सिर की चोट को नॉकआउट कर बेटी ने बॉक्सिंग में जीता सोना
विजय गाहल्याण, पानीपत शिमला मौलाना के टैक्सी चालक धर्मेद्र की बेटी विंका को छत से नीचे गिरकर चोट ल
विजय गाहल्याण, पानीपत
शिमला मौलाना के टैक्सी चालक धर्मेद्र की बेटी विंका को छत से नीचे गिरकर चोट लग गई थी। सिर में चोट लगने से 22 टांके लगे थे। डॉक्टर ने धर्मेंद्र को कह दिया था कि बेटी को खेलों से दूर रखना, नहीं तो उसकी जान को खतरा हो सकता है। डर के कारण पिता ने बेटी को खेलने नहीं दिया। इसी 16 वर्षीय विंका ने डर को हराकर सर्बिया के सोंबोर में हुए सातवें नेशंस जूनियर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में 63 किलोग्राम में स्वर्ण पदक जीतकर दिखा दिया कि हौसला हो तो चोट भी चित हो जाती है। बेटी की इस कामयाबी से धर्मेद्र अभिभूत हैं। अब अपने उन दिनों को याद कर दुखी भी, जब उसने बेटी का स्कूल तक छुड़ा दिया था।
धर्मेद्र ने बताया कि विंका छह साल की थी और छत पर खेलते हुए नीचे गिर गई थी। डॉक्टर ने सिर में टांके लगाए और उसे हिदायत दी कि विंका से खेलों से दूर रखना। अगर सिर में फिर से चोट लगी तो जान तक जा सकती है। इसी डर के कारण विंका को बॉक्सिंग खेल से दूर रखा। चार साल पहले विंका ने बड़ी बहन मोनिका के साथ हॉकी का अभ्यास किया और दो बार स्कूल नेशनल में स्वर्ण पदक जीत गया। दो साल पहले विंका की टीम हार गई और इसके बाद वह मैदान पर नहीं गई। उसे हॉकी नहीं खेलनी है, वह तो मैरीकॉम की तरह बॉक्सर बनेगी। अगर उसे बॉक्सर नहीं बनने दिया तो वह स्कूल छोड़ देगी। उसने बेटी का स्कूल छुड़ाकर घर में चूल्हा-चौका करने में लगा दिया। बेटी घुट-घुटकर जी रही थी तो वह उसे लेकर शिवाजी स्टेडियम के बॉक्सिंग कोच सुनील कुमार के पास ले गया। कोच ने भी विंका को समझाया कि बॉक्सिंग में सिर में पंच लगते हैं। इससे उसे गंभीर चोट लग सकती है। विंका डरी नहीं और उसने बॉक्सिंग का अभ्यास का अभ्यास शुरू कर दिया और सफलता हासिल की।
ये है ¨रग में सफलता
-खेलो इंडिया नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता।
-स्कूल नेशनल बॉक्सिंग प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता।
-राज्य स्तरीय बॉक्सिंग चैंपियनशिप में तीन स्वर्ण व एक रजत पदक जीता।
-राज्य स्तरीय खेल महाकुंभ में स्वर्ण पदक जीता।
बेटी ने किया सपना पूरा
धर्मेद्र ने बताया कि उसका सपना था कि वह कुश्ती में राज्य व नेशनल स्तर की प्रतियोगिता में पदक जीते। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, इसलिए वह खेल नहीं पाया। अब बेटी विंका ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतकर उसके सपने का साकार किया है। वह बेटी की खुराक पर हर महीने 15 से 20 हजार रुपये खर्च करता है।
विंका ने किया था वादा, पदक जीतेगी: शिवाजी स्टेडियम के कोच सुनील कुमार ने बताया कि विंका ने कड़ा अभ्यास किया था। वह सर्बिया जाने से पहले उसे वादा करके गई थी कि स्वर्ण पदक जीतेगी। विंका ने यह कर दिखाया है। इससे स्टेडियम में अभ्यास करने वाली अन्य लड़कियों के हौसले भी बढ़े हैं।