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किसकी दुकान में कितना सामान, बंद मुट्ठी में छुपी पहचान

मुखिया जी का आगमन हुआ तो कमलदल वालों में पलक-पांवड़े बिछाने की होड़ लग गई। जोगिया की माने तो यह होड़ पलक-पांवड़े बिछाने की नहीं बल्कि अपने नंबर बनाने की थी। खैर असली बात यह है कि किसके कितने नंबर बन पाए? खबरची की माने तो यह सामने ही नहीं आ पाया कि किसकी दुकान में कितना सामान था, क्योंकि बंद मुट्ठी में सबकी पहचान छुपी रह गई। कहावत भी है कि भाई बंद मुट्ठी लाख की और खुली मुट्ठी खाक की।

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Dec 2018 05:20 PM (IST)Updated: Sun, 23 Dec 2018 05:20 PM (IST)
किसकी दुकान में कितना सामान, बंद मुट्ठी में छुपी पहचान
किसकी दुकान में कितना सामान, बंद मुट्ठी में छुपी पहचान

मुखिया जी का आगमन हुआ तो कमलदल वालों में पलक-पांवड़े बिछाने की होड़ लग गई। जोगिया की माने तो यह होड़ पलक-पांवड़े बिछाने की नहीं बल्कि अपने नंबर बनाने की थी। खैर असली बात यह है कि किसके कितने नंबर बन पाए? खबरची की माने तो यह सामने ही नहीं आ पाया कि किसकी दुकान में कितना सामान था, क्योंकि बंद मुट्ठी में सबकी पहचान छुपी रह गई। कहावत भी है कि भाई बंद मुट्ठी लाख की और खुली मुट्ठी खाक की। मुखिया जी जब सड़कों पर भ्रमण के लिए निकले तो पहले पड़ाव से ही लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि-हम अकेले ही चले थे-कारवां बढ़ता गया। जातिवाद की राजनीति से परहेज रखने की बात करने वाले कमलदल वालों ने जातियों के स्वागत द्वार का गणित कुछ ऐसा बिठाया कि मुखिया जी का शो सुपर हिट हो गया, लेकिन खबरची की इस बात से जोगिया सहमत नहीं है कि बंद मुट्ठी में पहचान छुपी रह गई है। ये पब्लिक है ये सब जानती है भाई। यहां न केवल सुधारक का दम लगा था, बल्कि उनके कुनबे के उस युवा चेहरे का भी जो चंडीगढ़ पहुंचने की कुछ ज्यादा ही जल्दी में दिख रहे हैं। सेक्टर तीन वाले डॉक्टर साहब की कई स्वागत द्वारों पर लगी फोटो भी यह बता रही थी कि कई दरवाजों के पीछे उनका अपना गणित है। इस गणित में प्रबंधन कौशल का चमत्कार खुलकर नजर आया। बावल के डॉक्टर साहब व कौशल नगरी के भाग्यशाली नेता ने भी दो स्थानों पर अपना दम दिखाया, जबकि सबसे अंत में सेक्टर एक वाले इंजीनियर अपना तकनीकी कौशल दिखाते रहे, लेकिन बिरादरी का गणित हल नहीं होता तो सबके चौराहों पर रौनक फीकी रह सकती थी। रामचंद्र के भाई भी बता रहे थे कि एक चौक पर उनकी शक्ति भी लगी थी। गढ़ी बोलनी रोड वाले पंडित जी इस पूरे गेम को अपनी चतुराई मान रहे हैं।

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साड्डे नाल रहोगे तो ऐश करोगे

बात लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृह की है। रेवत नगरी से जाते-जाते मुखिया जी अपने तीन मित्रों को कुछ इनाम देना चाह रहे थे। बिना मांगे उन्होंने सुधारक सहित तीनों मित्रों को 10-10 करोड़ का इनाम देने की बात कह दी। तीनों कहने लगे 15 करोड़ तो कर दो मुखिया जी। मुखिया जी ने कहा-सबको देना है। बराबर बांटकर दूंगा। इनको तो लगाओ। आचार संहित लगने वाली है। इस बीच खुद ही कहने लगे हमारे पास अनुसूचित जातियों की बस्तियों के लिए पैसा बचा हुआ है।

मुखिया जी को 5 करोड़, बावल के डॉक्टर साहब व कौशल नगरी के भाग्यशाली नेताजी को 4-4 करोड़ के प्रस्ताव भेजने की नेक सलाह दे डाली। इसके साथ ही मुखिया जी को तीनों मित्रों का अनुरोध याद आ गया। बोले-अब जोड़कर देखो। हो गए न 15-15 करोड़। मुखिया जी का गणित देखकर तीनों ने हां में गर्दन हिलाई और मुखिया जी यूं मुस्कराए जैसे कह रहे हों-साड्डे नाल रहोगे तो ऐश करोगे।

---------- फौजी नेता ने रुकवा दिया शिलान्यास

रेवत नगरी के नए बस स्टैंड के काम में मॉडल टाउन के फौजी नेता ने बेशक आज तक एक ईंट भी नहीं लगवाई हो, लेकिन बैठे-बैठे इस नेता ने एक कमाल अवश्य कर दिया कि मुखिया जी को भी एक ईंट नहीं लगाने दी। मुखिया जी के शहर भ्रमण से दो दिन पहले फौजी नेता दहाड़ते हुए बोले-कहां शिलान्यास करने ज रहे हो मुखिया जी? जरा मेरा लगाया हुआ पत्थर भी देख लेना। मुखिया जी ने तो बात मान ली लेकिन जोगिया ने जब उस पत्थर की तलाश की तो पता चला कि ऐसा पत्थर इंदिरा गांधी यूनिवर्सिटी में रखा हुआ है। खबरची ने सवाल उठाया-फौजी नेता जी किस-किस काम को अपना बताते रहोगे। सरकुलर रोड का शुभारंभ आप अपना बताते हो। माजरा में मेडिकल कॉलेज की स्वीकृति देने की उपलब्धि खुद लेते हो। मुखिया जी जो करेंगे उसे अपना बता देंगे। फिर बेचारे मुखिया जी करें क्या? चार ईंट लगाकर बस स्टैंड की बात करते तो ज्यादा अच्छा लगता जनाब। वैसे आप यह भी कह सकते हो कि कमलदल की सरकार भी तो हमने ही बनवाई थी। इसमें कुछ झूठ भी नहीं। आप व आपके दोस्तों की मेहरबानी से ही तो कमलदल वालों को राज में आने का मौका मिला है।


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