मौसम के थपेड़ों से भी सर्द है सिस्टम पर जमी बर्फ
सर्दी का मौसम, पारा डेढ़ डिग्री तक पहुंच चुका है। ऐसे मौसम में सुबह साढ़े 5 बजे अगर टूटे शीशों वाली ट्रेन में सफर करना पड़ जाए तो यह किसी सजा से कम नहीं है। रेलवे हर रोज सैकड़ों लोगों को यह सजा दे रही है। रेवाड़ी से दिल्ली जाने वाली डीएमयू ट्रेन में बीते दो सालों से खिड़िकियों पर शीशे नहीं है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि सिस्टम पर किस कदर बर्फ की चादर जमी हुई है और आम आदमी इसका दंश झेल रहा है।
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी : सर्दी का मौसम, पारा डेढ़ डिग्री तक पहुंच चुका है। ऐसे मौसम में सुबह साढ़े पांच बजे अगर टूटे शीशों वाली ट्रेन में सफर करना पड़ जाए तो यह किसी सजा से कम नहीं है। रेलवे हर रोज सैकड़ों लोगों को यह सजा दे रहा है। रेवाड़ी से दिल्ली जाने वाली डीएमयू ट्रेन में बीते दो सालों से खिड़िकियों पर शीशे नहीं हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि सिस्टम पर किस कदर बर्फ की चादर जमी हुई है और आम आदमी इसका दंश झेल रहा है। रजाई लेकर जाने को मजबूर हैं लोग
रेवाड़ी से दिल्ली पहले पैसेंजर ट्रेन सुबह साढ़े पांच बजे रवाना होती है। यह गाड़ी संख्या 74003 डीएमयू ट्रेन है, जो पहले दिल्ली में चलती थी लेकिन बीते करीब दो सालों से रेलवे ने इसे रेवाड़ी-दिल्ली के बीच चलाना शुरू कर दिया है। यही ट्रेन दोपहर बाद दिल्ली से चलकर साढ़े चार बजे रेवाड़ी भी आती है। इस ट्रेन के रैक पूरी तरह से बदहाल स्थिति में हैं। ट्रेन की किसी भी खिड़की में शीशे नहीं हैं। सर्द हवाओं के थपेड़ों के बीच बगैर शीशे वाली ट्रेन में सफर करना कितना मुश्किल होता है, यह शायद रेलवे के अधिकारियों को नहीं पता, जिसके चलते यात्रियों की इस समस्या के प्रति वे गंभीर नहीं हैं। सुबह साढ़े पांच बजे रेवाड़ी से इस ट्रेन में सवार होने वाले लोग ठिठुरते हुए सफर करते हैं। हालात यह है कि लोग रजाई तक लेकर ट्रेन में सफर करने को मजबूर हैं। इस ट्रेन से बड़ी तादाद में दैनिक यात्री गुरुग्राम व दिल्ली जाते हैं। विभागीय अधिकारियों को एक दो नहीं बल्कि दर्जनों बार लिखित में शिकायत भी दी जा चुकी है, लेकिन मजाल किसी के कानों पर जूं रेंगी हो। सर्द हवाओं के थपेड़े जब यात्रियों को परेशान करते हैं तो उनके दिल से सिस्टम के लिए नकारात्मक बात ही निकलती है।
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यात्रियों का दर्द
मैं गुरुग्राम का रहने वाला हूं। यहां बावल की एक कंपनी में नौकरी करता हूं। इस ट्रेन से अकसर आना-जाना रहता है। ट्रेन में शीशे नहीं है, जिसके चलते ठंड में सफर करना बेहद मुश्किल हो गया है। कई बार स्टेशन अधीक्षक को शिकायत दे चुके हैं लेकिन कोई सुनने वाला ही नहीं।
-र¨वद्र शर्मा
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डीएमयू ट्रेन से सफर करना किसी सजा से कम नहीं है। सुबह के समय तो सर्द हवाओं के थपेड़े लगते हैं। ऐसे में रजाई तक लेकर सफर करना पड़ता है। रेलवे को कम से कम दो साल में तो शीशे लगवा ही देने चाहिए थे।
-हरिनाम
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मैं दैनिक रेलयात्री हूं। इस ट्रेन से सफर करता हूं। ट्रेन की कोई भी बोगी ऐसी नहीं है जिसमें शीशे लगे हुए हो। सुबह साढ़े पांच बजे टूटे शीशे की ट्रेन में सफर करना बेहद पीड़ादायक है लेकिन हमारी पीड़ा को सुनने वाला कोई नहीं है।
-सुनील कुमार
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रेलवे जैसा बड़ा विभाग यात्रियों को सजा दे रहा है यह बेहद दर्दनाक है। क्या पूरे सिस्टम पर ही बर्फ जमी हुई है जो आम यात्रियों की समस्या अधिकारियों को दिखती ही नहीं। हम दो साल से दंश झेल रहे हैं लेकिन शीशे तक नहीं लगवाए जा रहे।
-सत्यम
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गाड़ी में शीशे नहीं होना गंभीर समस्या है। निश्चित तौर पर उच्चाधिकारियों से इस बाबत बातचीत की जाएगी। यात्रियों की परेशानी का समाधान निकाला जाएगा।
-दीपक कुमार, सीपीआरओ नार्थन रेलवे।