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Raksha Bandhan 2020: जानिए- कैसे रक्षा सूत्र में छिपी है कई सनातन परंपरा

Raksha Bandhan 2020 गुरुग्राम के मेदांता-द मेडिसिटी में प्रवेश करते ही पेड़ की प्रतिकृति पर बंधे हजारों रक्षा सूत्र बरबस ही ध्यान खींचते हैं।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 09:37 AM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 09:37 AM (IST)
Raksha Bandhan 2020:  जानिए- कैसे रक्षा सूत्र में छिपी है कई सनातन परंपरा
Raksha Bandhan 2020: जानिए- कैसे रक्षा सूत्र में छिपी है कई सनातन परंपरा

रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। 'येन बद्धो बलिराजा दानवेंद्रो महाबल:। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।' हिंदू संस्कृति में हर शुभ अवसर पर आपने इस श्लोक को अवश्य सुना होगा। इसका भावार्थ यह है कि ‘जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली दानवेंद्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बांधता हूं। हे रक्षे (राखी या रक्षा सूत्र) तुम अडिग रहना अर्थात अपने संकल्प से कभी विचलित न होना।’ इसके अलावा भी धार्मिक ग्रंथ व इतिहास रक्षा सूत्र की परंपराओं से जुड़े किस्से-कहानियों से भरे पड़े हैं। रक्षा सूत्र हमारी आस्था, हमारे विश्वास और जीवन के प्रति हमारे अहोभाग्य का प्रतीक है। मंदिरों की तरह लोगों को अब बड़े अस्पतालों में भी श्रद्धा के साथ मन्नत का धागा बांधते हुए देखा जा सकता है। दुनिया में प्रसिद्ध गुरुग्राम के मेदांता-द मेडिसिटी में प्रवेश करते ही पेड़ की प्रतिकृति पर बंधे हजारों रक्षा सूत्र बरबस ही ध्यान खींचते हैं। भाई की कलाई पर बहना द्वारा राखाी बांधने से अलग हटकर भी इस रक्षा सूत्र के कई सनातन सूत्र जुड़े हुए हैं।

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दीर्घायु की कामना के लिए सूत्र

मंदिरों में आमतौर पर पेड़ों पर मौली का धागा बांधा जाता है। यह दीर्घायु की कामना के लिए होता है। अस्पतालों में धागा बांधने के पीछे भी यही भाव है। कोरोना संक्रमण काल में यह आस्था और गहरी हुई है। संस्कृत में कहावत है-जनेन विधिना यस्तु रक्षा बंधनमाचरेत्! स सर्वदोष रहित, सुखी संवत्सरे भवेत्!! अर्थात विधिपूर्वक एक बार रक्षा सूत्र बांधने से व्यक्ति तमाम दोषों से रहित हो जाता है और संपूर्ण संवत्सर तक सुखी रहता है। पेड़ों या पेड़ की प्रतिकृति को रक्षा सूत्र बांधने के पीछे का भाव यही है।

ध्वज दंड को रक्षा सूत्र बांधते हैं स्वयं सेवक

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े सेवक रक्षाबंधन के दिन ध्वज प्रणाम से पूर्व ध्वज दंड को रक्षा सूत्र बांधते हैं। जिला संघ चालक अजय मित्तल के अनुसार इसके पीछे राष्ट्र रक्षा का संकल्प लेने की भावना रहती है। रक्षा सूत्र में दो तरफा सम्मान का संकल्प है। शिष्य गुरु को और गुरु शिष्य को, पुरोहित यजमान को और यजमान पुरोहित को रक्षा सूत्र बांधते हैं।

सोण, रंगोली, मांडणा व चीतण विधा

दक्षिण भारत में रंगोली की तरह राजस्थान में मांडणा की परंपरा है। हरियाणा में लोक संस्कृति से जुड़े लोग इसे ही चीतण कहते हैं। यह चित्रण का बदला रूप है। इस क्षेत्र में रक्षाबंधन के दिन घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर मांडणा या सोण बनाए जाते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीनिवास शास्त्री बताते हैं कि बहनें सुबह घर के दरवाजों पर सोण बनाती है। एक ओर स्वास्तिक होता है, दूसरी ओर गोबर की प्रतिकृति। गोबर से सूर्य की आकृति और घी-हल्दी से स्वास्तिक की प्रतिकृति बनाई जाती थी। समय के साथ थोड़ा बदलाव आया तो गेरू से आकृतियां बनने लगी। कहीं पर मानव आकृति भी बनाई जाती है। इसके पीछे का विज्ञान अपने कुल देवों का स्मरण व जीवन की क्षणभंगुरता के बीच भी उत्सव के साथ आनंद की अनुभूति में जीना है।

इस तरह बंधे थे राजा बलि

पुराणों में यह उल्लेख है कि दानवेंद्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण करके स्वर्ण का राज्य छीनने का प्रयास किया तो इंद्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान वामन अवतार लेकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे और तीन पग भूमि मांग ली। भगवान ने तीन पग में आकाश से पाताल तक सब कुछ नाप लिया और राजा बलि को रसातल में भेज दिया, लेकिन बलि अपनी भक्ति से भगवान से दिन-रात अपने सामने रहने का वचन ले चुके थे। भगवान विष्णु के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उनको रक्षा सूत्र बांधा और अपना भाई बनाया। इसके बाद ही उन्हें पति परमेश्वर मिल पाए। इसी क्रम में भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी कहानी भी है। कहते हैं एक बार युद्ध में श्रीकृष्ण की अंगुली पर चोट लग गई थी। द्रोपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा बांध दिया था। इस उपकार के बदले में कृष्ण ने संकट के समय मदद का आश्वासन दिया था।


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