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दर्द नहीं मासूमों की ताकत बने समाज

जागरण संवाददाता, रेवाड़ी : यौन शोषण का शिकार होने वाले बच्चों व उनके अभिभावकों की पीड़ा किसी नासूर से

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Jun 2018 07:51 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jun 2018 07:51 PM (IST)
दर्द नहीं मासूमों की ताकत बने समाज
दर्द नहीं मासूमों की ताकत बने समाज

जागरण संवाददाता, रेवाड़ी : यौन शोषण का शिकार होने वाले बच्चों व उनके अभिभावकों की पीड़ा किसी नासूर से कम नहीं होती। जख्म इतना गहरा होता है कि इस दर्द की दवा भी कहीं नजर नहीं आती। सामाजिक मर्यादा का चोला घर से बाहर तक निकलना बंद करा देता हैं। इन तमाम परिस्थितियों के बीच एक बाल कल्याण समिति ही ऐसी होती है, जो न सिर्फ यौन शोषण का शिकार हुए बच्चों को संभालती है, बल्कि उनके अभिभावकों को भी इस परिस्थिति से निपटने का बल देती है। वर्ष 2012 से पहले इस समिति के पदाधिकारी प्रशासनिक अधिकारी ही होते थे, लेकिन 2012 में आम लोगों को समिति का सदस्य बनाया गया। सामाजिक कार्यों में अहम योगदान देने वालों को समिति सदस्य बनाकर बच्चों के कल्याण की जिम्मेदारी सौंपी गई। हर साल आ रहे दर्जनों मामले

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बाल कल्याण समिति बच्चों से जुड़े मामलों को लेकर बीते करीब छह सालों से सक्रिय तरीके से अपनी भूमिका निभा रही है। पूर्व चेयरपर्सन नलिनी यादव, प्रमिला भार्गव, वर्तमान सदस्य रजनी भार्गव, राकेश भार्गव व उपासना गुप्ता ने बच्चों से संबंधित मामलों को समिति से जुड़े रहने के नाते नजदीक से देखा। राकेश भार्गव बताते हैं कि हर साल बाल यौन शोषण से जुड़े करीब एक दर्जन मामले समिति के सामने आते हैं। बीते तीन सालों से यह तादाद बढ़ रही है। बच्चों के शोषण से जुड़े 50 से अधिक मामले समिति के समक्ष आ चुके हैं। समिति सदस्य राकेश भार्गव व उपासना गुप्ता बताते हैं कि समिति के समक्ष जब भी बच्चों के शोषण से संबंधित कोई मामला आता है तो वे उसी समय बच्चे व उसके अभिभावकों से मुलाकात करते हैं। बच्चे के परिजनों को समझाया जाता है कि अब वे ही अपने बच्चे के सबसे बड़े मददगार है। वे बच्चे के सामने कभी दोबारा घटना का जिक्र न करे इसके बारे में भी उन्हें बताया जाता है। बच्चे की महीनों तक काउंस¨लग की जाती है। कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो घटना के बाद अपने घर भी नहीं जाना चाहते। समिति ऐसे बच्चों को भी शैल्टर होम में रखती है तथा उनकी पढ़ाई का इंतजाम करती है। ऐसी एक बच्ची अभी भी समिति की देखरेख में ही शिक्षा हासिल कर रही है। समिति सदस्यों का कहना है कि यह समाज की जिम्मेदारी है कि वे ऐसे मासूम बच्चों व उनके परिवार के लोगों की आलोचना करने की बजाय उनकी ताकत बने। न्याय की लड़ाई में उनका साथ दे, ताकि परिवार को ताकत मिले और द¨रदों को उनके किए की सजा मिल सके।


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