लीड---लॉकडाउन का असर, मकान बनने लगे घर
महेश कुमार वैद्य रेवाड़ी शाम के 3 बज चुके हैं। आसमान में हल्के बादल छाए हुए हैं।
महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी: शाम के 3 बज चुके हैं। आसमान में हल्के बादल छाए हैं। सेक्टर तीन की सुनसान गलियों से निकलकर कार इसी सेक्टर की मार्केट से होते हुए गढ़ी बोलनी रोड पर पहुंचती है, मगर हमेशा व्यस्त रहने वाले गढ़ी बोलनी रोड पर भी सन्नाटा पसरा है। शहर की ओर बढ़ने पर मार्स अस्पताल के पास कुछ गाड़ियां अवश्य नजर आती है, मगर मरीजों की भीड़ नदारद है। ऐसा लगता है कि जैसे बीमार ही गायब हो गए हैं।
इससे आगे अंबेडकर चौक व बस स्टैंड से लेकर नाईवाली चौक और मोती चौक तक ऐसी ही स्थिति है। लॉकडाउन के 10वें दिन भी हर जगह जनता कर्फ्यू जैसा सन्नाटा पसरा है। अगर लॉकडाउन का सबसे बड़ा असर देखें, तो मकान अब घर और पूरा शहर एक परिवार बन गया है।
पायलट चौक पर स्थित पुष्पांजलि अस्पताल निजी क्षेत्र का शहर का सबसे बड़ा अस्पताल है, मगर मरीजों की संख्या यहां पर भी गिनती की है। नारनौल रोड से आने वाले वाहनों की संख्या अधिक होने के कारण नाईवाली चौक क्रास करके झज्जर रोड की ओर जाने वाले वाहनों का रेलवे ओवरब्रिज के नीचे से निकाला जाता था, मगर अब यहां पर सन्नाटा पसरा है। मोती चौक, गोकल बाजार, जीवली बाजार, पंजाबी मार्केट, काठ मंडी, झज्जर चौक व रेलवे रोड शहर के सबसे भीड़-भाड़ वाले बाजार हैं, मगर पूरे मोती चौक बाजार में गिनती की पांच रेहड़ियां खड़ी है। इन रेहड़ियों पर भी ग्राहकों की भीड़ नहीं है। हर चौक पर पुलिस तैनात
इन दिनों शहर की सड़कों पर अगर कुछ नजर आता है, तो वह है सुबह के समय सफाईकर्मी व दिन-रात तैनात पुलिसकर्मी। अस्पताल में सेवाएं दे रहे डॉक्टर, नर्स व पैरा मेडिकल स्टाफ के लोगों की तरह पुलिस के जवान भी इन दिनों लोगों से सम्मान पा रहे हैं। राजीव गांधी चौक के निकट जिला सचिवालय पर भी हमेशा भारी भीड़ रहती थी। यहीं पर जिला न्यायालय है, मगर जिला सचिवालय व जिला न्यायिक परिसर में भी लोगों के दर्शन दुर्लभ है। सेक्टर एक की गली में दो लोग साथ-साथ जा रहे हैं। एक ने मोबाइल पर गाना लगाया हुआ है-सांसों का क्या भरोसा, रुक जाए चलते-चलते। दोनों हंस रहे हैं। जाहिर है भय मिश्रित सन्नाटे के बीच कोरोना की जंग जीतने की उनकी उम्मीद भी कायम है। अब साफ है मेरे शहर का आसमान
मेरे शहर का आसमान भी अब साफ है। एक बड़ा बदलाव यह भी है कि सुबह उठते ही अब चिड़ियों की चहचहाहट कुछ ज्यादा ही सुनाई पड़ती है। वाहनों का दबाव घटने से सड़कों से धूल गायब है। निर्माण कार्य बंद है, जिससे नीला आसमान बरबस ध्यान खींचता है। शाम के समय भी ऐसा लगता है, जैसे एकाएक आसमान में तारों की संख्या बढ़ गई है।
कानून से अधिक खुद की जागरूकता
लॉकडाउन में दोतरफा माहौल है। एक ओर कानून के डंडे का डर है, तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील और खुद की जागरूकता। पहली बात से अधिक असर दूसरी बात का है। अधिकांश लोग कानून से डरकर नहीं, बल्कि कोरोना के डर से खुद ही जागरूक हैं। प्रधानमंत्री की अपील का भी काफी असर है। साधारण आदमी भी यह कहता नजर आता है कि, भाई मोदी नै घर मैं भीतर रहण की कही है, तो किमी खास ई बात होगी। अब नो पावर कट
शहर में अब नो पावर कट है। गांवों में भी निर्धारित शेड्यूल के अनुसार बिजली मिल रही है। फैक्ट्रियों की मांग घटने से घरेलू आपूर्ति के लिए वैसे ही बिजली की कोई कमी नहीं रह गई है। दो बातों की चिता सबसे अधिक
लॉकडाउन का सकारात्मक पक्ष यह है कि लंबे समय बाद पूरा परिवार घर में एक साथ भोजन कर रहा है और मनोरंजन से जुड़ी गतिविधियों में शामिल हो रहा है, मगर दो बातों की चिता सबसे अधिक है। पहली बात-कहीं लॉकडाउन के बाद मंदी के दौर में नौकरी तो नहीं चली जाएगी? दूसरी बात-कहीं कारोना का कहर बढ़ न जाए।