बैंक की नौकरी छोड़ राजनीति में विज ने की थी एंट्री, सात में पांच चुनाव जीते Panipat News
अनिल विज ने बैंक की नौकरी छोड़ राजनीति में एंट्री की थी। इस बार चुनाव जीते तो हैट्रिक का रिकॉर्ड बनेगा। विज निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भी चुनाव लड़ चुके हैं।
पानीपत/अंबाला, [दीपक बहल]। अंबाला छावनी सीट से राजनीति के अंगद माने जाने वाले अनिल विज का राजनीतिक सफर काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है। भाजपा से अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने वाले विज का मनमुटाव भी पार्टी से हुआ और अकेले दम पर अंबाला छावनी में अपनी पकड़ बनाई और दो बार आजाद भी जीते। बैंक की नौकरी छोड़ राजनीति में अपनी पारी शुरु करने वाले अनिल विज ने छात्र राजनीति में काफी सक्रिय रहे हैं।
कुल सात विधानसभा चुनावों में पांच बार जीत हासिल करने वाले अंबाला छावनी विधानसभा से अनिल विज पहले विधायक बने हैं। हालांकि 1990 से वह लगातार चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन अभी तक हैटट्रिक की दहलीज तक नहीं पहुंच पाए। हालांकि अब 2009 व 2014 में विधायक चुने गए और अब तीसरी बाद चुनाव मैदान उतरने की तैयारी कर रहे हैं। विज के पिछले चुनावों पर नजर मारें, तो विरोधियों को जहां पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़कर चुनौती देते रहे हैं, वहीं दो बार आजाद जीतकर भी इस चुनौती को और मजबूत किया है।
यह है विज का परिचय
अनिल विज का जन्म 15 मार्च 1953 को भीम सेन और राजरानी के घर हुआ। पिता रेलवे में अधिकारी थे। कम उम्र में अनिल के सिर से पिता का साया उठ गया। एक बड़ी बहन थीं। दो छोटे भाईयों की परवरिश भी विज को करनी थी। विज ने एसडी कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई पूरी की। 1969 में वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नीतियों के प्रचारक बन गए। पढ़ाई पूरी करने के बाद 1974 में उनका चयन स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में बतौर अधिकारी हो गया। 16 साल नौकरी करने के बाद उन्होंने सरकारी नौकरी को अलविदा कह दिया। अनिल विज ने राजनीति की शुरूआत अपने कॉलेज के दिनों से बीएससी करते हुए की। उन्होंने अंबाला के एसडी कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई पूरी की और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े। वे 1970 में एबीवीपी के महासचिव थे।
इस तरह लड़ा था पहला चुनाव
अंबाला सीट से विधायक रहीं सुषमा स्वराज ने करनाल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा तो छावनी सीट से इस्तीफा दिया। सीट खाली थी और भाजपा ने उपचुनाव में 1990 में अनिल पर दाव लगाया। पहली बार में ही विज ने मैदान मार लिया। 1991 में हुए विधानसभा चुनावों में अनिल विज चुनाव हार गए। उन्हें भाजपा युवा मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया। 1995 में भाजपा को अलविदा कह दिया। अनिल विज 1996 में निर्दलीय विधायक बने। 2000 में भी अनिल विज को कैंट के लोगों ने बतौर निर्दलीय ही विधानसभा में भेजा। भाजपा को अनिल विज की कमी पूरी करने वाला कोई नेता नहीं मिल रहा था। 2005 भाजपा के वरिष्ठ नेता विज को फिर से भाजपा में ले आए। वह कांग्रेस के डीके बंसल से महज 615 वोटों से शिकस्त खा गए। इसके बाद हुए 2009 व 2014 के चुनाव में लगातार दो बार जीत दर्ज की।