1952 के बाद रोहतक से पहली बार गैर जाट सांसद
यह घटनाक्रम को देखने का अपना-अपना नजरिया है। कुछ लोग रोहतक से डा. अरविद शर्मा को उम्मीदवार बनाने के भाजपा के फैसले को जातिवाद को बढ़ावा देने का कदम बता रहे हैं परंतु ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो इसे जातिवाद पर सामाजिक समरसता का हथौड़ा मान रहे हैं।
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी : यह घटनाक्रम को देखने का अपना-अपना नजरिया है। कुछ लोग रोहतक से डॉ. अरविद शर्मा को उम्मीदवार बनाने के भाजपा के फैसले को जातिवाद को बढ़ावा देने का कदम बता रहे हैं, परंतु ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो इसे जातिवाद पर सामाजिक समरसता का हथौड़ा मान रहे हैं। वर्ष 1952 के बाद से जाट बहुल रोहतक सीट से कोई भी गैर जाट चेहरा लोकसभा में नहीं पहुंचा था। ऐसा पहली बार है, जब भाजपा से डॉ. अरविद शर्मा सांसद बने हैं। रोहतक में जाटों की सबसे अधिक आबादी को देखते हुए प्रमुख पार्टियां गैर जाट उम्मीदवार उतारने की हिम्मत ही नहीं कर पा रही थी। भाजपा ने इस मिथक को तोड़ दिया है कि रोहतक से सिर्फ जाट जीत सकता है। भाजपा इसे जातिवाद पर चोट बता रही है। अंदरखाने जाट-नान जाट की राजनीति के आरोपों पर पार्टी खुलकर यह समझा रही है कि जाटों को प्रदेश में न केवल दो टिकट दी बल्कि दोनों को पूरी ताकत लगाकर जीत भी दिलाई। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष व रोहतक लोकसभा के प्रभारी अरविद यादव का कहना है कि जाति की राजनीति कांग्रेस करती रही थी। भाजपा सबको साथ लेकर चलने में यकीन करती है।
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भाजपा संकीर्ण दृष्टिकोण की राजनीति नहीं करती। भिवानी-महेंद्रगढ़ से चौ. धर्मबीर सिंह व हिसार से बृजेंद्र सिंह को टिकट दी गई। दोनों अब सांसद बन गए हैं। दोनों जाट हैं। ऐसे में रोहतक से डॉ. अरविद शर्मा को मैदान में उतारना कहां गलत हो गया। छत्तीस बिरादरी ने उनका साथ दिया। यहां लड़ाई जाटों के खिलाफ नहीं बल्कि हुड्डा परिवार के खिलाफ लड़ी गई। हम रोहतक में भाईचारा चाहते हैं। यहां जाट व गैर जाट के बीच की खाई पैदा नहीं होने देंगे। भाजपा का शुरू से ही सामाजिक समरसता का नजरिया रहा है।
-अरविद यादव, प्रदेश उपाध्यक्ष व रोहतक लोकसभा प्रभारी