कहीं आपके बच्चे में खून की कमी तो नहीं, रिपोर्ट चिंताजनक है
छप्पन फीसद बच्चे एनिमिया ग्रस्त, पैंतालीस फीसद के दांत खराब। इक्कयावन प्रतिशत बच्चों को त्वचा रोग की समस्या जांच में बच्चों का वजन भी मिला गड़बड़।
पानीपत, जेएनएन। कक्षा 1 से 12 तक विद्यार्थियों और आंगनबाड़ी केंद्रों में पढऩे वाले करीब 56 फीसद बच्चे एनिमिया के शिकार हैं। तकरीबन पेंतालीस फीसद बच्चों के दांत खराब हैं। पौष्टिक भोजन नहीं मिलने और रोजाना सुबह-शाम टूथब्रश न करने के कारण यह चिंताजनक स्थिति बनी हुई है। व्यक्तिगत साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखने और वातावरण में प्रदूषण होने के कारण करीब 51 प्रतिशत बच्चों-किशोरों को त्वचा रोग है।
दरअसल, राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य विभाग की टीमें विद्यालयों और आंगनबाड़ी केंद्रों में जाकर 3 से 18 साल तक के बच्चों के स्वास्थ्य का निरीक्षण करती हैं। इसमें मुख्यत: 29 तरह की जांचें शामिल हैं। कार्यक्रम का रिकॉर्ड डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर (डीईआईसी) में रखा जाता है। सेंटर से मिली एक माह की रिपोर्ट ने बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति विभाग, स्कूल प्रबंधन और अभिभावकों की सुस्ती को उजागर कर दिया है। नवंबर माह में कुल 769 बच्चों के खून की जांच की गई तो 436 एनिमिया के शिकार मिले। 1688 बच्चों के दातों की जांच की गई तो 748 बच्चे दांतों और मसूढ़ों में होने वाली बीमारी से पीडि़त मिले।
आंखों की नजर है कमजोर
टीम ने 1142 बच्चों के स्किन की जांच की तो 582 बच्चे स्कैबीज, फोड़े-फुंसी, लाल चकते आदि रोगों से पीडि़त मिले हैं। आंखों की जांच के दौरान 988 में से करीब 285 बच्चों की नजर कमजोर मिली है। इन सभी बच्चों को सिविल अस्पताल में रेफर किया गया। कुछ रोग मुक्त हो चुके हैं तो कुछ का इलाज चल रहा है। आरबीएसके के जिला नोडल अधिकारी एवं डिप्टी सिविल सर्जन ने बताया कि कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य देना है। बच्चों के साथ टीचर, माता-पिता और आंगनबाड़ी वर्कर्स को भी बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति जागरुक किया जाता है। बच्चों को व्यक्तिगत साफ-सफाई की सीख दी जाती है।
डीईआइसी में बिना कतार इलाज
सरकारी स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों में पढ़ रहे बच्चों को अब सिविल अस्पताल में इलाज के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता। बीमार बच्चे सीधे डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर (डीईआईसी) में पहुंचते हैं। डॉक्टर बिना देर बच्चों का चेकअप करते हैं। जरूरत पड़े तो डीईआईसी का कर्मचारी बच्चों को संबंधित ओपीडी में लेकर जाता है। बच्चों के लिए इंडोर गेम का भी सामान रखा हुआ है।
हीमोग्लोबिन कम होने के कारण
बड़ा कारण हैं उनके शरीर में आयरन यानी लौह तत्व की कमी होना है| उन बच्चों में भी खून की कमी देखने को मिलती हैं जिनका जन्म समय से पहले होता हैं। ऐसे में 1 साल से अधिक उम्र के बच्चों में इस बीमारी का कारण उनके आहार में लौह तत्व की कमी होना होता हैं।
इस तरह खून बढ़ाएं
टमाटर आपके बच्चे के शरीर में तेजी से हीमोग्लोबिन बढ़ाने का काम करता है| बच्चों को रोजाना 5 से 7 चम्मच टमाटर का रस या सूप पीने के लिए दें। सेब का रस भी बेहद फायदेमंद माना जाता हैं| इसके लिए आप सेब के छिलके हटाकर उसका रस निकाल ले और उसमें थोडा सा शहद डालकर अपने बच्चे को पिलाये| अनार न केवल बच्चों को बल्कि बड़े लोगों में भी तेजी से हीमोग्लोबिन बढ़ाने का काम करते हैं| इसलिए आप अपने बच्चों को घर में निकाला हुआ अनार का जूस पीने के लिए दें। चुकंदर में आयरन के तत्व बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं क्योंकि यह खून में हीमोग्लोबिन का निर्माण व लाल रक्त कणों की सक्रियता को बढ़ाता हैं| वहीं, अमरूद में सबसे अधिक खून बढ़ाने की क्षमता होती हैं| इसके लिए आप अपने बच्चों को इस का रस निकालकर पिलाएं। आप गाजर का रस निकलकर या इसको गर्म करके इसकी प्यूरी बनाकार अपने बच्चे को दे| बच्चो को यह पसंद भी आयेगी व उनका खून भी बढेगा।