गुगनानी की पाठशाला का संदेश: स्वच्छ रहेंगे तो होंगे स्वस्थ
स्वस्थ समाज का अर्थ केवल बीमार को उपचार देना ही नहीं है। बीमारी के कारणों को दूर करना भी समाज को स्वस्थ बनाने की दिशा में बड़ा कदम है। किताबी ज्ञान के साथ-साथ नरेंद्र गुगनानी यह काम भी कर रहे हैं। जो बच्चे उनके झुग्गी-झोंपड़ी स्कूल में आ रहे हैं उन्हें स्वच्छता का पाठ भी पढ़ाया जा रहा है। गुगनानी आठ साल से अधिक समय से झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
विजय मिश्रा, रेवाड़ी
स्वस्थ समाज का अर्थ केवल बीमार को उपचार देना ही नहीं है। बीमारी के कारणों को दूर करना भी समाज को स्वस्थ बनाने की दिशा में बड़ा कदम है। किताबी ज्ञान के साथ-साथ नरेंद्र गुगनानी यह काम भी कर रहे हैं। जो बच्चे उनके झुग्गी-झोंपड़ी स्कूल में आ रहे हैं, उन्हें स्वच्छता का पाठ भी पढ़ाया जा रहा है। गुगनानी आठ साल से अधिक समय से झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के बच्चों को पढ़ा रहे हैं। वह अपनी इस सेवा के बदले नकद दान नहीं लेते बल्कि मित्र मंडली की मदद से बच्चों को किताब-कापियां उपलब्ध कराते हैं। उन्होंने 4 सितंबर 2009 को एसएनजेजे स्कूल (संदीप नारंग झुग्गी-झोंपड़ी स्कूल) की स्थापना की थी। स्थापना क्या बस महज 20 बच्चों को साथ लेकर एक पार्क में पाठशाला शुरू की थी। इनमें कुछ बच्चे ऐसे थे जो कूड़ा बीनते थे, कुछ ऐसे जो श्रमिक पिता की देसी शराब की बोतल में बची कुछ बूंदों को गटकते-गटकते नशे की गिरफ्त में आ गए थे और कुछ ऐसे जिन्होंने बीड़ी पीना व तंबाकू चबाना सीख लिया था। और कुछ ऐसे भी जिन्होंने भीख मांगना सीख लिया था। इन सबके अलावा बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे भी थे जो पढ़ना तो चाहते थे लेकिन जिन्हें स्कूल की चौखट नसीब नहीं हुई थी। ऐसे ही बच्चों को सही मार्ग दिखाने के लिए नरेंद्र गुगनानी ने झुग्गियों के पास पार्क में ही स्कूल चला दिया तो एक के बाद एक संख्या भी बढ़ती चली गई। इस समय सौ से अधिक बच्चे अध्ययनरत है, जबकि सैकड़ों बच्चों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश दिलाया जा चुका है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार व उत्तरप्रदेश सहित विभिन्न राज्यों के श्रमिकों व कचरा बीनने वाले लोगों के लिए नरेंद्र गुगनानी और उनकी टीम की पहल जीवन बदलने वाली साबित हुई है। गुगनानी को हरीश मलिक जैसे उन लोगों से प्रेरणा मिलती है, जो दिव्यांगों के लिए स्कूल चला रहे हैं। गुगनानी कहते हैं कि एक समय मैले-कुचले बच्चों को देखकर टीचर तैयार नहीं होती थी। हमने साथियों के साथ मिलकर इन बच्चों को किताबी ज्ञान ही नहीं दिया बल्कि साफ-सुथरा रहना भी सिखाया है। यह अकेले मेरा काम नहीं है बल्कि अब शहर के कई गणमान्य नागरिकों का इसमें योगदान मिल रहा है।
---------- स्वस्थ होंगे तो पढ़ेंगे बच्चे:
नरेंद्र गुगनानी कहते हैं कि यहां पढ़ने आने वाले बहुत से बच्चे ऐसे हैं जो सुबह मुंह धोकर भी नहीं आते। ऐसे में पढ़ाई के वक्त वे उबासियां लेते रहते हैं। इन बच्चों को समय समय पर साफ सफाई के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ वे स्वयं बच्चों के हाथों की सफाई करने के साथ बड़े और गंदे नाखूनों की क¨टग करते हैं। कई बच्चों के कपड़े इतने गंदे होते हैं कि धोने से साफ नहीं होते। इसलिए ऐसे बच्चों को समय समय पर विभिन्न समाजसेवियों के साथ मिलकर नए कपड़े मुहैया कराए जाते हैं। उनका मानना है कि बच्चों को बीमार होने से बचाने के लिए साफ सफाई पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। इसी के मद्देनजर बच्चों को शिक्षा के साथ संस्कार व सफाई पर पूरा ध्यान देने पर बल दिया जाता है। वह कहते हैं-बच्चे स्वस्थ होंगे तभी तो वे पढ़ाई में मन लगा सकेंगे। बहुत से बच्चों में इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। ऐसे बच्चे जो नियमित रूप से नहा धोकर नहीं आते थे वे अब साफ सुथरे होकर आने लगे हैं। गुगनानी का कहना है कि वे कई बार इन बच्चों के माता पिता के साथ भी काउंसि¨लग करते हुए स्वच्छता के प्रति जागरूक कर रहे हैं।