National Youth Day : बिना रुके, बिना थके चमक रहे ये सितारे
बिना थके, बिना रुके लक्ष्य हासिल करने का स्वामी विवेकानंद जी का ये वक्तव्य युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत है। इसका पालन करते हुए युवा आज दुनिया भर में सितारे बनकर चमक रहे हैं।
पानीपत, जेएनएन। आज स्वामी विवेकानंद जयंती है। इस दिन को हम युवा दिवस के रूप में मनाते हैं। यानी, ऊर्जा का प्रतीक यह दिन हमें याद दिलाता है कि अगर युवा कुछ ठान लें तो उसे हासिल कर ही लेते हैं। पढ़िए, उन युवाओं की कहानियां, जिन्होंने न केवल सफलता का आसमां छुआ, बल्कि उनके नाम से ही शहर की पहचान हो गई। इन युवाओं का नाम लेते हैं तो जुबां पर इनके शहर का नाम आ जाता है।
खेलों के बारे में जिक्र होता है तो पानीपत की पहचान स्टार जेवलिन थ्रोअर 21 वर्षीय अजरुन अवॉर्डी नीरज चोपड़ा से होती है। नीरज विश्व जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण, एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। आठ साल पहले छोटे से गांव खंडरा का नीरज चोपड़ा गोल-मटोल था। चाचा सुरेंद्र उन्हें जिम में ले गए। ¨
सात हजार की जेवलिन से किया अभ्यास
बझौल के जयवीर सिंह और मॉडल टाउन के जितेंद्र ने कड़ा अभ्यास कराकर वजन कम कराया। चाचा सुरेंद्र कुमार ने बताया कि शिवाजी स्टेडियम में न तो एथलेटिक्स कोच थे और न ही जेवलिन थी। जेवलिन की कीमत 50 हजार से एक लाख रुपये की थी। इतनी महंगी जेवलिन खरीदना परिवार के बूते नहीं था। सात हजार रुपये की जेवलिन लेकर नीरज को पंचकूला अभ्यास के लिए भेजा गया। बेटे ने निराश नहीं किया।
बॉलीवुड से कॅरियर की शुरुआत
परिणीति चोपड़ा का जन्म अंबाला छावनी के सेना क्षेत्र में स्टाफ रोड स्थित 51-ए में हुआ था। लंदन की मैनचेस्टर बिजनेस स्कूल से इंटरनेशनल बिजनेस, अर्थशास्त्र और फाइनेंस में ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी कर वर्ष 2009 में वापस अपने देश लौटी। इन्वेस्टमेंट बैंकिंग में कुछ समय तक नौकरी की। इसके बाद वे मुंबई में अपनी बहन प्रियंका चोपड़ा के पास चली गई। फिल्म निर्माता यशराज चोपड़ा ने उन्हें फिल्मी दुनिया में आने का न्योता दिया और उन्होंने अपने इस नए करिअर की शुरुआत की।
कंपकंपाती सर्दी, बरसात में अभ्यास नहीं छोड़ा
भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल की सफलता के पीछे कड़ी मेहनत व अभ्यास है। रानी कहती हैं कि कक्षा पांच में पढ़ते हुए पहली बार हॉकी के मैदान में कदम रखा तो उस समय उनके घर के आर्थिक हालात बहुत खराब थे। चाहे कंपकंपाती सर्दी हो या ताबड़तोड़ बरसात, हॉकी ग्राउंड कभी मिस नहीं किया। अगर घर में कोई शादी का कार्यक्रम भी होता था तो उसने हॉकी मैदान को ही तव्वजो दी है। यहां तक अपने भाई की शादी में भी वह मात्र दो घंटे रुकी। रानी अपनी सफलता का श्रेय वह अपने गुरू द्रोण बलदेव सिंह को देती है।
बॉक्सर को देखकर दूसरे खिलाड़ी आगे आए
ओलंपियन बॉक्सर मनोज कुमार ने जिले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान दिलवाई है। अब तक दो ओलंपिक में भारत का नेतृत्व बाक्सिंग में कर चुके हैं। 69 किलोग्राम भार वर्ग में बॉक्सिंग रिंग में खेलते हैं। राष्ट्रमंडल खेलों में बॉक्सर मनोज के गोल्ड जीतने के बाद बॉक्सिंग के खेल में युवाओं रुचि बढ़ी है। पिछले चार सालों में बॉक्सर मनीषा मौण, नेहा यादव, सपना सैनी, तुषाल ने जहां बॉक्सिंग में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते हैं, वहीं जूडो में भी ज्योति, आशा सैनी आगे निकली हैं।
शूटर अर्जुन अवार्डी संजीव की सफलता की लंबी फेहरिस्त
खेल प्रतिभा के धनी बूड़िया गेट पुलिस चौकी के नजदीक निवासी शूटर अजरुन अवॉर्डी संजीव राजपूत की उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त है। उनके पिता कृष्णलाल ने बताया कि संजीव ने एसडी स्कूल से 12वीं करने के बाद 18 वर्ष की आयु में नेवी ज्वाइन की थी। वही शूटिंग में अभ्यास करना शुरू किया। उनके निशाने कभी चूके नहीं हैं। वर्ष 2015 में मास्टर चीफ पेटी ऑफिसर के पद से सेवानिवृत्त हुए। संजीव के नाम बेस्ट सर्विसेज स्पोट्र्समैन अवॉर्ड भी है।
करनाल की कल्पना
अंतरिक्ष पर कोई महिला जाएगी और वो भी भारत की होगी। शायद ऐसी किसी भारतीय ने कल्पना भी न की हो। लेकिन जिस बेटी ने इसे हकीकत में बदल दिया हो, उसे कोई कैसे भूल सकता है। अब हमारी कल्पनाओं का हिस्सा बनी वो करनाल की कल्पना ही थी जो अंतरराष्ट्रीय पटल पर पहचान बनीं। करनाल के एक साधारण से परिवार से ताल्लुक रखने वाली कल्पना चावला देश की अनगिनत बेटियों के लिए आदर्श है। देश भर में कई जगह कल्पना चावला के नाम से कंप्यूटर शिक्षण संस्थान चल रहे हैं। इसके अलावा करनाल में इस बेटी के नाम से करीब 650 करोड़ रुपये की लागत से बना कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज भी वर्ष 2017 में सरकार ने जनता को समर्पित कर दिया है।
करनाल से नासा तक का सफर
17 मार्च 1962 को पैदा हुईं कल्पना चावला ने करनाल के ही टैगोर स्कूल से 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1982 में पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से वैमानिक इंजीनियरिंग की डिग्री पाई। कोलोराडो यूनिवर्सिटी से कल्पना नासा से 1988 में जुड़ीं। एक फरवरी 2003 को कैनेडी अंतरिक्ष केंद्र पर उतरने से पहले अमेरिकी अंतरिक्ष यान कोलंबिया दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हादसे में कल्पना चावला सहित सातों अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई।