जिनके पास पैसा नहीं पर आंखें अर्जुन जैसीं, उनके लिए द्रोण बनीं जीतू Panipat News
मिलिए महिला द्रोण जीतू से। इन्होंने आर्थिक तंगी से जंग लड़ी। गरीब बच्चों का दर्द समझती हैं। शूटिंग की कोच जीतू ने ठाना है कि वह गरीब बच्चों को फ्री कोचिंग देंगी।
यमुनानगर, [नितिन शर्मा]। इनका नाम जीतू ठाकुर है। अमर विहार कॉलोनी निवासी हैं। इनका जैसा नाम है, वैसा काम कर रहीं हैं। कड़े संघर्ष के बाद जीतू ने मंजिल जीती। शूटिंग में कई मेडल झटके। अब उन युवाओं को निशानेबाज बना रहीं हैं, जिनके पास अर्जुन जैसी आंख है पर आर्थिक तंगी है। ऐेसे युवाओं के लिए द्रोण बनी हैं। जीतू का कहना है कि उन्होंने आर्थिक तंगी करीब से देखी है। वह चाहती हैं कि कोई बच्चा आर्थिक तंगी के कारण शूटर बनने से वंचित न हो। इसलिए वे ऐसे बच्चों को फ्री में निशानेबाजी सीखा रहीं हैं, जिससे उनको भी प्रतिभा दिखाने का मंच मिले और सफलता की बुलंदियों पर पहुंचे।
जीतू ठाकुर बताती हैं कि उनका जीवन संघर्ष से भरा रहा है, जिस मुकाम पर वे आज पहुंची हैं। इसके लिए कड़ा संघर्ष किया है। 12वीं की परीक्षा में मेरिट में जगह बनाई। भीड़ में अलग चमकने के लिए शूङ्क्षटग ज्वाइन कर ली। उनको देखकर खेल अध्यापक ने कहा कि ये शूटिंग करना आसान नहीं है। वे कर नहीं पाएगी। किसी और खेल में चली जाए। वहां अभ्यास करना भी आसान होता है।
दिल में घर कर गई अध्यापक की कही बातें
अध्यापक की कही बाते उनके दिल में घर कर गई। अब उनको जिद हो गई शूटिंग में ही जाना है। इसके लिए भले ही पांच से छह घंटे का अभ्यास करना पड़े। किसी तरह से शूटिंग गन खरीदी। उन्होंने जो सोचा वो किया भी है। तीन वर्ष के कठिन अभ्यास के बाद वल्र्ड यूनिवसिर्टी के लिए चयनित हुई। यहां प्रतिभा दिखाई। मेडल जीतकर जिले का नाम रोशन किया। इसके बाद ऐसा दौर आया कि उनको अपनी गन बेचनी पड़ी। कर्जा चढ़ गया था। जोश और हिम्मत थी। रेंट पर गन ली। राज्य, राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित प्रतियोगिताओं में भाग लेकर कई मेडल अपने नाम किए। इस बीच पारिवारिक कारणों के चलते गेम में आगे नहीं बढ़ सकी।
वर्ष 2014 में मिली स्कूल में जॉब
वर्ष 2011 में इनका विवाह हो गया। वर्ष 2014 में शूटिंग कोच की जॉब संत निश्चल सिंह स्कूल में मिल गई। उनका वेतन सात हजार रुपये मासिक तय किया गया। यहां भी उन्होंने अपना बेस्ट दिया। उनके मार्गदर्शन में खिलाड़ी भारतवर्ष में खेले। स्कूल सहित जिले का नाम रोशन किया। बाद में जॉब छोड़ दी। इस वर्ष जनवरी में बच्चों को कोचिंग देने के लिए निश्चय शूटिंग एकेडमी बनाई।
कोचिंग लेने वाले बच्चे जीते सर्वाधिक मेडल
उनके यहां जो बच्चे कोचिंग ले रहे हैं, सबसे ज्यादा मेडल जीतने का खिताब इनके नाम है। उनकी एकेडमी में हर जरूरतमंद बच्चे को निश्शुल्क शूटिंग कोचिंग दी जाती है। ये वे बच्चे जो इस रॉयल गेम की फीस का खर्च नहीं उठा पाते।
बीएसएनएल में रहे पिता
इनके पिता बीएसएनएल में लाइनमैन के पद पर थे। उनकी आय कम थी। ये भी मां की बीमारी पर ज्यादा खर्च होती थी। चार भाई बहन हैं। ऐसी स्थिति में पढ़ाई पूरा करना भी मुश्किल हो गया था, लेकिन उनके दिल में बचपन से ही कुछ अलग करने का जज्बा था। पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहीं। जीतू के पास कभी साइकिल नहीं होती थी आज उनके पास खुद की कार है। पति भी एकेडमी में बैठते हैं। यहां तक पहुंचने में उनके भाई व जीजा जी का विशेष प्रोत्साहन रहा है।
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