संस्कारशाला: सार्थकता की ओर बढ़ना हो जीवन का मुख्य उद्देश्य
यह सर्वविदित है कि मनुष्य जल आकाश वायु अग्नि व पृथ्वी से मिलकर बना है। लेकिन उसके क्रियाकलाप ही उसे श्रेष्ठ या निम्न बनाते हैं।
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी : यह सर्वविदित है कि मनुष्य जल, आकाश, वायु, अग्नि व पृथ्वी से मिलकर बना है। जन्म लेने के बाद मनुष्य में अच्छाई, बुराई, दयालुता, निडरता, निष्कपटता आदि कई प्रकार के तत्वों की वृद्धि होने लगती है। इतिहास पढ़ें या पौराणिक रचनाएं, हमेशा निष्कपट शांत प्रवृति वाले ईमानदार व्यक्ति ही सर्वप्रिय होते हैं। शास्त्रों में वर्णन किया गया है कि मनुष्य जीवन का अर्थ ही दुर्गुणों पर विजय हासिल कर सार्थकता की ओर बढ़ना है। अपने दैनिक व्यवहार की बात करें तो बहुत से ऐसे लोग हैं, जो हमेशा किसी न किसी कर्मकांड में लगे रहते हैं। दुनियाभर के लोग व्रत, पूजा, तीर्थ, यज्ञ आदि करते रहते हैं फिर भी समाज के प्रिय व्यक्ति नहीं होते क्योंकि अहंकार ज्यादा होने के कारण वह अपना सम्मान प्राप्त नहीं कर पाता। वहीं, गुणवान व्यक्ति अति सहजता में जीता है और सर्वप्रिय होता है। उसके गुण स्थाई होते हैं, इनके कारण वह मुसीबतों के सामने नतमस्तक नहीं होता। इसके विपरीत ड्रामेबाज जल्दी ही झुक जाते हैं। देवताओं के संस्कार, पवित्रता, शांति, प्रेम, सुख, आनंद आदि संस्कार हमारे अंदर हैं और काम, क्रोध, लोभ, मोह अहंकार आदि बुरे संस्कार भी हमारे अंदर हैं। इसलिए अपने देवता रूपी संस्कारों को बढ़ावा देकर आसुरी जैसे संस्कारों पर विजय प्राप्त करने के लिए सकारात्मक शक्तियों का आह्वान अपने अंदर ही करना पड़ेगा। रामायण में विदित है कि हनुमान जी ने अहंकार से दूर रहकर श्रीराम के प्रति अपनी आस्था बनाए रखी। तभी तो जब सीता जी की खोज में निकले तो बाकि वानर भूख प्यास से व्याकुल थे लेकिन हनुमान जी ने धैर्यता का पालन किया तो विचलित नहीं हुए। हमने मंदिर बनाए, मस्जिद बनाई, धर्म के लिए लड़े, मूर्तियां बनाई, विसर्जन किया, लेकिन अपने मन के अंदर के शत्रुओं से लड़ने के लिए कुछ नहीं किया। समाज में आज इतने बुरे हालात हैं कि बहन-बेटियां अपने ही घर में सुरक्षित नहीं है। ऐसे में अपने अंदर की शक्ति को जगाकर, अपनी कमजोरियों को दूर करके हर इंसान को राम बनकर अपने दुर्गुणों का नाश करना होगा। हम में यदि क्रोध, लोभ, मद भरा है तो एक पल रुककर चितन करना होगा कि क्या मैं अपने अंदर के इन राक्षसों को समाप्त कर सकता हूं या नहीं। इनके उपयोग से हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि असुरों पर विजय पानी होगी। इसके बाद ही हम ज्यादा शांत, खुश एवं ऊर्जावान रह सकेंगे। प्रतिवर्ष होली, दिवाली, दुर्गा पूजा, नवरात्र आदि इसी उद्देश्य से मनाए जाते हैं कि हम मनुष्य जीवन की सच्चाई को समझें व इसे सार्थक बनाने का प्रयास करें।
- मधु यादव, प्राचार्या, एसडीएस सीनियर सेकेंडरी स्कूल, बोलनी
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घमंडी का सिर कभी ऊंचा हो नहीं सकता घमंड व्यक्ति को कभी नहीं उभार पाया है। ऐसे व्यक्ति कभी भी जीवन में आगे नहीं बढ़ पाते। कहा भी तो गया है कि जो पेड़ झुकता है, उसी पर फल लगते हैं। वहीं पेड़ छाया दे पाते हैं, जो अपनी शाखाओं को फैलाते हुए झुकाते हैं। अशोक के पेड़ को देखें तो इसकी छाया तक नहीं बन पाती। इसे घमंड का प्रतीक माना गया है। पुरातन कथाओं से भी यही सीखने को मिलता है। सतयुग में भगवान श्री राम से युद्ध करने वाला रावण महान ज्ञानी होने के बावजूद घमंडी था। उसके घमंड के कारण पूरे कुल का नाश हो गया। भगवान भी उन्हीं के हृदय में निवास करते हैं, जिनके मन में काम, अभिमान, लोभ और कपट नहीं होता। वर्तमान युग में मनुष्य में घमंड भरा है। हर व्यक्ति यही समझता है, जैसे वही इस ब्रह्मांड का निर्माता है और वही इसे क्षतिग्रस्त कर सकता है। वह भूल जाता है कि संपूर्ण सृष्टि के रचयिता भगवान क्षण भर में सभी का घमंड चकनाचूर कर सकते हैं। वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के कारण सभी दंभ भरने वाले, घमंडी व्यक्तियों का सर झुक गया है। जो स्वयं को बहुत बड़ा शक्तिशाली समझते थे, वही परिस्थिति के आगे घुटने टेकने पर मजबूर हो गए हैं। जिस धन पर उन्हें घमंड था वह भी जीवन बचाने में उनका साथ न दे पाया। इसलिए अभी भी संभलने का वक्त है। प्रेम से सभी का हृदय जीता जा सकता है, घमंड से नहीं। घमंड के इस चक्रव्यूह से स्वयं को बचाने के लिए चितन और मनन करना पड़ेगा। वरना वक्त रेत की तरह हाथ से निकल जायेगा और हम खाली हाथ ही रह जायेंगे। घमंड अक्सर अपनी किसी विशेषता के कारण उत्पन्न होता है। माना जाता है कि कोई शारीरिक विशेषता या गुण अथवा धन संपत्ति आदि की प्रचुरता घमंड का कारक है। इन सब बातों के कारण घमंडी व्यक्ति के मन में यह भाव आता है कि वही सर्वश्रेष्ठ है। वह अन्य सभी व्यक्तियों को तुच्छ और छोटा समझने लगता है। अपने घमंड में वशीभूत होकर वह अन्य व्यक्ति का सम्मान करना उचित नहीं समझता। अपनी विशेषता और गुण को सकारात्मक रूप में लेकर मन मे हमेशा विनम्रता का भाव रखना चाहिये। यह भाव अभिभावक और शिक्षकों में दिखना चाहिए ताकि बच्चों में घमंड का अवगुण नहीं पनप सके। हम उदाहरण नहीं बनेंगे तो बच्चों के मानस पटल पर घमंड और विनम्र भाव का अंतर नहीं बैठा पाएंगे, जो आगे चलकर घातक साबित हो सकता है।
- ललिता लुगानी, प्राचार्या, सीआर इंटरनेशनल स्कूल तिहाड़ा।