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मोदी सरकार की वजह से जल्द मिलेगी बड़ी खुशखबरी, 4 गुना सस्ती हो जाएंगी अर्थराइटिस की दवाएं

मोदी सरकार की नीतियों की बदौलत अगले कुछ महीनों में अर्थराइटिस की दवाएं 4 गुना तक सस्ती हो जाएगी। नवंबर से ही रेट कम होने की संभावना है। 20-20 हजार के इंजेक्शनों की कीमत घटकर 6-7 हजार रुपये आ जाएगी। यह सरकारी राहत का मरहम संकट मोचक का काम करेगा।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 12 Oct 2020 08:38 PM (IST)Updated: Mon, 12 Oct 2020 08:49 PM (IST)
मोदी सरकार की वजह से जल्द मिलेगी बड़ी खुशखबरी, 4 गुना सस्ती हो जाएंगी अर्थराइटिस की दवाएं
गठिया से पीड़ित शख्स की फाइल फोटो।

रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। आम बोलचाल में गठिया के नाम से प्रचलित अर्थराइटिस की बीमारी देश में लगातार बढ़ रही है। अब तो हर आयु वर्ग के लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। विश्व गठिया दिवस 2020 पर इससे जुड़े विषयों पर दैनिक जागरण ने सुप्रसिद्ध रुमेटोलॉजिस्ट डॉ. इंद्रजीत अग्रवाल से विस्तार से बात की। डॉ. इंद्रजीत अग्रवाल फिलहाल गुरुग्राम के पारस अस्पताल में रुमेटोलॉजी विभाग के अध्यक्ष हैं। उन्होंने काफी समय तक ब्रिटेन में भी सेवाएं दी हैं। प्रस्तुत है डॉ. इंद्रजीत अग्रवाल की जुबानी गठिया की पूरी कहानी।

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विश्व अर्थराइटिस (गठिया) दिवस के अवसर पर कारण, लक्षण और निवारण बताने से पहले गठिया के मरीजों के लिए मेरे पास अच्छी सूचना है। यह सूचना उनके लिए है जो महंगी दवाइयां खरीदने में असमर्थ हैं। मोदी सरकार की नीतियों की बदौलत अगले कुछ महीनों में अर्थराइटिस की दवाएं चार गुना तक सस्ती हो जाएंगी। नवंबर से ही रेट कम होने की संभावना है। गंभीर मरीज गठिया की जिन गोलियों (टैबलेट) के लिए अब हर माह 16 हजार रुपये खर्च रहे हैं, वही गोलियां उन्हें मात्र 2500 रुपये में मिल जाएंगी। इसी क्रम में 20-20 हजार के इंजेक्शनों की कीमत घटकर 6-7 हजार रुपये तक रह जाएगी। यह सरकारी राहत का मरहम संकट मोचक का काम करेगा।

गठिया दिवस और इससे जुड़ी प्रमुख बातें

हर वर्ष 12 अक्टूबर को विश्व गठिया दिवस मनाया जाता है। बदले लाइफ स्टाइल व खानपान की गलत आदतों के कारण युवा वर्ग भी इससे ग्रस्त होता जा रहा है। माना जाता है कि दो दशक में भारत में गठिया के लगभग 50 फीसद रोगी बढ़े हैं। एक अनुमान के अनुसार, लगभग 15 से 20 फीसद आबादी न्यूनाधिक इसकी चपेट में है। गठिया ऐसी बीमारी है, जहां आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रमण से लड़ने की बजाय गलती से आपकी उन कोशिकाओं पर हमला करती है जो जोड़ों को सही स्थिति में बनाए रखती है। इसी कारण दर्द व जकड़न पैदा होती है। निश्चित रूप से गठिया की बीमारी बढ़ी है, मगर आंकड़ा इस वजह से भी बढ़ा है, क्योंकि जागरूकता बढ़ी है। पहले टेस्ट नहीं होते थे। अब एचएलए बी27 सहित तमाम तरह के टेस्ट उपलब्ध हैं।

बीमारी के प्रमुख कारण

-वंशानुगत

-जोड़ों की पुरानी चोट

-मोटापा

-कंप्यूटर पर लगातार काम करना।

-मेहनत रहित लाइफ स्टाइल से बीपी, शुगर व यूरिक एसिड बढ़ना।

-धूम्रपान भी जोखिम बढ़ाता है।

मुख्य लक्षण

-जोड़ों में तेज दर्द, जकड़न व सूजन।

-सुबह के समय दर्द व जकड़न जैसे लक्षण अधिक होना।

-अंगुलियों में सूजन आना। मुट्ठी तक बंद नहीं हो पाती।

-कई बार बुखार भी आ जाता है।

-एचएलए बी-27 पाजिटिव रोगियों में कभी आंखों में सूजन, कभी किसी जोड़ में दर्द तो कभी आंतों सहित अन्य अंगों पर प्रभाव।

-कमर पर असर होने पर जटिल स्थिति हो जाती है। ऐसे अनकाइलो स्पोंडोलाइटिस कहते हैं।

कहां तक पहुंचा चिकित्सा विज्ञान:

पिछले 20 सालों में अच्छी मेडिसिन आ गई हैं। पहले दर्द निवारक परंपरागत दवाओं को छोड़कर विशेष इलाज नहीं था, मगर अब कई नई दवाएं आ चुकी है। लंबा उपचार है। धैर्य रखा जाए तो जीवनयापन ठीक से संभव है।

क्या है एचएलए-बी 27

एचएलए-बी 27 ऐसा प्रोटीन है जो श्वेत रक्त कोशिकाओं की सतह पर होता है। ह्यूमैन ल्यूकोसाइट एंटीजन (एचएलए) हमारे रोग प्रतिरक्षा तंत्र से जुड़े स्वस्थ शरीर के ऊतकों और उन बाहरी पदार्थ के बीच अंतर की पहचान करने में मदद करते हैं, जो संक्रमण का कारण हो सकते हैं। अधिकांश एचएलए हमारे शरीर को नुकसान से बचाते हैं, मगर एचएलए बी 27 ऐसा विशिष्ट प्रोटीन है जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली पर विपरीत असर डालता है। यह स्वस्थ कोशिकाओं पर ही हमला कर देता है, जिसके चलते आटो इम्यून रोग हो जाते हैं। एंकिलाजिंग स्पांडिलाइटिस तक हो जाती है। एंकिलाजिंग स्पांंडिलाइटिस होने पर रीढ़ की हड्डी में सूजन पैदा हो जाती है। कई बार एंटीरियर यूवेइटिस भी होता है। इससे आंख के बीच की परत में सूजन आ जाती है। रीढ़ की हड्डी के अलावा गर्दन व छाती पर कठोरता या सूजन भी महसूस होती है। वैसे यह जरूरी नहीं कि रक्त की जांच में जिनका एचएलबी 27 पाजिटिव हो उसे गठिया रोग होगा ही। ज्यादातर को एचएलबी पाजिटिव होने पर भी पूरे जीवन में गठिया नहीं होता। एंकिंलोजिंग स्पांडिलाइटिस से दुनिया में लगभग 1 प्रतिशत लोग पीड़ित हैं। इसकी पहचान में कई वर्ष लग जाते हैं। बीमारी की शुरुआत में कमरदर्द होती है। 

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