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मां बीमार हुई तो शुरू की सेफ फूड फार्मिंग, जानें हरियाणा के युवा किसान की प्रेरक कहानी

हरियाणा केे एक युवा किसान दूसरों के लिए प्रेरणा बन गए हैं। मां बीमार हुई तो उन्‍हें खेती में केमिकल के प्रयोग से पैदा खतरे का पता चला। इसके बाद उन्‍होंने सेफ फूड फार्मिंग शुरू की।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 02:27 PM (IST)Updated: Tue, 04 Aug 2020 07:29 AM (IST)
मां बीमार हुई तो शुरू की सेफ फूड फार्मिंग, जानें हरियाणा के युवा किसान की प्रेरक कहानी
मां बीमार हुई तो शुरू की सेफ फूड फार्मिंग, जानें हरियाणा के युवा किसान की प्रेरक कहानी

यमुनानगर, [संजीव कांबोज]। हरियाणा के यमुनानगर के एक युवा किसान क्षेत्र के कृषकों के लिए प्रेरणा बन गए हैं। जिले के ससोली गांव के युवा कृषक परमजीत सिंह हा‍निकारक पेस्‍टीसाइड्स मुक्‍त खेती की राह दिखा रहे हैं। दरअसल उनकी मां बीमार हुईं तो उनको पेस्टिसाइड से खेती के कारण पैदा हुई समस्‍या का अहसास हुआ। इसके बाद उन्‍होंने सेफ फूड फार्मिंग (Safe Food Farming) शुरू की। आज वह बिना पेस्टिसाइड्स के खेती कर रहे हैं।

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बात वर्ष 2002 की है। युवा किसान परमजीत सिंह की माता अजमेरो देवी को यूरिक एसिड की शिकायत हुई। काफी उपचार करवाया लेकिन उनकी तबीयत में सुधार नहीं हुआ। चिकित्सकों ने बताया कि फसलों में अंधाधुंध पेस्टिसाइड्स का प्रयोग यूरिक एसिड जैसी बीमारियों का कारण बन रहा है। न जाने कितने लोग इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं।

इससे परमजीत को समस्‍या की गंभीरता हुआ। उन्‍हाेंने इसके खिलाफ अलख जगाने व इसे समाप्‍त करने की ठान ली। उन्‍होंने तय किया कि वह अपनी फसल में पेस्टिसाइड्स का प्रयोग नहीं करेंगे और सेफ फूड फार्मिंग (Safe food farming) करेंगे। इसके साथ ही दूसरे किसानों को भी इसके लिए जागरूक करना शुरू किया।

18 वर्ष हो गए, एक एकड़ से भले ही पांच कि्वंटल गेहूं या धान निकली, लेकिन पेस्टिसाइड्स का छिड़काव नहीं किया। अब जन्म देने वाली मां भी स्वस्थ है और धरती मां भी। इन दिनों उनके खेतों में उड़द, मूंग व गन्ना की फसल लहलहा रही है। उनकी देखदेखी क्षेत्र के कई किसानों ने सेफ फूड फार्मिंग (Safe Food Farming) काे अपनाया है।

एक एकड़ से की शुरूआत

जागरण से बातचीत के दौरान परमजीत ने बताया कि उन्होंने शुरूआती दौर में एक एकड़ में गेहूं की खेती बिना पेस्टिसाइड के प्रयोग के की। पैदावार भी कोई खास नहीं निकली। मन थोड़ा उदास भी हुआ, लेकिन हौसला नहीं छोड़ा। चार-पांच वर्ष तक ऐसे ही चलता रहा। न प्रोफिट न लॉस। इतना संतोष जरूर था कि कम से कम परिवार तो जहर मुक्त खाद्यान्नों का इस्तेमाल रहा है। यह भी बड़ी बात है। खेतों को पेस्टिसाइड्स की आदत थी। धीरे-धीरे यह छूटती चली गई। इन दिनों वह 12 एकड़ में यह खेती कर रहे हैं। गेहूं, धान, गन्ना, सरसों व सब्जियों की खेती करते हैं। अब उपज भी बढ़ गई है।

यहां आती है दिक्कत

परमजीत सिंह बताते हैं कि सेफ फूड फार्मिंग (Safe Food Farming) का फार्मूला बेहतर है। दिक्कत केवल मार्केटिंग की आती है। पैदावार भी थोड़ी कम रहती है, लेकिन उस हिसाब से फसल के दाम नहीं मिलते। बाजार में खरीदार कम मिलते हैं। फसल को बेचने में दिक्कत आती है। किसान को स्वयं ही अपना उत्पाद बेचना पड़ता है। वे गेहूं, चावल, तेल व अन्य सब्जियां तैयार करते हैं। हालांकि स्वास्थ्य के लिहाज से ये काफी फायदेमंद हैं, लेकिन खरीददार न मिलने के कारण आम किसान कई बार मायूस हो जाता है। 

खरीद की व्यवस्था करे सरकार

परमजीत का कहना है कि यदि सरकार सेफ फूड फार्मिंग (Safe Food Farming) को प्रोत्साहन देना चाहती है तो खरीद की व्यवस्था करे। अधिक से अधिक किसानों को सेफ फार्मिंग (Safe Food Farming) के प्रति प्रोत्साहित करे। इसके साथ ही सरकार वर्मी कंपोस्ट को बढ़ावा दे ताकि किसान फसल को तैयार करने के लिए इसका प्रयोग कर सकें। ऐसा नहीं है कि किसान बिना कीटनाशक व पेस्टिसाइड्स के फसल तैयार नहीं कर सकते। वे ऐसा कर सकते हैं, बस थोड़ा सा जुनून चाहिए। कीटनाशक व पेस्टिसाइड्स के प्रयोग न करने से हमें सुरक्षित खाद्यान्न भी मिल रहे हैं और मिट्टी भी 'बीमार' नहीं हो रही है।

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