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यादें: भूमि अधिग्रहण के विरोध में जब बहा था खून, सड़क पर उतरे थे किसान

रेवाड़ी में मल्टी मॉडल लाजिस्टिक हब के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बावल के 16 गांवों की 3664 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। किसानों ने इसका विरोध किया।

By Prateek KumarEdited By: Published: Thu, 16 Jul 2020 04:02 PM (IST)Updated: Thu, 16 Jul 2020 04:08 PM (IST)
यादें: भूमि अधिग्रहण के विरोध में जब बहा था खून, सड़क पर उतरे थे किसान
यादें: भूमि अधिग्रहण के विरोध में जब बहा था खून, सड़क पर उतरे थे किसान

रेवाड़ी [अमित सैनी]। 16 जुलाई 2012, यानि आज से ठीक आठ साल पहले भूमि अधिग्रहण के विरोध में हुए उस खूनी संघर्ष को कोई भुला नहीं पाएगा और न ही भुलाया जा सकेगा, किसानों का वह आंदोलन जिसमें सड़कों पर खूब बहा था। उस आंदोलन के बाद किसानों के संघर्ष की जीत अवश्य हो गई, लेकिन मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक हब, जो बावल क्षेत्र में बनना था वह नांगल चौधरी चला गया।

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3664 एकड़ जमीन का किया गया था अधिग्रहण

रेवाड़ी में मल्टी मॉडल लाजिस्टिक हब के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बावल के 16 गांवों की 3664 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। किसानों ने इसका विरोध किया। जिला नगर योजनाकार की टीम ने प्रस्तावित अधिगृहीत क्षेत्र में बने हुए निर्माणों को अवैध कहते हुए गिराना शुरू कर दिया तो किसानों ने संघर्ष की शुरुआत हुई। आसलवास गांव में 14 जून, 2012 को हुई ये घटना को लेकर डीटीपी कार्यालय ने आसलवास गांव के किसानों पर हमला करने का मामला दर्ज करवा दिया था। 17 जून 2012 को किसानों ने मुकदमें वापस लेने की मांग को लेकर धरना देना शुरू कर दिया।

विरोधी दलों के नेताओं ने दिया किसानों का साथ

विरोधी दलों के नेताओं ने भी किसानों का साथ दिया और कांग्रेस पर जमकर हमले बोले। 10 जुलाई 2012 को अधिग्रहण के विरोध में महापंचायत हुई तथा 11 जुलाई से जिला सचिवालय पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया गया। 16 जुलाई को बड़ी तादाद में किसान सचिवालय के बाहर एकत्रित हुए तथा ज्ञापन सौंपने के लिए भीतर जा रहे थे तब पुलिस और किसानों के बीच भीषण झड़प हुई थी। जिला सचिवालय में भारी तोड़फोड़ हुई थी तथा किसानों पर लाठीचार्ज भी किया गया था।

छह दिन बाद फिर हुआ था खूनी संघर्ष

किसानों और सरकार के बीच टकराव यहीं पर खत्म नहीं हुआ तथा जिला सचिवालय की घटना के विरोध में 22 जुलाई को किसानों ने महापंचायत बुलाई। आसलवास गांव के निकट राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या आठ के साथ में ही खाली मैदान में हुई। इस महापंचायत में भी मामला एक बार फिर से इतना तूल पकड़ गया कि किसानों और पुलिस के बीच खूनी संघर्ष हुआ। करोड़ों रुपये की संपत्ति को जलाकर राख कर दिया गया था।

सार्वजनिक नहीं हुई जस्टिस इकबाल सिंह आयोग की रिपोर्ट

अधिग्रहण को लेकर हुए खूनी संघर्ष में दर्जनों किसान व पुलिसकर्मी घायल हुए थे। इसकी जांच के लिए हुडा सरकार द्वारा जस्टिस इकबाल सिंह आयोग का गठन किया गया। उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जस्टिस इकबाल सिंह करीब चार महीनों तक रेवाड़ी में मामले की सुनवाई के लिए आते रहे। जांच पूरी हुए करीब पांच साल बीत चुके हैं लेकिन आजतक भी उनकी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है। किसानों के अधिवक्ता रहे कामरेड राजेंद्र सिंह का कहना है कि आयोग की रिपोर्ट किसानों के पक्ष में रही है। रिपोर्ट किसानों के विरोध में होती तो जरूर सार्वजनिक कर दी जाती।

नांगल चौधरी चला गया मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक हब

वर्ष 2014 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई और भाजपा के हाथों में शासन की चाभी आई तो चार दिसंबर 2014 को 16 गांवों की 3664 एकड़ जमीन का अवार्ड घोषित किया गया था। 1 करोड़ 66 लाख रुपये प्रति एकड़ तक की मुआवजा राशि घोषित की गई थी। इस जमीन में से 1200 एकड़ में मल्टी मॉडल लाजिस्टिक हब व शेष 2400 एकड़ में औद्योगिक एवं वाणिज्यिक गतिविधियों का विस्तार होना था। किसानों ने मुआवजा राशि को कम बताते हुए विरोध किया और सरकार से दो करोड़ रुपये प्रति एकड़ मुआवजा देने की मांग की। विरोध देखते हुए सरकार ने बिना देरी किए अधिग्रहण को रद कर दिया था। इसके बाद महेंद्रगढ़ के नेताओं की सक्रियता बढ़ गई थी और यह महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट नांगल चौधरी चला गया।


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