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राइजिंग इंडिया: पानीपत में अनूठी पहल-आप देश चलाओ, हम देंगे मजबूर लोगों को सहारा

Rising India पानीपत की एक समाजसेवी संस्‍था ने लॉकडाउन के दौरान अनोखी पहल की। उसने गरीब व मजबूर कामगारों के अस्‍थायी राशन कार्ड बनाए और उनके जरूरी सामान दिया।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sun, 07 Jun 2020 02:29 PM (IST)Updated: Sun, 07 Jun 2020 02:29 PM (IST)
राइजिंग इंडिया: पानीपत में अनूठी पहल-आप देश चलाओ, हम देंगे मजबूर लोगों को सहारा
राइजिंग इंडिया: पानीपत में अनूठी पहल-आप देश चलाओ, हम देंगे मजबूर लोगों को सहारा

पानीपत, [रवि धवन]। 'मरहम लगा सको तो किसी गरीब के जख्मों पर लगा देना, हकीम बहुत हैं बाजार में अमीरों के इलाज के खातिर।' इसे पानीपत ने इतने करीने से समझा कि न केवल कोई भूखा नहीं सोया, बल्कि अब शहर की अर्थव्यवस्था को भी राह दिखा दी। राइजिंग इंडिया के लिए जो कदम ठिठक गए थे, वे भी बढ़ चले। कहानी शुरू जरूर लॉकडाउन से हुई, लेकिन अब सुकून भरे मंजिल की तरफ बढ़ती दिखाई दे रही है। यह कहानी शुरू हुई है पानीपत की एक सामाजिक संस्‍था की अनूठी पहल से।

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पानीपत के सर्व संगठन सेवा संस्थान की अनूठी पहल, दो हजार अस्थायी राशन कार्ड बनाकर राशन बांटा

मथुरा के पत्ता नगरा की प्रीति, गौंडा के समरा गांव की सुनीता, कानपुर के गंगदासपुर कसोलर का दीपक और झांसी का रामआसरे। ये चंद नाम ही नहीं, ऐसे लोगों के सैकड़ों परिवार हैं जिनका फैक्‍ट्री में काम छूट गया। रोज की दिहाड़ी पर परिवार पलता था। भूख के कारण ये सोच लिया था कि अब अपने गांव निकल जाएंगे। हाथ में कोई राशन कार्ड नहीं था। सरकार ने ऐसे लोगों के लिए राशन देने की व्‍यवस्‍था के लिए सर्वे की घोषणा तो की लेकिन हर किसी के पास पहुंचने में वक्त लगना था। ऐसे बेसहारों के लिए आगे आया सर्व संगठन सेवा संस्‍थान।

अब फैक्ट्रियां चलीं तो यही कामगार काम आए, अब इनके पक्के कार्ड बनवाएंगे

इस संस्‍थान ने इन कामगारों की मदद करने की ठानी। संस्‍थान ने राशन ही नहीं दिया, सरकार की तरह अस्‍थायी कार्ड बनाए। वार्डों को गोद लिया। इनकी बदौलत ही कामगारों ने पलायन नहीं किया। अब कारोबार खुले हैं। अगर ये लोग पलायन कर जाते तो कौन चलाता मशीन। राइजिंग इंडिया के लिए रामआसरे जैसे सैकड़ों लोग पानीपत को आगे ले जा रहे हैं। इसके लिए सेतु बना वो दिन, जब इनके घर कार्ड बनाने और राशन देने पहुंच गई थी सुरेश काबरा और उनकी टीम।

विदेशों के बुकिंग ऑर्डर पूरे होने लगे, संस्थान की तरह समाजसेवियों ने हजारों लोगों को पानीपत में रोका

गोद में दो वर्ष का बच्चा उठाए प्रीति ने बताया कि उसका पति बेलदारी का काम करता है। लॉकडाउन के कारण मजदूरी का काम खत्म हो गया। सोचा था कि मथुरा चले जाएं। दस दिन का ही घर पर राशन था। कभी शाम को कभी सुबह के वक्त कोई समाजसेवी खाना दे जाता पर पूरे परिवार की भूख कभी नहीं मिटती। उनके पास कोई राशन कार्ड नहीं था, जिससे राशन डिपो से भी कुछ नहीं ले सके। आखिर सोच लिया कि अब मथुरा ही जाएंगे। पैदल ही निकल जाएंगे। शाम को पता चला कि कहीं पर कच्चे कार्ड बन रहे हैं। तब उन्होंने अपना नाम लिखवाया। ये सरकारी नहीं था। उम्मीद नहीं थी कि कुछ मदद मिलेगी। हमारा राशन खत्म होने ही वाला था कि घर पर दो लोग पहुंचे।

इनमें एक थे सुरेश काबरा। उनके हाथ में कार्ड और राशन का एक पैकेट पकड़ाते हुए बोले, आप चिंता मत करें। शहर छोड़ने की भी नहीं सोचें। जब तक काम शुरू नहीं होगा, इसी कार्ड के सहारे आपको राशन मिलता रहेगा। हुआ भी यही। उन्हें उस दिन के बाद से खाने की चिंता नहीं हुई। अब काम खुल गया है। पति मजदूरी करने लगा है।

इसी तरह की कहानी है अबिदा की। घर पर चार बच्चे हैं। पति कालीन की सफाई का काम करता है। रोज दिहाड़ी मिलती थी। काम बंद हुआ तो बच्‍चे भूख से रोने लगे। एक वक्‍त कोई खाना दे जाता तो खुद भूखे रहकर किसी तरह बच्‍चों को खिलाते। खटीक बस्‍ती में अबिदा का भी अस्‍थायी कार्ड बना तो घर पर राशन पहुंचा। ऐसी ढेरों किरदार, ढेरों कहानियां हैं। अब उम्‍मीद भी जगी है कि एक डाटा बैंक से इन जरूरतमंदों के राशन बन सकेंगे। जब तक सभी को काम नहीं मिल जाता, तब तक इसी अस्‍थायी कार्ड से ही राशन बांटने का भी संकल्‍प लिया है। देवी मंदिर में चौथी बार वितरण किया गया।

टीम करती है जांच

पानीपत के वार्ड नौ में जब राशन देने का अभियान शुरू किया गया, तब पांच सौ से अधिक फार्म भरे गए। टीम ने जब जांच की तो पता चला कि इनमें 50 से ज्यादा लोग तो ऐसे थे जिनकी कोठी तक है। अच्छी कमाई है। घर पर राशन भरा है। 200 वो लोग सामने आए, जिन्हें राशन की जरूरत थी। इनके घर मुश्किल से चूल्हा जल रहा था।

अब राशन कार्ड बनवाएंगे

संस्थान के मुख्य संरक्षक हरिओम तायल ने बताया कि वार्ड गोद लेने से उनके पास अब एक डाटा बैंक बन रहा है। ऐसे लोगों की सूची बन रही है, जिनके पास कोई कार्ड नहीं है। बरसों से पानीपत में रह रहे हैं लेकिन वोट बैंक की राजनीति की वजह से इन तक कोई नहीं पहुंच पाता। लॉकडाउन खत्म होते ही आधार कार्ड के आधार पर विभाग से राशन कार्ड बनवाएंगे, ताकि भविष्य में इन्हें परेशानी न हो।

हर रोज खाने के पैकेट सौंपे

सर्व संगठन सेवा संस्थान के संरक्षणक हैं अक्षय स्पीनिंग मिल के संजय गर्ग। इन्होंने बताया कि कामगारों को रोकने के लिए हर संभव प्रयास िकिया। उन्हें समझाया कि अपना शहर छोड़कर न जाएं। अपनी मिल ही नहीं, दूसरी फैक्ट्रियों के लोगों तक खाना पहुंचाया। हर रोज कम से कम पांच सौ पैकेट वितरित करते। इसमें 11 किलो का राशन होता। अस्थायी राशन कार्ड की मदद से जरूरतमंद तक मदद पहुंचाई। यही वजह रही कि आज फैक्ट्री खुली तो कम से कम चलाने की स्थिति में आ गए हैं।

प्रवासियों के दो हजार कार्ड बनाए

दो हजार प्रवासी परिवारों के अस्थायी कार्ड बना दिए गए हैं। हर वार्ड के डाटा के लिए अलग फाइल है। सरकार की ओर से राशन कार्ड बनाने के लिए चाहिए होता है आधार कार्ड। परिवार का फोटो। फोन नंबर। अब यही डाटा सीधे प्रशासन को मुहैया कराया जाएगा। एक बार राशन कार्ड बन जाएगा तो भविष्य में कम से कम खाने के लिए किसी मदद की जरूरत नहीं रह जाएगी।

चल पड़ी फैक्ट्रियां, आगे बढ़ेगा भारत

फैक्ट्री चला रहे विवेक कत्याल, विकास गोयल और ललित गोयल ने बताया कि अगर कामगार नहीं रुकते तो अनलॉक-1 में फैक्ट्रियां नहीं खुल पाती। जो लोग गांव लौट गए थे, अब उनके भी फोन आ रहे हैं। वे भी अपनी ओर से प्रयास कर रहे हैं कि सभी शहर लौट आएं। अपनी ओर से लौटने का खर्च देने को तैयार हैं। जल्द ही स्थितियां पुराने दिनों की तरह हो जाएंगी। देश की अर्थव्यवस्था को चलाने में पानीपत का बड़ा योगदान रहेगा।

जर्मनी, इंग्लैंड, अमेरिका और फ्रांस में ऑर्डर पहुंच रहे हैं

दूसरे देशों में स्थितियां सामान्य होने लगी हैं। वहां पर टेक्सटाइल का स्टॉक खत्म हो चुका है। नए ऑर्डर मिल रहे हैं। ये ऑर्डर तभी दे सकते थे, जब फैक्ट्रियां चलतीं। पानीपत के समाजसेवी अगर मजदूरों को रोकने के लिए अपनी तरफ से पहल नहीं करते तो ऑर्डर नहीं दे पाते। देवीगिरी एक्सपोर्ट के अशोक गुप्ता ने बताया कि जर्मनी और इंग्लैंड में शिपमेंट हो गई है। धीरे-धीरे बाकी कामगार भी लौट आएंगे।

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