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बास्केटबाल में एशिया के टाइगर का निधन, जींद के इस गांव के थे रहने वाले, जानें संघर्ष की कहानी

जींद के ओमप्रकाश ढुल ने लगभग दो दशक तक सेना में सेवाएं दी। सेना की तरफ से खेलते हुए उनकी टीम लगातार 12 साल तक देश में पहले स्थान पर रही। सेना में रहते हुए वह 1970 से 80 तक इंडिया टीम में भी खेले।

By Naveen DalalEdited By: Published: Thu, 27 Jan 2022 07:36 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jan 2022 11:02 PM (IST)
बास्केटबाल में एशिया के टाइगर का निधन, जींद के इस गांव के थे रहने वाले, जानें संघर्ष की कहानी
अर्जुन अवार्ड और भीम अवार्ड के अलावा राष्ट्रपति ने विशिष्ट सेवा मेडल से किए थे सम्मानित।

जींद, जागरण संवाददाता। बास्केटबाल के मैदान पर विरोधियों को छकाने वाले जिले के गांव ईक्कस निवासी अर्जुन अवार्डी ओमप्रकाश ढुल नहीं रहे। बुधवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। पूरे गांव-गुहांड के लोगों ने शोकाकुल माहौल में उन्हें अंतिम विदाई दी। ओमप्रकाश ढुल ने लगातार 10 वर्ष तक इंडिया टीम का प्रतिनिधित्व किया। उनकी अगुआई में टीम इंडिया 1975 में एशिया की टाप स्कोरर भी रही।

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दो दशक तक सेना में सेवाएं दी

ओमप्रकाश ढुल ने लगभग दो दशक तक सेना में सेवाएं दी। सेना की तरफ से खेलते हुए उनकी टीम लगातार 12 साल तक देश में पहले स्थान पर रही। सेना में रहते हुए वह 1970 से 80 तक इंडिया टीम में भी खेले। केंद्र सरकार ने 1979-80 में उन्हें अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया। इसके बाद हरियाणा सरकार ने भी उन्हें भीम अवार्ड से सम्मानित किया। गांव ईक्कस के निवर्तमान सरपंच हरपाल ढुल ने बताया कि ओमप्रकाश ढुल दस साल तक इंडिया बास्केटबाल टीम के हीरो रहे। उनकी खासियत यह थी कि वह दोनों हाथों से गोल करते थे। करीब 6 फुट 9 इंच लंबे ओमप्रकाश को साथी खिलाड़ी व खेलप्रेमी बास्केटबाल का टाइगर कहते थे।

संयुक्त पंजाब की कबड्डी टीम के कप्तान थे

1985 में उन्हें राष्ट्रपति ने विशिष्ट सेवा मेडल से भी सम्मानित किया था। आर्मी से रिटायर होने के बाद उन्होंने जींद में बास्केट बाल के कोच के तौर पर भी सेवाएं दी। वर्ष 1962 में गांव के युवाओं में बास्टकेबाल के प्रति जुनून था। मास्टर ओम सिंह उस समय संयुक्त पंजाब की कबड्डी टीम के कप्तान थे। ओमप्रकाश भी उन्हीं से प्रेरित होकर खेलों के दम पर आर्मी में भर्ती हुए और बास्केटबाल खेलना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और बास्केटबाल के एशिया के स्टार बन गए। जब उन्हें अर्जुन अवार्ड मिला, तब गांव ईक्कस ही नहीं पूरे जिले में जोश था।

युवाओं को सिखाए खेल के गुर

ओमप्रकाश ने गांव में बास्केटबाल का ग्राउंड तैयार करके युवाओं को इस खेल के गुर सिखाए। काफी खिलाड़ी उनसे सीखकर आगे बढ़े और एनआईएस से डिप्लोमा लेकर खेल विभाग में सेवाएं भी दी। करीब दो दशक पहले उन्हें गले में कैंसर हो गया था। अपनी जीवटता से उन्होंने कैंसर को भी मात दे दी थी। लेकिन अब आखिरी दिनों में फेफड़े खराब होने से शरीर ने उनका साथ छोड़ दिया। उनके निधन पर पूरे गांव सहित खेल प्रेमियों में गहरा शोक है।


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