अब सरकार के जवाब पर टिकी सबकी निगाहें
-सिर्फ तीन जातियों से क्यों बनते हैं राष्ट्रपति के अंगरक्षक -अतिरिक्त सालिसिटर जनरल के जवाब के बाद हाईकोर्ट ने सरकार व सेना को भेजा नोटिस -29 अप्रैल तक देना होगा जवाब, किस वजह से होती है जाति आधार पर नियुक्ति महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी: राष्ट्रपति के अंगरक्षकों की जाति आधारित भर्ती के मामले में तीन दिन पहले भारत के अतिरिक्त सालिसिटर जनरल का जवाब आने के बाद पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने रक्षा सचिव व सेना प्रमुख को नोटिस जारी कर जवाब मांग लिया है।
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी: राष्ट्रपति के अंगरक्षकों की जाति आधारित भर्ती के मामले में तीन दिन पहले भारत के अतिरिक्त सालिसिटर जनरल का जवाब आने के बाद पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने रक्षा सचिव व सेना प्रमुख को नोटिस
जारी कर जवाब मांगा है। अब सरकार के जवाब पर सबकी निगाहें टिकी है। सरकार व सेना को 29 अप्रैल तक हाईकोर्ट
में यह बताना होगा कि राष्ट्रपति के अंगरक्षकों की जातिगत आधार पर नियुक्ति किस कारण हो रही है और क्यों सिर्फ तीन जातियों के जवानों को ही अंगरक्षक बनने का अधिकार है।
जातिगत भर्ती का मामला उच्च न्यायालय के समक्ष तब आया था जब 12 अगस्त 2017 को तीन जातियों के उम्मीदवारों
से आवेदन मांगे गए। पिछली सुनवाई पर उच्च न्यायालय ने सरकार को इसलिए नोटिस जारी नहीं किए थे, क्योंकि पहले
भर्ती के लिए जारी विज्ञापन की सत्यता की पुष्टि जरूरी थी। सोमवार 14 जनवरी 2019 को अतिरिक्त सालिसिटर जनरल
सत्यपाल जैन ने उच्च न्यायालय को 12 अगस्त 2017 को प्रकाशित सूचना सही होने की जानकारी दी। जिसके बाद इस
मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस तेजेंद्र ¨सह धींगड़ा ने सोमवार को सेना और सरकार को नोटिस किए।
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मामले से जुड़े प्रमुख तथ्य:
रेवाड़ी के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डा. ईश्वर ¨सह यादव वर्षों से जाति आधारित भर्ती के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में उनकी याचिका इस आधार पर खारिज कर दी थी क्योंकि डा. यादव खुद किसी भर्ती में आवेदक नहीं थे। इस बीच राष्ट्रपति के अंगरक्षक की नियुक्ति का विज्ञापन जारी होने के बाद डा. यादव को नए दोस्त भी मिल गए। गुरुग्राम जिले के गांव कादरपुर निवासी मनीष दायमा खुद राष्ट्रपति के अंगरक्षक बनने के इच्छुक थे, लेकिन विज्ञापन में शर्त थी कि केवल जाट, राजपूत व सिख (रामदासिया व मजहबी को छोड़कर) ही अंगरक्षक के लिए आवेदन कर सकते हैं।
इसे खुद के साथ अन्याय मानकर मनीष ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। दायमा को डा. ईश्वर से कानूनी लड़ाई लड़ने की प्रेरणा मिली थी। हाईकोर्ट ने जब दिसंबर 2018 को इस मामले की सुनवाई की तब अतिरिक्त सालिसिटर जनरल ने एक माह का समय देने का अनुरोध किया था, जिसे अदालत ने मान लिया था।
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