पंजाब के अब्दुल्लापुर से बना हरियाणा का यमुनानगर, निरंतर कर रहा शिक्षा की लौ प्रज्ज्वलित
यमुनानगर का इतिहास सही मायने में विभाजन के बाद से ही शुरू होता है। एक नवंबर 1989 में यमुनानगर को जिले का दर्जा मिला। प्रदेश भर में मुकुंद लाल नेशनल कालेज का नाम है। वर्तमान में जिले में 18 कालेज और 1300 के करीब स्कूल हैं।
यमुनानगर, जागरण संवाददाता। शिक्षा के क्षेत्र में जिला यमुनानगर की अलग पहचान रही है। वर्ष 1966 में हरियाणा प्रांत बनने से पहले भी जिले में शिक्षा को लेकर विद्यालय था। उस समय यमुनानगर पंजाब प्रांत में था और अब्दुल्लापुर के नाम से जाना जाता था। उस समय सेठ जय प्रकाश ने अपने पिता लाला मुकुंद लाल के नाम से विद्या प्रदान करने के लिए मुकुंद लाल विद्यालय की नींव रखी। आज भी इसकी बिल्डिंग है। इस कार्य में दयानंद एंग्लो विद्यालय संस्थान एवं सनातन धर्म शिक्षण संस्थान का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा। 1966 में हरियाणा नाम से अलग से प्रांत बनने पर भी यमुनानगर- जगाधरी में मुकुंद लाल नेशनल महाविद्यालय, डीएवी माध्यमिक विद्यालय, एसडी माध्यमिक विद्यालय आदि के माध्यम से शिक्षा की लो जगमगाती रही।
1989 में यमुनानगर को जिले का दर्जा मिला
यमुनानगर का इतिहास सही मायने में विभाजन के बाद से ही शुरू होता है। यमुनानगर तब प्रकाश में आया जब बंटवारे के बाद पाकिस्तान से लोग यहां पर आए। तब सरकार ने यमुना गली, माडल कालोनी, कैंप आदि कुछ स्थानों को इनके लिए ही आरक्षित कर दिया था। एक नवंबर 1989 में यमुनानगर को जिले का दर्जा मिला। प्रदेश भर में मुकुंद लाल नेशनल कालेज का नाम है। वर्तमान में जिले में सरकारी-गैरसरकारी शैक्षणिक, व्यवसायिक, वाणिज्य के 18 कालेज और 1300 के करीब स्कूल हैं।
अंग्रेजों के शासनकाल में भी गुरुकल पद्धति रही जारी
अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में गुरुकुल पद्धति को नष्ट कर मैकाले शिक्षा पद्धति प्रारंभ की गई। ङ्क्षकतु यमुनानगर में भारतीय संस्कृति को जीवित रखने के लिए गुरुकुल पद्धति के अन्तर्गत शादीपुर गांव में निर्धन परिवारों के बच्चों को संस्कारवान शिक्षित करने के उद्देश्य से वैदिक गुरुकुल की स्थापना की गई। यहां आज भी बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश प्रांतों से भी विद्यार्थी संस्कृत के साथ-साथ अन्य विषयों की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
चार प्रदेशों की सीमा पर स्थित है यमुनानगर
जिला यमुनानगर हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सीमाओं पर स्थित है। कपालमोचन, आदिबद्री, कलेसर राष्ट्रीय उद्यान, चनेटी बौद्ध स्तूप और टोपरा कलां ग्राम में अशोक स्तंभ यहां के दर्शनीय पर्यटन स्थल है। पद्म भूषण स्वर्गीय दर्शन लाल जैन ने क्षेत्र में बहुत अनुसंधान करने के पश्चात इसका गौरवशाली इतिहास संजोया। सरस्वती उद्गम स्थल इन्हीं के प्रयासों से आज विश्व विख्यात है।