कैंसर को हराकर भारतेष अन्य मरीजों को दे रहा जिंदादिली का संदेश
विजय गाहल्याण, पानीपत : मध्यप्रदेश रीवा के 23 वर्षीय हरतेज भारतेष कैंसर से जूझ रहे थे। परिजन ही नह
विजय गाहल्याण, पानीपत : मध्यप्रदेश रीवा के 23 वर्षीय हरतेज भारतेष कैंसर से जूझ रहे थे। परिजन ही नहीं, वह स्वयं भी बचने की उम्मीद खो चुके थे। फिर एक दिन भारतेष ने टीवी पर कैंसर पीड़ित कैलीफोर्निया के मैराथन धावक टैरीफोक्स को दौड़ते हुए देखा। वे दिखाना चाहते थे कि बीमारी भी उनके कदमों को नहीं रोक पा रही है। इसी से भारतेष का हौसला बढ़ा और उन्होंने जून 2014 में हैदराबाद में इलाज कराया। 12 कीमोथैरेपी के बाद स्वस्थ हो गए। इसके बाद उसने ठान लिया कि वह देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर कैंसर पीड़ित बच्चे, युवक व युवतियों में हौसला पैदा करेंगे कि वे जिंदगी से निराश न हो। इलाज कराएं और आगे बढ़ें।
इसी मकसद से भारतेष ने 1 मई से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से बाइक से राइड ऑफ होप मिशन से यात्रा शुरू की। भारतेष मंगलवार को पानीपत पहुंचे और उन्होंने दैनिक जागरण से बातचीत में बताया कि मैराथन धावक टैरीफोक्स कैंसर से पीड़ित होते हुए भी दौड़े और लोगों को संदेश दिया कि भयंकर बीमारी में जीने का हौसला न खोए। लगातार संघर्ष करें। उन्हीं को आदर्श बनाकर ही कैंसर पीड़ितों में जीने का जज्बा कायम रखने के लिए निकला हूं।
इस यात्रा में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश सहित कई प्रदेशों में जाकर स्कूल व कालेजों में युवाओं के कैंसर से बचने व इसके इलाज के बारे में अपना अनुभव सांझा करूंगा। ताकि बीमारी के भय से लोग जिंदा रहने की उम्मीद न छोड़ें। आगे बढ़ें और देश के विकास में योगदान दें। जैसा व्यवहार उसके साथ नौकरी ढूंढने के दौरान हुआ है अन्य युवाओं के साथ न हो।
वह स्कूल व कॉलेज का प्रोग्राम पहले ही इंटरनेट के जरिये तय कर लेते हैं। वह तीन महीने बाद राजपुर में ही यात्रा को खत्म करेंगे। इसके बाद वकील पिता सौरभ गुप्ता के साथ मिलकर वकालत करेंगे और इससे जो आमद होगी उसे कैंसर के मरीजों के इलाज में लगाएगा।
पिता व भाइयों ने दिया साथ
हरतेज भारतेष ने बताया कि कैंसर की बीमारी का पता चलने पर टूट गया था। पिता सौरभ गुप्ता, दो बड़े भाई व दो बहनों ने हौसला दिया कि इलाज हो जाएगा। स्वस्थ होने पर पिता से इच्छा जाहिर की वह कैंसर के मरीजों के लिए कुछ करना चाहता है। पिता न सिर्फ यात्रा के लिए खर्च कर रहे हैं बल्कि उसे इस काम के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं। उन्हीं की बदौलत घर से बाहर निकल पाया हूं।