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खतरनाक है उधमपुर-कटरा ट्रैक, स्‍टील के खंभे लगाने में घपला, होगी पांच करोड़ की रिकवरी

उधमपुर-कटरा ट्रैक घपले के कारण खतरनाक है। ट्रैक के किनारे लगाए गए स्‍टील के खंभे तय वजन से कम यानि कमजोर हैं। रेलवे ने खंभे लगाने वाली कंपनी से पांच करोड़ की रिकवरी डाली है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sun, 30 Aug 2020 03:05 PM (IST)Updated: Sun, 30 Aug 2020 03:05 PM (IST)
खतरनाक है उधमपुर-कटरा ट्रैक, स्‍टील के खंभे लगाने में घपला, होगी पांच करोड़ की रिकवरी
खतरनाक है उधमपुर-कटरा ट्रैक, स्‍टील के खंभे लगाने में घपला, होगी पांच करोड़ की रिकवरी

अंबाला, [दीपक बहल]। उधमपुर- कटरा रेलवे ट्रैक घपले के कारण खतरनाक है। इस रेलवे ट्रैक के किनारे लगाए गए स्‍टील के खंभे मानक के अनुरूप नहीं हैं और कमजाेर हैं। विद्युतीकरण में अंडरवेट स्टील खंभे का यह मामला उजागर होने के बाद इसे रफा-दफा करने की कोशिश की गई। रेल अधिकारी ने कंपनी पर पांच करोड़ रुपये की रिकवरी निकाला था, लेकिन रिकवरी के मामले को खत्‍म करने की कोशिश की गई।

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पांच करोड़ की रिकवरी रफा-दफा करने के लिए बनाया गया था दबाव

बताया जाता है कि अंबाला विद्युतीकरण चीफ प्रोजेक्ट डायरेक्टर (सीपीडी) से लेकर रेलवे बोर्ड तक कंपनी के हक में उतर आए थे। रिकवरी निकालने वाले अधिकारी पर दबाव बनाया गया कि पांच करोड़ रुपये की रिकवरी का मामला रफा दफा करे। लेकिन, वह मौखिक आदेश की जगह लिखित में यह आदेश मांगता रहा। बाद में अधिकारी का तबादला पहले भिवानी, फिर फिरोजपुर और बाद में दिल्ली कर दिया गया।

यह खुलासा रेलवे में फिरोजपुर मंडल में सीनियर डीईई (जी) रहे नीरज कुमार ने किया। उधमपुर से कटरा के बीच बने इस ट्रैक के दोनों ओर लगे खंभों में स्टील कम है, जिसके चलते यह ट्रैक आज भी खतरनाक हैं। रेलवे ने रिकवरी से लेकर मामला सीबीआइ के सुपुर्द जरूर कर दिया, पर आज तक इस ट्रैक पर लगे हुए खंभों को हटाने की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है। सीबीआइ की पूछताछ में नीरज कुमार ने 29 पेज के अपने लिखित बयान में रेलवे अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा दिए हैं।

सीबीआइ की पूछताछ में रेल अधिकारी ने अपने ही महकमे के अधिकारी को कटघरे में किया खड़ा

उधमपुर से कटरा तक चुनौती भरे 85 मीटर ऊंचे और 3.15 किलोमीटर (किमी) सबसे लंबी सुरंग वाले इस सेक्शन के लिए 350 मीट्रिक टन स्टील के खंभे आए थे। इन खंभों का प्रयोग पटरी के दोनों ओर किया गया। इन में से कुछ खंभों का वजन किया गया, तो तथ्य चौकाने वाले आए। मानक से 15 फीसद तक स्टील का वजन कम मिला।

जांंच में अपनी गर्दन फंसते देख अध‍िकार‍ियों ने कागजों से भी की थी छेड़छाड़़

कुल 350 मीट्रिक टन स्टील के स्ट्रक्चर प्रयोग होने थे, जिसके चलते जो स्टील ट्रैक पर लग चुका है, उसकी मिलाकर रिवकरी निकाल दी थी। यानी कि रेलवे ने मान लिया कि जो पटरी किनारे खंभे लगे हैं, उनमें भी स्टील मानकों से कम है। ऐसे में संरक्षा पर एक बड़ा सवाल है कि सब कुछ उजागर होने के बावजूद अंडरवेट स्ट्रक्चर को आज तक क्यों नहीं बदला गया।

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यह है मामला

इस घोटाले का दैनिक जागरण ने पर्दाफाश किया था। इस मामले की जांच पहले आरपीएफ ने की जिसके बाद मामला सीबीआइ के सुपुर्द किया गया। रेलवे ने वर्ष 2010 में जम्मू-उधमपुर विद्युतीकरण का प्रोजेक्ट मुंबई की क्वालिटी इंजीनियर्स को दिया था। अंबाला छावनी स्थित चीफ प्रोजेक्ट डायरेक्टर ने टेंडर अलाट किया था।

अफसरों ने तकनीकी कारण बताते हुए टेंडर की कीमत 11 करोड़ कर दी, जबकि यह कार्य 8, 22,75,617 में ही पूरा हुआ था। इस प्रोजेक्ट में रेलवे की ओर से कंपनी को दिया गया कॉपर, स्टील के स्ट्रक्चर आदि का कुछ पता नहीं चला। जांच में रेल अफसरों ने अंडरवेट होने की भी बात सीबीआइ के सामने रखी।

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जांच से बचने को दस्तावेजों में छेड़छाड़

सीबीआइ की जांच में सामने आया है कि अंबाला विद्युतीकरण कार्यालय ने अपनी गर्दन फंसते देख, कागजों में भी छेड़छाड़ की गई है। इसके अलावा इस रूट पर देरी के चलते कंपनी पर बार-बार जुर्माना भी लगाया गया। लेकिन इस कंपनी का लिंक रेलवे बोर्ड में एक आला अधिकारी से था, जिसके चलते भी अफसरों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। हालांकि अब यह अधिकारी मेंबर इलेक्ट्रिकल के पद से रिटायर्ड हो चुके हैं। अब तक इस मामले में उक्त अधिकारी सहित 60 अफसरों से पूछताछ हो चुकी है।


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