ऊंची उड़ान की प्रेरणा देता है मनी का संकल्प
यहां का छोटा सा गांव है माजरी। तीन दशक पूर्व इस गुर्जर बाहुल्य गांव में बेटियों की पढ़ाई के प्रति अधिक जागरूकता नहीं थी। बाल विवाह जैसी कुरीतियां कायम थी। युवा बेटियां अकेले घर से बाहर जाने की सोच भी नहीं सकती थी। उसी दौर में इस गांव की मनी देवी ने संकल्प लिया-'खुद नहीं पढ़ पाई तो क्या हुआ। पढ़ा तो सकती हूं।' मनी का संकल्प आज पूरा हो चुका है। उनका संकल्प हर किसी को ऊंची उड़ान की प्रेरणा देता है।
महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी
यहां का छोटा सा गांव है माजरी। तीन दशक पूर्व इस गुर्जर बाहुल्य गांव में बेटियों की पढ़ाई के प्रति अधिक जागरूकता नहीं थी। बाल विवाह जैसी कुरीतियां कायम थी। युवा बेटियां अकेले घर से बाहर जाने की सोच भी नहीं सकती थी। उसी दौर में इस गांव की मनी देवी ने संकल्प लिया-'खुद नहीं पढ़ पाई तो क्या हुआ। पढ़ा तो सकती
हूं।' मनी का संकल्प आज पूरा हो चुका है। उनका संकल्प हर किसी को ऊंची उड़ान की प्रेरणा देता है।
गुर्जर समुदाय लड़कियों की उच्च शिक्षा के मामले में आज भी पीछे है, लेकिन घर में 'मनी'(धन) का अभाव होते हुए भी गगन छूने की उपलब्धियां अपने नाम कर चुकी है। बड़ी बेटी सुनीता गुर्जर जहां सात वर्ष पूर्व बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का संदेश लेकर माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहरा चुकी है वहीं छोटी बेटी रेखा ¨सह चौकन तंजानिया की सबसे ऊंची चोटी 'किली मंजारो' पर तिरंगा फहरा चुकी है।
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बेटियों को दी लक्ष्य चुनने की आजादी
मनीदेवी के पति जौहरी ¨सह बीएसएफ के सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर हैं। आज घर में पैसे की कमी नहीं है, लेकिन पदोन्नति से पूर्व बतौर सिपाही उनके पास इतना पैसा नहीं था कि वह माउंट एवरेस्ट पर जाने की बेटी सुनीता की तमन्ना अकेले दम पर पूरी कर सके, लेकिन मां मनी का हौसला काम आया। उन्होंने न केवल बेटियों को लक्ष्य चुनने की आजादी दी बल्कि लक्ष्य हासिल करने में मदद भी दी। गणमान्य लोगों की आर्थिक मदद से बेटी को घर की चारदीवार छोड़कर माउंट एवरेस्ट जाने के लिए प्रेरित किया। लगभग 30 लाख रुपये की व्यवस्था करके बेटी की दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा फहराने की तमन्ना पूरी की। छोटी बेटी रेखा को बेंगलुरु के प्रतिष्ठित आरवी कालेज से इंर्फोमेशन साइंस में डिग्री दिलवाई। रेखा अब सालाना 35 लाख रुपये का पैकेज ले रही है। मनी व जौहरी का बेटा भी सीमा सुरक्षा बल में सेवारत है। अब जौहरी का परिवार रेवाड़ी शहर में बस चुका है, लेकिन कांटों से फूल तक के इस सफर में अगर किसी की सबसे अहम भूमिका है तो वह मनी देवी ही हैं।
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सेवा के लिए समर्पित है बेटियां
सुनीता काफी समय तक विवेकानंद केंद्र से जुड़ी रही। अब भी सेवा के लिए समर्पित भाव से काम कर रही है। कुछ दिन
पहले ही सुनीता ने कई राज्यों से होते हुए गुजरात से नेपाल तक साइकिल यात्रा की थी। सफर का लक्ष्य बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण भी था। बड़ी बहन की तरह छोटी बहन का भी एक सामाजिक लक्ष्य है-बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ। सुनीता जहां इस अभियान की रेवाड़ी जिले की ब्रांड एंबेसडर हैं वहीं रेखा भी भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा नारी सशक्तीकरण के लिए दिए गए योगदान के कारण सम्मानित हो चुकी है। रेखा ने दस जमा
दो स्तर पर विशेष उपलब्धि हासिल की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पत्र भेजकर रेखा का हौसला बढ़ाया था।
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हमारी नायक है मां
सुनीता व रेखा चौकन का कहना है कि आज हम जो कुछ भी हैं उसके पीछे हमारी मां है। पिता जौहरी ¨सह भी चाहते थे कि बेटियां आगे बढ़े, लेकिन मां न होती तो हम आज इस मुकाम पर नहीं पहुंचती। मां ने बंदिशें तोड़कर जीने की, पढ़ने की, घर की चारदीवारी का घेरा तोड़ने की, नया सीखने की व ऊंची उड़ान भरने की स्वतंत्रता दी। हमारी मां हमारी नायक हैं।