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जींद के किसान का अनोखा आइडिया, कम पानी में करते हैं खेती, कमाई भी शानदार

हरियाणा के जींद के किसान मनजीत से मिलिए। धान की खेती करते ही नहीं। क्योंकि इसमें पानी ज्यादा लगता है।खाद का प्रयोग नहीं करते। जैविक खेती करते हैं। लागत काफी कम आती है। प्रति एकड़ 80 हजार रुपये तक कमाते हैं।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Tue, 03 Aug 2021 04:55 PM (IST)Updated: Tue, 03 Aug 2021 06:44 PM (IST)
जींद के किसान का अनोखा आइडिया, कम पानी में करते हैं खेती, कमाई भी शानदार
जींद के किसान मनजीत अपनी फसल के साथ।

बिजेंद्र मलिक, जींद। जो किसान सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता कम होने के बावजूद धान की खेती करते हैं और भूमिगत पानी का अंधाधुंध दोहन करते हैं। ऐसे किसान खरकरामजी गांव के प्रगतिशील किसान मनजीत सिंह से प्रेरणा लेकर कम पानी लागत वाली फसलों की अच्छी पैदावार ले सकते हैं। इसमें धान की फसल की तुलना में लागत कम है और आमदनी ज्यादा।

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किसान मनजीत जैविक तरीके से खेती कर रहे हैं। सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। इसलिए कभी धान की खेती के बारे में सोचा भी नहीं। उनके पास दो एकड़ जमीन है। इसमें हर साल बदल-बदल कर अलग-अलग फसलों की पैदावार लेते हैं। पिछले साल एक एकड़ में कंगनी लगाई। इससे करीब 80 हजार रुपये का उत्पादन हुआ। इसमें एक बार भी सिंचाई नहीं करनी पड़ी और लागत भी बहुत कम आई।

किसान मनजीत सिंह ने बताया कि वह कम पानी लागत वाली फसलों का उत्पादन करते हैं। इसमें कंगनी, रागी, शामक, सरसों जैसी फसलें शामिल हैं। वहीं गेहूं की फसल के साथ धनिया की फसल भी लेते हैं। इससे अच्छा उत्पादन होता है।

कंगनी उगाकर एक एकड़ में कमाए 80 हजार

पिछले साल मनजीत ने कंगनी और रागी की फसल उगाई थी। कंगनी काफी पौष्टिक होती है। यह बहुत कम पानी में तैयार होने वाली फसल है। कंगनी की बिजाई मई के अंत से जून के अंत तक तक होती है। यह करीब 120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ पांच से छह क्विंटल उत्पादन हो जाता है। मार्केट में कंगनी का रेट 140 रुपये किलो है। इससे प्रति एकड़ 70 से 80 हजार रुपये की फसल हो जाती है।

मनजीत सिंह ऐसी फसलों को प्राथमिकता देता है, जो सीधे तौर पर खाने के काम आ सकें।

पिछले साल से खाद डाली न सिंचाई की

मनजीत ने बताया कि पिछले साल उसने कंगनी की बिजाई के बाद एक बार भी सिंचाई नहीं की और न ही खाद डाली। बारिश से ही काम चल गया। केवल दो बार निराई-गुड़ाई की। जिससे फसल में लागत भी कम आई। शामक पशु चारे में काम आता है। इसमें भी पानी की खपत कम है और जल्दी तैयार होता है। 

फसल चक्र अपनाते हैं मनजीत

मनजीत सिंह ने इस साल खेत में हरी खाद के लिए ढैंचा उगा कर जमीन में मिला दिया और अब जमीन को खाली छोड़ दिया। ताकि जमीन को ताकत मिल सके। दो माह बाद सरसों की बिजाई करेंगे। एक बार सरसों की फसल लेने के बाद अगली बार कोई और फसल लेंगे। ताकि फसल चक्र चलता रहे और जमीन की उर्वरा शक्ति कायम रहे। मनजीत सिंह ने बताया कि वह ऐसी फसलों को प्राथमिकता देता है, जो सीधे तौर पर खाने के काम आ सकें। 

मनजीत कंगनी, रागी, शामक, सरसों जैसी फसलें उगाते हैं। गेहूं के साथ धनिया की फसल भी लेते हैं।

कंगनी की है मेडिसिनल वेल्यू

खंड कृषि विकास अधिकारी पिल्लूखेड़ा डॉ. सुभाष चंद्र ने बताया कि कंगनी की मेडिसिनल वेल्यू है। ये देशी दवाइयों में प्रयोग होती है और पंसारी के यहां मिलती है। अगर किसान इसकी ब्रांडिंग करने में सक्षम है, तो बहुत अच्छे रेट मिल सकते हैं। इसमें दूसरी फसलों की तुलना में खर्च कम और आमदनी ज्यादा है। इसमें ज्यादा बीमारियां नहीं आतीं। कम पानी वाली फसल है। आसपास के एरिया में कंगनी की खेती करने वाला मनजीत संभवत: अकेले किसान हैं। जो सूझबूझ से खेती कर अच्छी आमदनी ले रहा है। अलग-अलग तरह की खेती करता है और फसल चक्र अपनाता है।

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