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16 बार ढहा घर, पर नहीं टूटने दिया सपना; फुटपाथ पर बैठकर पढ़ने वाली बेटी बनी जज

पानीपत के मुस्लिम परिवार की बिटिया रूबी आखिरकार जज बन ही गई। उसकी कहानी अब दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 14 Feb 2020 09:14 AM (IST)Updated: Fri, 14 Feb 2020 02:00 PM (IST)
16 बार ढहा घर, पर नहीं टूटने दिया सपना; फुटपाथ पर बैठकर पढ़ने वाली बेटी बनी जज
16 बार ढहा घर, पर नहीं टूटने दिया सपना; फुटपाथ पर बैठकर पढ़ने वाली बेटी बनी जज

पानीपत [अरविन्द झा]। उसका घर बार-बार उजड़ रहा था। एक बार नहीं, 16 बार उजड़ा। सिर से पिता का साया उठ चुका था। पर उसका सपना कभी नहीं बिखरा। वो था हमेशा आबाद। ...और उसे हासिल करने के लिए उसके पास थी शिक्षा की राह। पानीपत के मुस्लिम परिवार की बिटिया रूबी आखिरकार जज बन ही गई। उसकी कहानी अब दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई है। पढि़ए कैसे मुश्किलों का सामना कर यह बेटी झारखंड में जज बनी।

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जीटी रोड पर ही अनाजमंडी के पास कुछ कच्चे घर (झुग्गी) हैं। इन्हीं में से एक में रहता है रूबी का परिवार। उपयोग में लाए जा चुके कपड़ों में से वो कपड़े चुनते हैं, जिनसे धागा बनाया जा सकता है। वेस्ट कारोबार में मजदूरी करने वाले परिवार की रूबी पढ़-लिखकर अफसर बनना चाहती थी।

चार बहनों में सबसे छोटी रूबी ने अंग्रेजी संकाय में एमए की। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा भी दी, पर सफल नहीं हुई। इस बीच, प्रशासन ने कच्चे मकान को ढहाने के लिए अभियान चलाए। बार-बार उसका घर टूटा और सड़क पर आने की नौबत आई। इन मुसीबतों के बावजूद रूबी पीछे नहीं हटी। दिल्ली विश्वविद्यालय से वर्ष 2016 में एलएलबी की। वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश और हरियाणा न्यायिक सेवा की परीक्षा में बैठी, पर सफलता अभी दूर थी। मुसीबतें उतनी ही पास।

27 अप्रैल, 2019 को उनकी झुग्गी में आग लग गई। एक माह बाद 27 मई को झारखंड न्यायिक सेवा की परीक्षा थी। ऐसे में कई बार फुटपाथ पर बैठकर पढ़ना पड़ा। प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा पास करने के बाद 10 जनवरी 2020 को साक्षात्कार देकर जब लौटी तो मन में सफलता की आस बंध गई। आखिरकार सिविल जज (जूनियर डिविजन) के परिणाम में 52वीं रैंकिंग हासिल की। गत सुबह जब सोकर उठी तो वाट्सएप देखा। परीक्षार्थियों के ग्रुप में सफलता का मैसेज देखकर एक बार आंखें नम हो गईं।

आजीविका सबसे बड़ी चुनौती

दैनिक जागरण से बातचीत में रूबी ने दो वक्त की रोटी का इंतजाम नहीं कर पाना, को जीवन की सबसे बड़ी बाधा बताया। वालिद अल्लाउद्दीन की 2004 में असामयिक मौत के बाद अम्मी जाहिदा बेगम ने हम पांच भाई-बहनों को बड़ा किया। मां ने तंगी झेलकर उसकी हर ख्वाहिश पूरी की। रूबी का कहना है कि भाई मोहम्मद रफी ने हमेशा हौसला बढ़ाया।

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