संस्कारशाला:: निर्णय लेने से ऊर्जा तो अनिर्णय से मिलती थकान
अब आप आगे क्या करेंगे, आपके जीवन का लक्ष्य क्या है, कौन सा करियर चुनेंगे..आदि ऐसे और अनगिनत सवाल हैं जिनका ज्यादातर एक जाना पहचाना जवाब मिलता है Þअभी तय नहीं हुआ है।' सही समय पर सही निर्णय न ले पाने की कमजोरी हमारे व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन को प्रभावित करती है। निर्णय न ले पाने की यह देरी विद्यार्थी, आम व्यक्ति और यहां तक की बड़े योजनाकारों तक को प्रभावित करती है। जीवन में कुछ प्राथमिकताएं तय कर उन्हें पूरा करने का भरपूर प्रयास करना हमें ऊचाईयों की ओर ले जाता है। सही समय पर सही निर्णय लेना एवं उसकी पालना करना जरूरी है। इसलिए कहा भी गया है कि निर्णय लेने से ऊर्जा उत्पन्न होती है और अनिर्णय से जीवन में थकान।
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी:
अब आप आगे क्या करेंगे, आपके जीवन का लक्ष्य क्या है, कौन सा करियर चुनेंगे..आदि ऐसे और अनगिनत सवाल हैं, जिनका ज्यादातर एक जाना पहचाना जवाब मिलता है 'अभी तय नहीं हुआ है।' सही समय पर सही निर्णय न ले पाने की कमजोरी हमारे व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन को प्रभावित करती है। निर्णय न ले पाने की यह देरी विद्यार्थी, आम व्यक्ति और यहां तक की बड़े योजनाकारों तक को प्रभावित करती है। जीवन में कुछ प्राथमिकताएं तय कर उन्हें पूरा करने का भरपूर प्रयास करना हमें ऊंचाइयों की ओर ले जाता है। सही समय पर सही निर्णय लेना एवं उसकी पालना करना जरूरी है। इसलिए कहा भी गया है कि निर्णय लेने से ऊर्जा उत्पन्न होती है और अनिर्णय से जीवन में थकान।
आज समाज में बच्चों से लेकर बड़ों तक हर व्यक्ति क्या करें और क्या न करें के सवालों में उलझा हुआ है। ¨ककर्तव्यविमूढ़ रहने की यह स्थिति जितनी लंबी चलती है, उतनी नुकसानदायक होती है। जीवन में हर व्यक्ति को कभी न कभी कोई न कोई अवसर प्राप्त होता है, लेकिन आत्मविश्वास के अभाव में असमंजस में रहने वाला व्यक्ति इस अवसर का फायदा नहीं उठा पाता। कहा भी गया है कि अवसर का लाभ तो केवल तैयार व्यक्ति ही उठा पाते हैं। विद्यार्थी जीवन और विकट परिस्थितियां ऐसे दो अवसर हैं, जहां लिए गए निर्णय पूरा जीवन बदल डालते हैं। छात्र जीवन का निर्णय होता निर्णायक:
विद्यार्थी जीवन वह समय है, जब जोश, उत्साह, तत्परता एवं असीम ऊर्जा होती है। इस अवधि में सही लक्ष्य निर्धारित करना महत्वपूर्ण है। अपनी स्वयं की रुचि, लगन एवं जीवन के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए लक्ष्य निर्धारण करने से महत्वपूर्ण निर्णय लेने में आसानी होती है।
अथाह समुद्र, गहरे जंगल, घनी धुंध एवं श्याह अंधेरे में जिस प्रकार दिशा भटकते हैं, उसी प्रकार जीवन में भी विकट परिस्थिति में सब कुछ धुंधला नजर आता है। स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाती है और मनुष्य एक प्रकार से हतोत्साहित हो जाता है। ऐसे में अनुभव आत्मविश्वास एवं दृढ़ता हमारे लिए काफी मददगार होते हैं। सही निर्णय लेने में मददगार ¨बदु
परिस्थितियों का सही आकलन करें। संयमित रहें। जल्दबाजी न करें। निर्णय आप अपनी इच्छा से ही लें। ऐसे लोगों को नजरअंदाज करें जो अपनी राय आप पर थोपना चाहते हो। जरूरत पड़ने पर माता पिता, शुभ¨चतकों या अनुभवी विशेषज्ञ से मदद ले। संभावित सभी फायदे एवं नुकसानों का अच्छे से आकलन करें। निराशावादी विचारों के प्रभाव में न आएं। इसमें अति उत्साह से भी बचना जरूरी है। पूरी योजना अच्छे से तैयार करें। निर्णय का मूल्यांकन करें। लिए गए निर्णय पर दृढ़ता से कायम रहते हुए तत्परता से लागू करना चाहिए।
- अनिल कुमार, ¨प्रसिपल, नवज्योति पब्लिक स्कूल, पीथड़ावास।
---------- स्वयं लेनी होगी जिम्मेदारी
समाज और राष्ट्र की उन्नति में प्रत्येक नागरिक का योगदान होता है। सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति जहां व्यक्तिगत विकास का परिचायक है, वहीं सामूहिक लक्ष्य निर्धारण समाज और राष्ट्र की दशा और दिशा निर्धारित होता है। इसमें छात्र जीवन का अहम योगदान होता है। विद्यार्थी किसी भी देश, समाज, दुनिया या संसार का मूल आधार है। यह हमारे संकल्पकों को आशाओं को मूर्त रूप प्रदान करने वाला शिल्पी है। यह स्वयं में समाज के लिए साधन, साध्य तथा साधना है। शिक्षण अधिगम के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन तथा विकास हुए हैं। अशिक्षितों के अनुपात में भारी गिरावट आई है। आज लोगों को अपनी रुचि का विषय चुनते हुए अपनी पसंद के क्षेत्र में अध्ययन तथा रोजगार प्राप्त करने के अवसरों की नि:संदेह स्वतंत्रता प्राप्त हुई हैं। विद्यार्थी को अपने कर्तव्यों के प्रति सजग बनाना उन्हें एक उद्देश्यमूलक तथा मानवतावादी दृष्टिकोण देना, उन्हें सही मायनों में एक सच्चा इंसान बनने की ओर प्रेरित करने वाली भावना का विकास करने का क्रम करने का शुभारंभ होना अभी बाकि है। यह किसकी जिम्मेदारी होगी यह अभी तय नहीं हुआ है। आज के अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को कामयाब बनाने की जिम्मेदारी स्कूलों पर छोड़ रहे हैं। वे कहते हैं कि इन बच्चों को पढ़ना और कामयाब करना शिक्षकों की जिम्मेदारी है। इस भूमिका का निर्वाह करना तथा अपने बच्चों के विकास में स्वयं माता-पिता के योगदान का आवश्यक रूप से होना अभी तय नहीं हुआ है। शिक्षा व्यवस्था का उत्तरदायित्व है कि वह बालकों में नैतिक विकास, धर्ममूलक, पारिवारिक सहयोग, मानवता मूलक गुणों की स्थापना तथा विकास करें। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, हर व्यक्ति अपने स्वार्थों से जकड़ा हुआ है, बच्चे माता पिता की अवहेलना कर रहे हैं, वृद्ध माता पिता को वृद्धाश्रम की शरण लेनी पड़ रही है। यही मानव का विकास बनकर रह गया है। भौतिक विकास ज्यादा जरूरी है या आत्मिक विकास, यह सुनिश्चित करना अभी तय नहीं हुआ है। आधुनिक मानव एक संवेदनहीन यंत्र बनना चाहता है या सार्वभौमिक सुख व शांति का परिचायक, एक देवदूत बनना चाहता है। जब कोई कार्य या योजना सफल हो जाती है तो हम उसका श्रेय तत्परता से लेना चाहते हैं। परंतु जब कोई शिकायत होती है तो हम आसानी से किसी और को इसका दोषी बता देते हैं। सफलता तथा विफलता के प्रतिफलों के उत्तरदायित्व को समान भाव से स्वीकार करना अभी हमारे द्वारा तय नहीं हुआ है। जब तक हम स्वयं निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होंगे कामयाबी सहजता से नहीं मिल पाएगी।
- सुरेश यादव, निदेशक, पोलस्टार पब्लिक स्कूल निमोठ।