World Bicycle Day 2020: शरीर देने लगा जवाब तो 12 लाख की कार बेच खरीद ली साइकिल
जींद के प्रोफेसर ने 12 लाख की वर्ना गाड़ी बेच साइकिल पर चलते हैं। कॉलेज से साइकिल पर जाते हैं। साथी प्रोफेसरों ने भी प्रेरित होकर खरीदी साइकिल।
पानीपत/जींद, [कर्मपाल गिल]। उच्चत्तर शिक्षा विभाग में गणित के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं डॉ. राज सिंह दलाल। छह साल तक पहले तक 12 लाख की वर्ना गाड़ी में चलते थे। लेकिन शरीर को सुकून मिलने की बजाय दर्द मिल रहा था। सोते समय कमर दर्द होता था। पैरों में दिक्कत होती थी। पूरा शरीर कंडम होने लग गया था। ऐसे में डॉ. राज सिंह ने गाड़ी बेचकर साइकिल खरीद ली। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब कॉलेज से लेकर कहीं भी जाना हो, साइकिल ही साथ रहता है।
जिले के गांव मालवी के डॉ. राज सिंह बताते हैं कि वर्ष 2014 में पहली बार साइकिल खरीदी थी। उससे पहले आठ साल तक लगातार गाड़ी में चला। तब शरीर लगातार मोटा हो रहा था। थोड़ी दूर जाना हो तो भी गाड़ी का सहारा लेते थे। इस आदत के कारण पीठ में दर्द रहता था। रात को नींद नहीं आती थी। तब पिताजी रामफल सिंह ही प्रेरणास्रोत बने। वह 75 साल की उम्र में भी साइकिल पर चलते हैं।
शरीर इतना स्वस्थ है कि 30 साल के जवान युवक से ज्यादा खेत में काम करते हैं। उनसे प्रेरित होकर गाड़ी बेचकर 5500 रुपये में साइकिल खरीद ली। इसके बाद 15 किलो वजन घट गया। सारी बीमारियां दूर हो गईं। अब मैं पूरी तरह फिट हूं। डॉ. राज सिंह कहते हैं कि साइकिल चलाने का आनंद ही अलग है। शरीर तंदुरुस्त रहने के अलावा पर्यावरण सुरक्षित रखने में भी आहुति डालते हैं। साइकिल पर चलने में कुछ लोग हीन-भावना महसूस करते हैं, लेकिन एक बार इससे दोस्ती कर लेंगे तो बहुत आनंद आएगा।
पंचकूला से जींद तक साइकिल का सफर
डॉ. राज सिंह ने बताया कि वह जींद के महिला व ब्वायज कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर रहे। यहां भी साइकिल से ही कॉलेज जाते थे। उनसे प्रेरित होकर कई प्रोफेसर व अन्य सरकारी कर्मचारियों ने साइकिल खरीदी। डेढ़ साल पहले उनका जींद से पंचकूला कॉलेज में ट्रांसफर हो गया था। वहां भी एक प्रोफेसर साइकिल खरीद लाए हैं। जींद से पंचकूला तक का सफर भी चार बार साइकिल से तय किया है। पंचकूला से मोरनी हिल पर 40 किलोमीटर साइकिल से चढ़ाई कर चुके हैं। हिल पर चढऩे में तीन घंटे और उतरने में सवा घंटा लगा था।
साइकिल चलाकर कैंसर को हरा रहे एएसआइ सुभाष तितरम
हरियाणा पुलिस में एएसआई सुभाष तितरम को दस साल से बड़ी आंत में कैंसर है। पहली बार जब कैंसर का पता चला तो पीजीआई रोहतक के डॉक्टर ने कहा था कि मुश्किल से चार महीने की जिंदगी बची है। लेकिन जिंदादिल सुभाष ने अपने हौसले से कैंसर को मात दे रखी है। दस किलोमीटर से 150 किलोमीटर तक का सफर साइकिल से पूरा करते हैं। ग्राउंड से भी दोस्ती कर रखी है और सुबह-शाम खूब पसीना बहाते हैं।
सुभाष कहते हैं कि 2010 में बीमार हुआ तो चार महीने तक डॉक्टरों के चक्कर काटता रहा। किसी ने टीबी बताई तो कोई एपेंडिक्स कहता रहा। आखिर में पीजीआई में टेस्ट कराया तो बड़ी आंत में कैंसर मिला। जब वे रिपोर्ट लेने गए तो डॉक्टर ने उनका हौसला देखकर समझा कि ये मरीज के अटेंडेंट हैं। डॉक्टर ने कहा कि मरीज को मत बताना कि उन्हें कैंसर है। इस पर उन्हें हंसी आ गई और कहा कि वह खुद ही मरीज हैं और बिना अटेंडेंट आए हैं। डॉक्टर से खुलकर सारी बात पूछी तो कहा कि सही तरीके से दवा लोगे तो चार महीने तक जीवित रह सकते हो। लेकिन सुभाष उसी दिन डॉक्टर को बोल आए कि चार साल बाद भी आउंगा और 40 साल बाद भी आउंगा।
पहले साइकिल से सिर्फ ड्यूटी पर जाते थे या बाजार के काम करते थे। उसके बाद लंबी दूरी की यात्रा भी साइकिल पर करने लगे। सुभाष बताते हैं 2017 में आरक्षण आंदोलन में उनकी ड्यूटी नरवाना व दनौदा में लगी। तब एक महीने तक साइकिल से दनौदा तक आने-जाने का 150 किलोमीटर का सफर साइकिल से करते थे। चाय, बीड़ी-सिगरेट, कोल्ड ड्रिंक, शराब पहले भी नहीं लेते थे, कैंसर के बाद इन्हें जिंदगी भर कतई न छूने का प्रण ले लिया। ड्यूटी पर जाने से लेकर बाजार में घर के सभी काम साइकिल पर करने लगे। इससे शरीर में इम्युनिटी पावर बढऩे लग गई। सुभाष कहते हैं कि 53 साल की उम्र हो गई है। घुटने, शुगर, बीपी, मोटापा सहित कोई बीमारी नहीं है। महीने में 20 दिन घी-बूरा, शक्कर, चूरमा, हलवा जरूर खाता हूं।
साइकिल पर देख ताना मारते हैं तो यूं देते हैं जवाब
सुभाष तितरम कहते हैं कि जब वह साइकिल पर चलते हैं तो लोग ताना मारते हैं कि मोटरसाइकिल या स्कूटी क्यों नहीं खरीद लेते। तुम तो कंजूस हो। वह पलटकर जवाब देते हैं कि मेरा साइकिल चलाने का ब्योंत है। आपका ब्योंत यानि हिम्मत हो तो बताओ। फिर उन्हें कोई जवाब नहीं मिलता। साइकिल चलाने की हिम्मत होनी चाहिए। वह तो पुलिस की वर्दी में भी साइकिल पर चलते हैं। सुभाष बताते हैं घर में स्कूटी भी है, लेकिन वह बेटी के लिए खरीद रखी है।
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