गया अकेला
शहीद हरि ¨सह गांव के उन होनहार नौजवानों में से थे, उन्होंने जो जीवन में जो कुछ भी हासिल किया था, वह सिर्फ उनकी खुद की मेहनत थी। अप्रैल 2011 में अपनी मेहनत के बलबूते पर वह सेना में भर्ती हुए। सेना में भर्ती होने के कुछ माह बाद ही पिता का साया सिर से उठ गया था। पिता के जाने के बाद भी हरि ¨सह ने हिम्मत नहीं हारी तथा परिवार को संभालने का काम किया। तीन बहनों की जिम्मेदारी उठाई। 2 फरवरी 2016 को महेंद्रगढ़ जिला के गांव झगड़ौली निवासी राधाबाई के साथ उनका विवाह हुआ था। शादी के बाद परिवार में एक नया सदस्य आया। 16 अप्रैल 2018 को बेटे लक्ष चौहान ने जन्म लिया तो मानों घर की रौनक लौट आई, लेकिन यह खुशियां भी ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाई। घर को संवारने वाला आज सबको अकेला छोड़कर चला गया।