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दशहरा विशेष- लाहौर से यूं आई अद्भुत हनुमान परंपरा, 20 किलो वजनी मूर्ति पहनकर नाचते हैं

पानीपत में अलग तरह से दशहरा मनाया जाता है। चार दिन तक हनुमान स्‍वरूप निकलते हैं। हजारों की संख्‍या में ये स्‍वरूप शहरभर में घूमते हैं और दशहरे के दिन रावण का दहन करने पहुंचते हैं।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Fri, 19 Oct 2018 11:24 AM (IST)Updated: Fri, 19 Oct 2018 12:23 PM (IST)
दशहरा विशेष- लाहौर से यूं आई अद्भुत हनुमान परंपरा, 20 किलो वजनी मूर्ति पहनकर नाचते हैं
दशहरा विशेष- लाहौर से यूं आई अद्भुत हनुमान परंपरा, 20 किलो वजनी मूर्ति पहनकर नाचते हैं

पानीपत [अजय सिंह]-  क्‍या आप 20 किलो वजनी मूर्ति पहनकर नाच सकते हैं। इतना ही नहीं, घंटों तक सड़क दर सड़क बिना कुछ खाए-पिए चलने की तपस्‍या करना तो शायद सोच भी न सकें। पर पानीपत में एक ऐसी अद्भुत परंपरा है, जो वर्ष दर वर्ष बढ़ती जा रही है। यह है हनुमान स्‍वरूप निकालने की पंरपरा। राम-राम जपते हनुमान चार दिन तक पूरे नगर में घूमते हैं। आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि ये रामधुन पाकिस्‍तान के लाहौर से निकली है। दरअसल, विभाजन से पहले लाहौर में लैय्या बिरादरी के लोग हनुमान स्‍वरूप निकालते थे।

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देश का बंटवारा हुआ तो इस समाज के लोग पानीपत में रहने चले जाए। इस विपदा के समय भी समाज के लोगों ने रामधुन की परंपरा को नहीं छोड़ा। हनुमान की मूर्ति निकालना जारी रखा। अब यही परंपरा अब इतनी आगे बढ़ी कि हरियाणा के कई शहरों में मूर्तियां निकलती हैं। इनकी संख्‍या बढ़कर एक हजार से अधिक हो गई है।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का भी संदेश
बताते चलें कि श्रद्धालु 21 से 41 दिनों का व्रत करते हैं। एक समय बिना नमक का भोजन ग्रहण करते है। शहर भर घूमते हुए, लोगों के घरों पर जाते हैं। स्थानीय मंदिरों में इसके लिए वेटिंग लिस्‍ट बनती है। हनुमान स्वरूप अब बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की बात भी कहते हैं। दशहरे के दिन भ्रष्टाचार का पुतला फूंकते हैं।

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इस तरह कष्टों भरे व्रत करते है रामभक्त
व्रतों पर बैठे लोगों को ब्रह्मचर्य का सख्ती से पालना करनी पड़ती है। व्रतधारी जमीन या लकड़ी के तख्त पर सोते है। दिनभर में केवल एक बार अन्न ग्रहण करते है। नंगे पैर शहरभर का भ्रमण करते है। वहीं व्रतधारी इस दौरान उनके घर न जाकर मंदिर में ही दिन व्यतीत करते है।

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दशहरे पर इस तरह उमड़ती है हनुमान स्‍वरूपों की भीड़।

1947 में दो और आज हजार के पार
व्रतों पर बैठे लोगों के मुताबिक पाकिस्तान से अलग होने के बाद पानीपत शहर में केवल दो लोग ही हनुमान स्वरूप धारण करते थे। इनमें भक्त मूलचंद और दुलीचंद शामिल थे। मूलचंद के निधन उपरांत उनके बेटे जीवन प्रकाश ने इस परंपरा को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली थी।

अष्टमी से राजतिलक तक उत्सव
अष्टमी से लेकर दशहरे के अगले दिन राजतिलक तक हनुमान स्वरूप नगर की परिक्रमा करते हैं। वे ढोल ढोल नगाड़ों के साथ भक्तों के घर जाते हैं।  इन चार दिनों में हनुमान स्वरूप पूरी तरह से अन्न का भी त्याग कर देते है। दशहरे से ठीक दो दिन बाद हरिद्वार पहुंचकर गंगा किनारे हवन-यज्ञ के साथ इसका समापन हो जाता है।

2 लाख तक तैयार होते स्वरूप
शहर में विभिन्न स्थानों पर हनुमान स्वरूप तैयार किए जाते है। इनमें फतेहपुरी चौक, मेला राम पार्क, सलारगंज गेट, जाटल रोड, कच्चा कैंप आदि मुख्य रूप से शामिल हैं। हनुमान स्वरूप तैयार करने में 5100 रुपये से लेकर 2 लाख रुपये तक की लागत आती है। दो लाख की लागत से तैयार किए गए हनुमान स्वरूप को चांदी की झालर और पट्टियों से सजाया जाता है।

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मूर्तियों के साथ कारीगर।

200 मूर्तियां तैयार करते हैं प्रदीप
वार्ड नंबर तीन की इंदिरा कालोनी के प्रदीप वर्मा ने बताया कि वे लगभग पिछले 18 वर्षों से हनुमान स्वरूप तैयार करते आ रहे है। एक सीजन में वे लगभग 200 तक मूर्तियां तैयार करते हैं। उनके पास मूर्ति तैयार करवाने में 5100 से लेकर 51 हजार रुपये तक का खर्च आता है। बता दें कि सावन ज्योत महोत्सव के दौरान हनुमान की प्रतिमा तैयार करने का कार्य भी प्रदीप वर्मा को ही दिया जाता है।

इन जिलों में भी पानीपत से मंगवाते है मूर्तियां
बता दें कि पानीपत के अलावा हरियाणा और पंजाब में भी लोग हनुमान स्वरूप धारण कर दशहरा पर्व मनाते हैं। पानीपत के कारीगर पंजाब होशियारपुर, फरीदाबाद, कैथल, जींद, असंध, सफीदों, सोनीपत और समालखा में भी मूर्तियां तैयार करके सप्लाई करते है। लोगों की इस पर्व से गहरी आस्था जुड़ी हुई है।


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